Edited By Pardeep,Updated: 26 Sep, 2019 04:58 AM
चुनाव आयुक्त अशोक लवासा के सिर पर अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे हैं। बताया जाता है कि लवासा के परिवार के सदस्यों के खिलाफ आयकर विभाग की जांच की खबरें सामने आने के बाद वह संकट में फंसे हैं। एक तरफ उनके समर्थकों ने कहा कि ‘यह राजनीतिक बदले की कार्रवाई...
नेशनल डेस्कः चुनाव आयुक्त अशोक लवासा के सिर पर अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे हैं। बताया जाता है कि लवासा के परिवार के सदस्यों के खिलाफ आयकर विभाग की जांच की खबरें सामने आने के बाद वह संकट में फंसे हैं।
एक तरफ उनके समर्थकों ने कहा कि ‘यह राजनीतिक बदले की कार्रवाई है’ क्योंकि उन्होंने लोकसभा चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह द्वारा चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन किए जाने के खिलाफ कई आपत्तियां व्यक्त की थीं। उनके विरोधियों का कहना है कि लवासा का एक चुनाव आयुक्त के रूप में व्यवहार अनुचित है। सरकार अब चाहती है कि वह अपने पद से इस्तीफा दे दें और जांच का सामना करें। उन्हें अनौपचारिक रूप से बता दिया गया है कि वह अपने संवैधानिक पद से इस्तीफा दे दें।
ऐसी खबरें सामने आई हैं कि उनकी पत्नी को उस समय 10 प्रमुख कम्पनियों के बोर्डों की स्वतंत्र निदेशक नियुक्त किया गया था, जब लवासा 2014 में मोदी के सत्ता में आने के बाद सरकार में पर्यावरण, विद्युत और वित्त सचिव के पद पर कार्यरत थे। अक्तूबर 2017 में सेवानिवृत्ति के बाद उनको जनवरी 2018 में उनकी सेवाओं के लिए चुनाव आयुक्त के पद के रूप में पुरस्कार दिया गया।
अगर सरकार के साथ उनके संबंध मधुर रहते तो वह अप्रैल 2021 में मुख्य चुनाव आयुक्त बन सकते हैं, लेकिन अब समय बदल गया है और सरकार नहीं चाहती कि वह इस प्रतिष्ठित पद पर बने रहें जबकि उनकी पत्नी के संलिप्त होने के संबंध में ‘हितों के टकराव’ के गंभीर मामले सामने आए हैं। अब उनके बेटे के वित्तीय सौदे और गुरुग्राम व नोएडा में जमीन में सौदों के मामले की खबरें सामने आ रही हैं। वास्तव में सरकार ने भाजपा की भारी जीत के बाद लवासा परिवार के सौदों की विस्तारपूर्वक जांच के आदेश दिए हैं। लवासा अब एकांत में चले गए हैं क्योंकि वह जानते हैं कि सरकार अब उनका पीछा नहीं छोड़ेगी।
सरकार महसूस करती है कि ये हितों के टकराव का स्पष्ट मामला है क्योंकि उनकी पत्नी कंपनियों की निदेशक बनी हैं जिनके पास 10 कंपनियों की स्वतंत्र निदेशक बनने की कोई योग्यता नहीं थी। लवासा परिवार के सदस्यों के करीबियों की गतिविधियों की धूल भी बाहर आ रही है इसलिए विस्तृत जांच जरूरी है। सरकार चाहती है कि इस संबंध में विस्तृत जांच की जाए कि उन कंपनियों ने लवासा की पत्नी में अधिक रुचि क्यों दिखाई क्योंकि वह केवल एक सेवानिवृत्त एस.बी.आई. अधिकारी थीं।
संवैधानिक पद पर बने व्यक्ति के खिलाफ कोई जांच नहीं की जा सकती इसलिए लवासा से कहा गया है कि वह पद से इस्तीफा दें ताकि कार्रवाई शुरू की जा सके। अगर वह खुद इस्तीफा नहीं देते तो सरकार अपनी असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल कर राष्ट्रपति को लवासा को बर्खास्त करने की सिफारिश कर सकती है। लवासा-सरकार कांड का अंतिम फैसला क्या होता है, अभी यह देखना बाकी है।