इच्छामृत्यु पर बोली SC-सम्मान से मरना इंसान का हक, पर शर्तों के साथ इजाजत

Edited By Punjab Kesari,Updated: 09 Mar, 2018 02:35 PM

supreme court says passive euthanasia is permissible with guidelines

मरणासन्न व्यक्ति द्वारा इच्छामृत्यु के लिए लिखी गई वसीयत (लिविंग विल) को मान्यता देने की मांग की याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि कुछ दिशा-निर्देशों के साथ इसकी इजाजत दी जा सकती है।

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज एक ऐतिहासिक फैसले में असाध्य रोग से ग्रस्त मरीजों की स्वेच्छा से मृत्यु वरण की वसीयत को मान्यता दे दी लेकिन उसने इसके लिए कुछ दिशा-निर्देश प्रतिपादित किए हैं जो इस संबंध में कानून बनने तक प्रभावी रहेंगे। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा कि असाध्य बीमारी की अवस्था में स्वेच्छा से मृत्यु वरण के लिये पहले से वसीयत लिखने की अनुमति है। संविधान पीठ ने गैर सरकारी संगठन कॉमन कॉज की जनहित याचिका पर यह फैसला सुनाया।

इच्छा मृत्यु पर कोर्ट के फैसले के Highlights

  • संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति ए.के.सीकरी, न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति अशोक भूषण शामिल हैं। इन सभी न्यायाधीशों ने प्रधान न्यायाधीश के फैसले में लिखे दिशा-निर्देशों से सहमति व्यक्त की है।

     
  • संविधान पीठ ने अपने दिशा-निर्देशों में यह भी स्पष्ट किया कि इस वसीयत का निष्पादन कौन करेगा और किस तरह से मेडिकल बोर्ड स्वेच्छा से इच्छा मृत्यु के लिए स्वीकृति प्रदान करेगा।

     
  • लाइलाज बीमारी से ग्रस्त मरीज के मामले में उसके निकटतम मित्र और रिश्तेदार पहले से ही निर्देश दे सकते हैं और इसका निष्पादन कर सकते हैं। इसके बाद मेडिकल बोर्ड इस पर विचार करेगा।

     
  • चीफ जस्टिस ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि इस प्रकरण में चार और निर्णय हैं लेकिन सभी न्यायाधीशों में सर्वसम्मति थी कि चूंकि एक मरीज को लगातार पीड़ादायक अवस्था में रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती जबकि वह जीवित नहीं रहना चाहता, इसलिए असाध्य बीमारी से ग्रस्त ऐसे मरीज की लिखित वसीयत को अनुमति दी जानी चाहिए।

     
  • शीर्ष अदालत ने2011 में मुंबई के एक सरकारी अस्पताल की नर्स अरुणा शानबाग के मामले में स्वेच्छा से मृत्यु वरण को मान्यता दी थी। न्यायालय ने इस निर्णय में ऐसे मरीज के जीवन रक्षक उपकरण हटाने की अनुमति दी थी जो सुविज्ञ फैसला करने की स्थिति में नहीं है। केन्द्र ने15 जनवरी, 2016 को कहा था कि विधि आयोग की241 वीं रिपोर्ट में कुछ सुरक्षा मानदंडों के साथ स्वेच्छा से मृत्यु वरण की अनुमति देने की सिफारिश की थी और इस संबंध में असाध्य बीमारी से ग्रस्त मरीज का उपचार( मरीजों का संरक्षण और मेडिकल प्रैक्टीशनर्स) विधेयक2006 भी प्रस्तावित है।

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