सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को मिली एंट्री

Edited By Seema Sharma,Updated: 28 Sep, 2018 12:26 PM

supreme court decision on sabarimala temple

केरल के पत्थनमथिट्टा जिले के पश्चिमी घाट की पहाड़ी पर स्थित सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगे प्रतिबंध मामले पर आज सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने 4-1 के बहुमत से फैसला सुनाते हुए कहा कि मंदिर में हर उम्र की...

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने केरल के सबरीमाला स्थित अय्यप्पा स्वामी मंदिर में महिलाओं की एंट्री पर लगी पाबंदी को आज हटाते हुए कहा कि अब हर उम्र की महिलाएं मंदिर में दर्शनों के लिए जा सकेंगी। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने 4-1 के बहुमत से फैसला सुनाते हुए कहा कि मासिक धर्म की उम्र वाली महिलाओं को मंदिर में प्रवेश से रोकना लैंगिक भेदभाव है और यह हिंदू महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करती है। जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस डीवाई चन्द्रचूड़ अपने फैसलों में सीजेआई दीपक मिश्रा और जस्टिस एएम खानविलकर के फैसले से सहमत हुए लेकिन जस्टिस इन्दु मल्होत्रा ने बहुमत से अलग अपना फैसला पढ़ा।

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कोर्ट की खास टिप्पणियां

  • किसी भी मामले में महिलाएं पुरुषों से कम आदरणीय नहीं हैं।
  • महिलाओं को देवी की तरह पूजा जाता है और मंदिर में प्रवेश से रोका जा रहा है।
  • धर्म की नजर से सब बराबर होते हैं। धर्म के नाम पर पुरुषवादी सोच ठीक नहीं और उम्र के आधार पर मंदिर में प्रवेश से रोकना धर्म का अभिन्न हिस्सा भी नहीं है।
  • चीफ जस्टिस ने कहा, भगवान अयप्पा के भक्त हिंदू हैं, ऐसे में एक अलग धार्मिक संप्रदाय न बनाएं।
  • ईश्वर के साथ संबंध और उसकी भक्ति शरीर की हालत का मोहताज नहीं, यह तो आत्मीयता से जुड़ा होता है।
  • पितृसत्तात्मक समाज की सोच को इस बात की इजाजत नहीं कि वह भक्ति में समानता को खत्म करे।
  • महिलाओं को प्रतिबंधित करना अनुच्छेद 25 के प्रावधान 1 का उल्लंघन है। 
  • जस्टिस नरीमन ने केरल हिन्दू धर्म स्थल के नियम 3(बी) को निरस्त किया। 
  • सिर्फ इसलिए कि महिला रजस्वला है, उसे प्रतिबंधित करना असंवैधानिक है।
  • ‘‘सती’’ जैसी सामाजिक कुरीति के मुद्दों के अलावा यह फैसला करना अदालतों का काम नहीं है कि कौन-सी धार्मिक गतिविधियों को खत्म किया जाएगा: इंदु मल्होत्रा

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कोर्ट के फैसले से निराश: मंदिर के प्रमुख पुजारी
सबरीमाला के प्रमुख पुजारी कंडारारू राजीवारू ने कहा कि सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश को अनुमति देने वाला सुप्रीम कोर्ट का फैसला काफी निराशाजनक है लेकिन कोर्ट की गरिमा को ध्यान में रखते हुए मंदिर बोर्ड इसे स्वीकार करेगा। उन्होंने कहा कि बोर्ड सर्वोच्च न्यायलय के आदेश को लागू करने के लिए कदम उठाएगा और इस पर गंभीरता से अध्ययन करेंगे। वहीं अयप्पा धर्म सेना के अध्यक्ष राहुल ईश्वर ने कहा कि वे इस मामले में पुर्निवचार याचिका दाखिल करेंगे। ईश्वर सबरीमाला के पुजारी दिवंगत कंडारारू महेश्वरारू के पोते हैं। महेश्वरारू का इस साल मई में निधन हुआ है।

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बता दें कि कोर्ट के फैसले से पहले सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 साल की महिलाओं की मंदिर के अंदर एंट्री नहीं थी। इसको लेकर काफी समय से विवाद चल रहा था। मंदिर प्रबंधन का महिलाओं के प्रतिबंध पर तर्क था कि 10 से 50 साल की उम्र तक की महिलाओं के प्रवेश पर इसलिए बैन लगाया गया है, क्योंकि मासिक धर्म के समय वे शुद्धता बनाए नहीं रख सकतीं। वैसे भी, मासिक धर्म के समय महिलाओं के् धार्मिक कर्मकांड के समय दूरी बनाए रखने की पंरपरा काफी समय से चली आ रही है।

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