Edited By Anil dev,Updated: 17 Mar, 2020 12:23 PM
: नौसेना में पुरुष और महिला अधिकारियों के साथ समान व्यवहार किए जाने की बात पर जोर देते हुए उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को बल में महिला अधिकारियों के लिए स्थायी कमीशन को मंजूरी दे दी। न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली एक पीठ ने कहा कि देश...
नई दिल्ली: नौसेना में पुरुष और महिला अधिकारियों के साथ समान व्यवहार किए जाने की बात पर जोर देते हुए उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को बल में महिला अधिकारियों के लिए स्थायी कमीशन को मंजूरी दे दी। न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली एक पीठ ने कहा कि देश की सेवा करने वाली महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने से इनकार करने पर न्याय को नुकसान होगा। पीठ ने कहा कि केन्द्र द्वारा वैधानिक अवरोध हटा कर महिलाओं की भर्ती की अनुमति देने के बाद नौसेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन प्रदान करने में लैंगिक भेदभाव नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा, जब एक बार महिला अधिकारियों की भर्ती के लिए वैधानिक अवरोध हटा दिया गया तो स्थायी कमीशन देने में पुरुष और महिलाओं के साथ समान व्यवहार होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट पहले लगा चुका है फटकार
सुप्रीम कोर्ट इस मामले में केंद्र सरकार को पहले फटकार लगा चुका है। कोर्ट ने फटकार लगाते हुए कहा था कि सामाजिक और मानसिक कारण बताकर महिला अधिकारियों को अवसर से वंचित रखना बेदभावपूर्ण रवैया है और यह बर्दाश्त के काबिल नहीं है।
स्थायी कमीशन से क्या होगा बदलाव
स्थायी कमीशन दिये जाने का अर्थ यह है कि महिला सैन्य अधिकारी अब सेवा-निवृत्ति (रिटायरमेंट) की उम्र तक सेना में काम कर सकती हैं। यदि वे चाहें तो पहले भी नौकरी से इस्तीफा (त्यागपत्र) दे सकती हैं। अब तक शार्ट सर्विस कमीशन के अंतर्गत सेना में जॉब कर रही महिला अधिकारियों को अब स्थायी कमीशन चुनने का भी विकल्प दिया जायेगा। अब महिला अधिकारी स्थायी कमीशन के बाद पेंशन की भी हकदार हो जाएंगी।
इस कमीशन के तहत ठहराया गया था महिलाओं को अयोग्य
1950 में बने आर्मी एक्ट के तहत महिलाओं को स्थायी कमीशन के लिए अयोग्य ठहरा दिया गया था। इसके 42 साल बाद यानी 1992 में सरकार ने पांच ब्रांच में महिला अधिकारी बनाने की अधिसूचना जारी की। 17 फरवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को आदेशित किया कि सेना में महिलाओं को स्थायी