दिल्ली की आबोहवा खराब- Smoking नहीं करने वालों को भी हो रहा Lung Cancer

Edited By Seema Sharma,Updated: 13 Aug, 2019 01:16 PM

study lung cancer cases increasing at fast in non smokers

दिल्ली की प्रदूषित हवा सिगरेट से भी ज्यादा घातक हो गई है। जो लोग सिगरेट को हाथ तक नहीं लगाते वो भी फेफड़ों के कैंसर का शिकार हो रहे हैं। दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल के सेंटर फॉर चेस्ट सर्जरी के चेस्ट सर्जन और लंग केयर फाउंडेशन

नई दिल्लीः दिल्ली की प्रदूषित हवा सिगरेट से भी ज्यादा घातक हो गई है। जो लोग सिगरेट को हाथ तक नहीं लगाते वो भी फेफड़ों के कैंसर का शिकार हो रहे हैं। दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल के सेंटर फॉर चेस्ट सर्जरी के चेस्ट सर्जन और लंग केयर फाउंडेशन की तरफ से करवाई गई एक स्टडी में यह चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं।

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स्टडी के मुताबिक पिछले 30 सालों में हुई लंग कैंसर सर्जरी की जांच की गई जिसमें पाया गया कि साल 1988 में जहां 10 में 9 लंग सर्जरी उन लोगों की होती थी जो स्मोकिंग करते थे लेकिन साल 2018 में लंग कैंसर की सर्जरी का रेशियो 5:5 हो गया। इसका मतलब है कि 5 स्मोकिंग करने वाले और 5 नॉन स्मोकर की लंग सर्जरी हुई। स्टडी के मुताबिक इससे भी ज्यादा चिंता वाली बात यह है कि लंग कैंसर की सर्जरी करवाने वालों में 70 प्रतिशत लोगों की उम्र 50 साल से कम है और यह सभी नॉन स्मोकर हैं।

50 साल से कम है ज्यादातर मरीज
स्टडी में उन लोगों को भी स्मोकर की कैटिगरी में रखा गया जिन्होंने स्मोकिंग छोड़ दी थी। सर गंगा राम हॉस्पिटल में सेंटर फॉर चेस्ट सर्जरी और इंस्टिट्यूट ऑफ रोबॉटिक सर्जरी के कंसल्टेंट डॉ हर्थ वर्धन पुरी ने बताया कि यह स्टडी इसलिए की गई क्योंकि लंग कैंसर की सर्जरी कराने वाले ज्यादातर मरीज बेहद युवा और नॉन स्मोकर थे।
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प्रदूषण सबसे बड़ा खतरा
डॉक्टर पुरी के मुताबिक यह स्टडी मार्च 2012 से जून 2018 के बीच हुई है। इस स्टडी के बाद पूरी तरह से जब जांच की गई तो पता चला कि युवा और स्मोकिंग न करने वालों में तेजी से लंग कैंसर बढ़ रहा है। स्टडी के मुताबिक इसका एक तो सबसा बड़ा कारण प्रदूषित हवा है। दिल्ली की प्रदूषित हवा सिगरेट को हाथ न लगाने वालों को भी उतनी ही तेजी से फेफड़ों के कैंसर का शिकार बना रही है जिस स्पीड से स्मोकिंग करने वालों को लंग कैंसर होता है। वहीं इस स्टडी में इस बात की ओर भी ध्यान दिलाया कि लंग कैंसर के बहुत से केस में गलत डायग्नोसिस की वजह से भी होता है। स्टडी में यह बात सामने आई है कि करीब 30 प्रतिशत मरीज ऐसे होते हैं जिनकी डायग्नोसिस गलत होती है और उनकी बीमारी को पहले टीबी समझ लिया जाता है और कई महीने उसी का इलाज चलता रहता है। जबकि हकीकत में वो लंग कैंसर होता है। ऐसे में गलत इलाज का खामियाजा भी मरीज को भुगतना पड़ता है।

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