तीन तलाक को खत्म करने के लिए कानून बनाएगी मोदी सरकार

Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Nov, 2017 06:31 PM

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मुस्लिम समाज में जारी एक बार में तीन तलाक कहने की प्रथा को पूरी तरह खत्म करने के लिए मोदी सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में एक विधेयक लाने पर विचार कर रही है। सरकारी सूत्रों ने आज बताया कि ‘उचित विधेयक’ लाने अथवा मौजूदा दंड प्रावधानों में संशोधन पर...

नई दिल्ली: मुस्लिम समाज में जारी एक बार में तीन तलाक कहने की प्रथा को पूरी तरह खत्म करने के लिए मोदी सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में एक विधेयक लाने पर विचार कर रही है। सरकारी सूत्रों ने आज बताया कि ‘उचित विधेयक’ लाने अथवा मौजूदा दंड प्रावधानों में संशोधन पर विचार करने के लिए एक मंत्रीस्तरीय समिति का गठन किया गया है। इसी साल 22 अगस्त को उच्चतम न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक फैसले में तीन तलाक की प्रथा को गैरकानूनी और असंवैधानिक करार दिया था। 

तीन तलाक कहना अपराध
माना जा रहा है कि इस फैसले के बावजूद जमीनी स्तर पर एक बार में तीन तलाक कहने की प्रथा जारी है।   ‘भारतीय मुस्लिम महिला संगठन’ और दूसरे महिला अधिकार समूह यह फैसला आने के बाद से कानून बनाए जाने की मांग करते रहे हैं।  सरकार से जुड़े सूत्रों ने बताया, ‘‘उच्चतम न्यायालय के आदेश को प्रभावी बनाने के क्रम में सरकार इस मामले को आगे बढ़ा रही है और एक उचित विधेयक लाने अथवा मौजूदा दंड प्रावधानों में संशोधन करने पर विचार कर रही है जिससे एक बार में तीन तलाक कहना अपराध माना जाएगा।’’  सूत्रों ने कहा कि विधेयक तैयार करने के लिए मंत्रीस्तरीय समिति का गठन किया गया है और इस संबंध में संसद के शीतकालीन सत्र में विधेयक लाने की तैयारी है।  

एक महिला ने दी थी इस प्रथा को उच्चतम न्यायालय में चुनौती 
 तलाक-ए-बिद्दत मुस्लिम समाज में लंबे समय से चली आ रही एक प्रथा है जिसमें कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को एक बार में तीन बार तलाक बोलकर रिश्ता खत्म कर सकता है। सायरा बानो नामक एक महिला ने इस प्रथा को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी और इसी पर शीर्ष अदालत ने 22 अगस्त को फैसला सुनाया था।  मुस्लिम महिला अधिकार समूहों का कहना रहा है कि शीर्ष अदालत के फैसले के बाद भी तलाक-ए-बिद्दत की पीड़ित महिलाओं को व्यावहारिक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। तलाक होने के बाद महिलाओं के पास एकमात्र रास्ता पुलिस से संपर्क करने का है और कोई स्पष्ट कानूनी प्रावधान नहीं होने पर उन्हें न्याय मिलना मुश्किल है।   

तलाक के कई मामले आए सामने
सरकारी सूत्रों ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद भी ‘तलाक-ए-बिद्दत’ के जरिए तलाक दिए जाने के कई मामले सामने आए हैं। जागरूकता के अभाव एवं दंड की व्यवस्था की कमी के चलते ऐसा हो सकता है।   न्यायालय के फैसले के तत्काल बाद सरकार ने कहा था कि तीन तलाक पर कानून की जरूरत शायद नहीं पड़े क्योंकि न्यायालय का फैसला इस देश के कानून की शक्ल ले चुका है।   उस वक्त सरकार की यह राय थी कि भारतीय दंड संहिता के प्रावधान ऐसे मामलों से निपटने के लिए प्रर्याप्त हैं। 

‘‘न्यायालय के फैसले के बाद कानून की कोई जरूरत नहीं थी’’
 सरकार की ओर से विधेयक लाने की योजना को ‘राजनीतिक कदम’ करार देते हुए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य कमाल फारूकी ने कहा, ‘‘न्यायालय के फैसले के बाद कानून की कोई जरूरत नहीं थी। हमें लगता है कि सरकार इस मामले पर राजनीति कर रही है। यह राजनीतिक कदम है।’’  उधर, ‘भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन’ (बीएमएमए) ने तीन तलाक को लेकर विधेयक लाए जाने की सरकार की योजना का स्वागत करते हुए आज कहा कि सरकार ङ्क्षहदू विवाह कानून की तर्ज पर एक ‘मुस्लिम परिवार कानून’ बनाने के लिए ऐसा विधेयक लाये जो कुरान पर आधारित हो और देश के संविधान से भी मेल खाता हो।  
 

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