Edited By Seema Sharma,Updated: 28 Nov, 2019 08:55 AM
जो लोग कैंसर के शिकार हैं या कैंसर का इलाज करा चुके हैं, उनमें आम लोगों के मुकाबले मस्तिष्काघात से मरने की संभावना अधिक होती है। एक अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है। इसमें 70 लाख से अधिक रोगियों के डाटा का आकलन किया गया, जिनमें बीमारी के घातक रूपों...
नई दिल्ली: जो लोग कैंसर के शिकार हैं या कैंसर का इलाज करा चुके हैं, उनमें आम लोगों के मुकाबले मस्तिष्काघात से मरने की संभावना अधिक होती है। एक अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है। इसमें 70 लाख से अधिक रोगियों के डाटा का आकलन किया गया, जिनमें बीमारी के घातक रूपों की पहचान हुई थी। अमरीका की पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्त्ताओं ने नैशनल कैंसर इंस्टीच्यूट के सर्विलांस, एपिडेमिओलॉजी और एंड रिजल्ट प्रोग्राम (सीर) से डाटा एकत्रित किया। इसमें अमरीका की लगभग 28 प्रतिशत आबादी के कैंसर के मामले, उनके जीवित बचने, उपचार, उम्र और रोग के वर्ष की जानकारी शामिल थी।
अध्ययन से पता चला कि जिन लोगों को कैंसर है या कैंसर के इलाज के बाद जीवित हैं, उनमें मस्तिष्काघात से जान जाने का खतरा दोगुना है। शोधकर्त्ताओं ने कहा कि घातक कैंसर से जूझ रहे रोगियों का पता चला था। यह कैंसर ऊतक से बाहर फैल गया था। उन्होंने कहा कि स्तन कैंसर, प्रोस्टेट कैंसर और बड़ी आंत के कु छ हिस्सों का कैंसर गंभीर मस्तिष्काघात से संबंधित है।
कम उम्र के कैंसर रोगियों को अधिक खतरा
पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी में रेडिएशन ऑन्कोलॉजी की असिस्टैंट प्रोफैसर निकोलस जॉस्र्की ने कहा, पिछले शोधों से पता चला कि अधिकतर कैंसर रोगी अपने कैंसर से नहीं मर रहे बल्कि मौत का कारण कु छ और है। शोधकत्र्ताओं ने कहा कि अध्ययन में पता चला कि 80,000 से अधिक लोगों की मौत मस्तिष्काघात से हुई थी। इनमें कम उम्र में कैंसर से प्रभावित होने वाले ज्यादा हैं।
दोनों बीमारियां एक-दूसरे से संबंधित
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) के अनुसार, 2018 में कैंसर के कारण लगभग 90 लाख से अधिक लोगों की मौत हुई थी। जबकि द लांसेट नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, दुनियाभर में 50 लाख से अधिक लोगों की मौत मस्तिष्काघात के कारण हुई। शोधकर्त्ताओं ने कहा कि ये दोनों बीमारियां संबंधित हो सकती हैं।