तय समय पर होगी समलैंगिकों संबंधों पर याचिका की सुनवाई: SC

Edited By Anil dev,Updated: 09 Jul, 2018 01:01 PM

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उच्चतम न्यायालय ने सहमति से दो वयस्कों के बीच शारीरिक संबंधों को फिर से अपराध की श्रेणी में शामिल करने के शीर्ष अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा कल प्रस्तावित सुनवाई स्थगित करने का केन्द्र का...

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सहमति से दो वयस्कों के बीच शारीरिक संबंधों को फिर से अपराध की श्रेणी में शामिल करने के शीर्ष अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा कल प्रस्तावित सुनवाई स्थगित करने का केन्द्र का अनुरोध आज ठुकरा दिया। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड़ की खंडपीठ ने सुनवाई टालने से इनकार कर दिया। केंद्र सरकार ने समलैंगिक संबंधों पर जनहित याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने के लिए और वक्त देने का अनुरोध किया था।  पीठ ने कहा , ‘‘ इसे स्थगित नहीं किया जाएगा। ’’ 

नए सिरे से पुनर्गठित पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को कल से चार महत्वपूर्ण विषयों पर सुनवाई शुरू करनी है जिनमें समलैंगिकों के बीच शारीरिक संबंधों का मुद्दा भी है।  इस संविधान पीठ में प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के साथ न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा शामिल हैं। उच्चतम न्यायालय ने 2013 में समलैंगिक वयस्कों के बीच संबंधों को अपराध की श्रेणी में बहाल किया था। न्यायालय ने समलैंगिक वयस्कों के बीच सहमति से संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने के दिल्ली उच्च न्यायालय के 2009 के फैसले को रद्द कर दिया था। 

इसके बाद पुर्निवचार याचिकाएं दाखिल की गईं और उनके खारिज होने पर प्रभावित पक्षों ने मूल फैसले के पुन : अध्ययन के लिए सुधारात्मक याचिकाएं दाखिल की गयी थीं। सुधारात्मक याचिकाओं के लंबित रहने के दौरान अर्जी दाखिल की गई कि खुली अदालत में सुनवाई होनी चाहिए जिस पर शीर्ष अदालत राजी हो गया। इसके बाद धारा 377 को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने के लिए कई रिट याचिकाएं दाखिल की गईं। धारा 377 ‘ अप्राकृतिक अपराधों ’ से संबंधित है।            

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