EVM, VVPAT की शिकायत पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से मांगा जवाब

Edited By Yaspal,Updated: 29 Apr, 2019 07:32 PM

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उच्चतम न्यायालय ने इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों और वीवीपैट में गड़बड़ी की शिकायत गलत साबित होने पर शिकायतकर्ता पर कानूनी कार्यवाही संबंधी नियम निरस्त करने के लिये दायर याचिका पर सोमवार को निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी किया...

नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों और वीवीपैट में गड़बड़ी की शिकायत गलत साबित होने पर शिकायतकर्ता पर कानूनी कार्यवाही संबंधी नियम निरस्त करने के लिये दायर याचिका पर सोमवार को निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी किया। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने सुनील आह्या की याचिका पर केन्द्र को भी नोटिस जारी किया है। इस याचिका में कहा गया है कि चुनाव कराने संबंधी नियम 49 एमए असंवैधानिक है क्योंकि यह इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन और वीवीपैट में गड़बड़ी की शिकायत को अपराध बनाता है।
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याचिका में कहा गया है कि ईवीएम और वीवीपैट के सही तरीके से काम नहीं करने के आरोप साबित करने की जिम्मेदारी मतदाता पर डालने संबंधी प्रावधान संविधान में प्रदत्त अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार का अतिक्रमण करता है। याचिका में न्यायालय से अनुरोध किया गया है कि चुनाव प्रक्रिया में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों के ठीक से काम नहीं करने संबंधी शिकायतें दर्ज करने का निर्वाचन आयोग को निर्देश दिया जाये।
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याचिका में क्या कहा गया
याचिका के अनुसार इन उपकरणों के ठीक से काम नहीं करने संबंधी शिकायत साबित करने की जिम्मेदारी मतदाता पर है जिसे कानूनी कार्यवाही का सामना करना पड़ेगा भले ही उसने ईमानदारी से शिकायत की हो। याचिका में कहा गया है कि ईवीएम और वीवीपैट के ठीक से काम नहीं करने संबंधी किसी भी शिकायत के मामले में मतदाता को दो मत देने होते हैं, पहला गोपनीय तरीके से और दूसरा प्रत्याशियों या चुनाव एजेन्टों की उपस्थिति में। इस तरह से बाद में दूसरे लोगों की उपस्थिति में किया गया मतदान इन उपकरणों के ठीक से काम नहीं करने या गोपनीय मतदान से इतर नतीजा सबूत बन जाता है।
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याचिका के अनुसार ईवीएम और वीवीपैट के ठीक से काम नहीं करने के मामले में मतदाता को जवाबदेह बनाने की वजह से वे किसी भी प्रकार की शिकायत करने से बचेंगे जबकि यह चुनाव प्रक्रिया में सुधार के लिये जरूरी है। याचिका में यह भी कहा गया है कि इस प्रावधान से संविधान के अनुच्छेद 20 (3) का भी उल्लंघन होता है।

 

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