सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति में अपराधीकरण को बताया ‘सड़न’

Edited By Yaspal,Updated: 21 Aug, 2018 10:29 PM

supreme court tells criminality in politics  rottenness

राजनीति के अपराधीकरण को ‘‘सडऩ’’ करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि वह चुनाव आयोग को राजनीतिक पार्टियों से यह कहने का निर्देश देने पर विचार कर सकता है...

नई दिल्लीः राजनीति के अपराधीकरण को ‘‘सडऩ’’ करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि वह चुनाव आयोग को राजनीतिक पार्टियों से यह कहने का निर्देश देने पर विचार कर सकता है कि उनके सदस्य अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों का खुलासा करें ताकि मतदाता जान सकें कि ऐसी पार्टियों में कितने ‘‘कथित बदमाश’’ हैं।

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब केंद्र सरकार से उसे बताया कि शक्तियों के पृथक्करण की अवधारणा के मद्देनजर सांसदों को अयोग्य करार दिए जाने का मामला संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है। न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, ए एम खानविलकर, डी वाई चंद्रचूड़ और इंदु मल्होत्रा की सदस्यता वाली पीठ ने कहा, ‘‘ यह (कार्यपालिका, विधायिका एवं न्यायपालिका के बीच शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत) हर कोई समझता है।

हम संसद को कोई कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकते। सवाल यह है कि हम इस सडऩ को रोकने के लिए क्या कर सकते हैं।’’  गंभीर आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे लोगों को चुनावी राजनीति में आने की इजाजत नहीं देने की मांग करने वाली जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पीठ ने वरिष्ठ वकील कृष्णन वेणुगोपाल, जो वकील एवं भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की पैरवी कर रहे हैं, के सुझाव पर गौर किया कि अदालत चुनाव आयोग से कह सकती है कि वह राजनीतिक पार्टियों को निर्देश दे कि वे गंभीर आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे उम्मीदवारों को न तो टिकट दें और न ही ऐसे निर्दलीय उम्मीदवारों से समर्थन लें। इस मामले में एक जनहित याचिका उपाध्याय ने जारी की है।

पीठ ने कहा, ‘‘हम चुनाव आयोग को हमेशा निर्देश दे सकते हैं कि वह राजनीतिक पार्टियों से कहे कि उनके सदस्य हलफनामा देकर कहें कि उनके खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज है और ऐसे हलफनामे सार्वजनिक किए जाएं ताकि वोटरों को पता चले कि किसी राजनीतिक पार्टी में कितने ‘‘गुंडे’’ हैं। इस मामले में दलीलें 28 अगस्त को बहाल होंगी।

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