Edited By ,Updated: 08 Jun, 2016 12:36 PM
रूस उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के खिलाफ कार्रवाई करने का मन बना रहा है। उसका आरोप है कि नाटो रूस की सीमाओं की
रूस उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के खिलाफ कार्रवाई करने का मन बना रहा है। उसका आरोप है कि नाटो रूस की सीमाओं की ओर अपने कदम बढ़ा रहा है। इसे देखते हुए रूस ने अपनी पश्चिमी सीमा की ओर तीन नए डिवीजन तैनात करने का फैसला किया है। रूस नाटो को तनाव देने वाला संगठन बता चुका है। उसके अनुसार यह संगठन अपने अस्तित्व में रहने की वजह तलाशता रहता है। इसी क्रम में वह तनाव पैदा करता रहता है। रूस ने आपत्ति जताई थी कि यूक्रेन संकट नहीं होने के बाद भी नाटो उसके साथ तनाव फैलाता रहता करेगा। उसका तर्क है कि यदि वारसा पैक्ट और सोवियत संघ नहीं रहा तो नाटो या शीत युद्ध के दौरान की अन्य बातों को क्यों बरकरार रखा जाए?
नाटो यूरोपीय सुरक्षा व सहयोग संगठन (यूसुसस) के उस वियेना दस्तावेज़ पर विचार करना चाहता है, जिसके आधार पर शीत-युद्ध के बाद के दौर में रूस और यूरोप के बीच सुरक्षा की व्यवस्था आधारित थी। इस तरह नाटो सन्धि संगठन उस पहल की और फिर से वापिस लौट रहा है, जो वर्ष 2008 में रूस के तत्कालीन राष्ट्रपति दिमित्री मिदवेदफ़ ने पेश की थी। अप्रैल 2016 नाटो सन्धि संगठन के महासचिव येन्स स्टॉलटेनबर्ग का कहना था कि रूस और नाटो पुराने सहयोग की ओर वापिस नहीं लौट रहे हैं। दोनों पक्षों के बीच अभी भी गहरे मतभेद हैं। वेसे भी रूस-नाटो परिषद का काम वर्ष 2014 में स्थगित कर दिया गया था। उस समय क्रीमिया रूस में शामिल हुआ था। समझा जाता है कि इस समय भी रूस और नाटो के बीच आपसी रिश्तों में क्रीमिया की समस्या ही प्रमुख समस्या बनी हुई है।
स्टॉलटेनबर्ग अपनी बात दोहरा चुके हैं कि उत्तरी अटलाण्टिक सन्धि संगठन नाटो वियेना दस्तावेज़ पर विचार करने जा रहा है। इस दस्तावेज के आधार पर पिछली सदी के अन्तिम दशक में रूस और नाटो के बीच सुरक्षा सम्बन्धी सहयोग किया जा रहा था। नाटो के महासचिव ने यह नहीं बताया था कि वे इस दस्तावेज़ की किन धाराओं को बदलना चाहते हैं। यह साफ़ है कि नाटो ने उस दस्तावेज़ पर विचार करना शुरू कर दिया है, जो यूरोप में सुरक्षा के ढांचे में बदलाव ला सकता है।
दरअसल, रूस की सरकार पूर्वी यूरोप में नाटो के फैलाव को अपनी सुरक्षा के लिए खतरा समझती है। रूस के राष्ट्रपति ने यह प्रस्ताव रखा था कि उनके इन सन्देहों को दूर करने के लिए एक नया समझौता किया जाना चाहिए। यह समझौता यूरोप में सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाएगा। उन परिभाषाओं को स्पष्ट कर देगा, जो अभी तक साफ़ नहीं हैं। दूसरी ओर, मास्को स्थित नाटो के सूचना-कार्यालय के कार्यकारी निदेशक रॉबर्ट प्शेल भी इस बात से सहमत हैं कि यूरोपीय सुरक्षा की व्यवस्था में बदलाव करने का समय आ गया है।
वह मानते हैं कि रूस जिस तरह से लगातार सैन्याभ्यास कर रहा है, उन्हें देखकर नाटो को विशेष चिन्ता है। वियेना दस्तावेज़ के अनुसार हर देश को यह अधिकार है कि वह उन सैन्याभ्यासों की तैयारी के बारे में सूचित न करे, जो पहले से तय नहीं किए गए हैं। रूस लगातार इस कानूनी सम्भावना का फ़ायदा उठा रहा है और ऐसे सैन्याभ्यासों में, जो पूर्व निर्धारित नहीं हैं, एक लाख सैनिकों तक का इस्तेमाल कर रहा है। यह स्पष्ट होता है कि रूस भी लगातार मनमानी कर रहा है।
नाटो नेताओं की इस जुलाई में वारसा में बैठक करने से पहले यह गठबंधन रूस के साथ एक और बैठक करने के लिए व्यापक सहमति पर पहुंचा है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के प्रवक्ता कहते हैं कि सभी वार्ताओं में अवश्य ही रूस के हितों का सम्मान शामिल होना चाहिए। नाटो महासचिव जेंस स्टोलटेनबर्ग कह चुके हैं कि गठबंधन के विदेश मंत्री रूस के प्रति दोहरे ट्रैक वाले रुख पर सहमत हैं। परिषद की बैठक पिछले करीब दो साल में पहली बार पिछले महीने हो चुकी है। हालांकि यह रूस और अमेरिका नीत गठबंधन के बीच मतभेदों को पाटने में नाकाम रही है। अब जुलाई में क्या होता है इसका इंतजार रहेगा।