जयललिता-करुणानिधि के बाद बदली तमिल राजनीति

Edited By Pardeep,Updated: 26 Mar, 2019 10:03 AM

tamil politics change after jayalalitha karunanidhi

तमिलनाडु में 18 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के साथ-साथ राज्य की 18 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं। तमिलनाडु की राजनीति के इतिहास में यह पहला लोकसभा चुनाव होगा जिसमें कोई भी बड़ा चेहरा नहीं है। 2016 में ए.आई.डी.एम.के. अध्यक्ष जयललिता का निधन हो...

जालंधर (मनीष शर्मा): तमिलनाडु में 18 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के साथ-साथ राज्य की 18 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं। तमिलनाडु की राजनीति के इतिहास में यह पहला लोकसभा चुनाव होगा जिसमें कोई भी बड़ा चेहरा नहीं है। 2016 में ए.आई.डी.एम.के. अध्यक्ष जयललिता का निधन हो गया था और पिछले साल अगस्त में डी.एम.के. प्रमुख करुणानिधि ने आखिरी सांस ली। 

द्विध्रुवी रही है अब तक की सियासत
तमिलनाडु राज्य 14 जनवरी 1969 में अस्तित्व में आया, उससे पहले यह मद्रास स्टेट के नाम से जाना जाता था। तमिल राजनीति में हमेशा चिर प्रतिद्वंद्वी द्रमुक (डी.एम.के.) और अन्नाद्रमुक (ए.आई.डी.एम.के.) के करिश्माई नेताओं का वर्चस्व रहा है। राज्य में सत्ता परिवर्तन हमेशा इन्हीं 2 पाॢटयों के बीच होता रहा। इन 50 सालों में राज्य की सत्ता कभी डी.एम.के. के सी.एन अन्नादुरई और एम. करुणानिधि के हाथ रही तो कभी ए.आई.डी.एम.के. के एम.जी. रामचंद्रन और जे. जयललिता ने सत्ता का सुख भोगा। पिछले 30 साल से करुणानिधि और जयललिता ही तमिल राजनीति का चेहरा बने हुए थे। 

जयललिता के बाद बिखरा ए.आई.डी.एम. के.
5 दिसम्बर 2016 में जयललिता की मौत के बाद ए.आई.डी.एम.के. नेतृत्व को लेकर खींचतान शुरू हो गई थी। जयललिता की दोस्त वी.के. ससिकला ने अपने आपको उनका उत्तराधिकारी घोषित कर दिया वहीं जयललिता के करीबी पनीरसेल्वम ने शशिकला के खिलाफ विद्रोह कर दिया। ए.आई.डी.एम.के. 2 गुटों में -शशिकला  और पनीरसेल्वम ग्रुपों में बंट गया।  इसी दौरान शशिकला को आय से अधिक संपत्ति के मामले में जेल जाना पड़ गया। अगस्त 2017 में दोनों गुटों के बीच समझौता हुआ और उन्होंने मिलकर सरकार बना ली। शशिकला के भाई वी. दिवाकरण ने बागी होकर नई पार्टी ‘अन्ना द्रविडाड़ कषगम’ का गठन किया है। इससे पहले शशिकला के भतीजे टी.टी.वी. दिनाकरण ने ‘अम्मा मक्कल मुनेत्र कषगम’ (ए.एम.एम.के.) का गठन किया था।

करुणानिधि का वारिस कौन?
वैसे तो मौत से काफी पहले करुणानिधि ने एम.के. स्टालिन को अपना वारिस घोषित कर दिया था लेकिन आने वाले दिनों में उन्हें अपने भाई अझागिरी से चुनौती मिल सकती है। स्टालिन के नेतृत्व में ही डी.एम.के. ने 2016 का विधानसभा चुनाव लड़ा और पार्टी को लगातार दूसरी बार हार का सामना करना पड़ा। अझागिरी को 2014 में पार्टी से निकाल दिया गया था। अगर 2019 के लोकसभा चुनाव में स्टालिन के नेतृत्व में पार्टी फिर बुरा प्रदर्शन करती है तो अझागिरी डी.एम.के. नेतृत्व के लिए अपना दावा ठोक सकते हैं। 

2019 में बदल गई परिस्थिति
2014 लोकसभा चुनाव में जयललिता और करुणानिधि ने किसी भी राष्ट्रीय पार्टी से गठबंधन नहीं किया था लेकिन इस समय परिस्थिति भिन्न है। बड़े नेताओं के निधन के बाद राज्य की राजनीति में शून्यता आ गई है। अब दोनों पार्टी के नेताओं में वह दम नहीं कि अपने बलबूते पर पार्टी को सीटें जिता सकें। ए.आई.डी.एम.के. ने जहां भाजपा के साथ गठबंधन कर लिया है तो वहीं डी.एम.के. ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है। 

कमल हासन और रजनीकांत भरेंगे तमिल राजनीति की शून्यता 
ए.आई.डी.एम.के. और डी.एम.के. के अंदर हो रही टूट से तमिलनाडु की राजनीति में शून्यता आना स्वाभाविक है। इस जगह को वही लोग भर सकते हैं जो जयललिता और करुणानिधि की तरह करिश्माई नेता हों और जिनकी जनता में पकड़ मजबूत हो। 2 नाम जो उभर कर आते हैं वे हैं-रजनीकांत और कमल हासन। तमिल राजनीति में हमेशा तमिल सिनेमा ने प्रभावशाली भूमिका निभाई है। करुणानिधि, एम.जी. रामचंद्रन और जयललिता फिल्मी बैकग्राऊंड से थे। दक्षिण भारतीय की राजनीति की खासियत यही है कि वहां की जनता फिल्मी कलाकारों को भगवान का दर्जा देती है। रजनीकांत और कमल हासन का प्रभाव तमिलनाडु की जनता में कितना है यह किसी से छुपा नहीं है।

रजनीकांत ने राजनीति में आने की घोषणा तो कर दी है लेकिन साथ में यह भी ऐलान कर दिया है कि वह 2019 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। वहीं कमल हासन ने अपनी पार्टी ‘मक्कल नीधि मय्यम’ का गठन किया है और उनकी पार्टी इस लोकसभा में सभी सीटों से चुनाव लड़ रही है। 2019 के चुनावों में जयललिता और करुणानिधि की कमी का खलना लाजिमी है। डी.एम.के. और ए.आई.डी.एम.के. दोनों 20 सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं लेकिन सिर्फ  8 सीटों पर ही आमने-सामने हैं। इससे पता चलता है कि दोनों पार्टियों में बड़े नेताओं के निधन के बाद आत्मविश्वास की कमी आई है। क्या यह द्विध्रुवी तमिल राजनीति के बदलाव का संकेत है? 

तमिलनाडु में गठबंधन की तस्वीर  
    (39+1 पुडुचेरी सीट) 

AIADMK DMK
आल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम -20 द्रविड़ मुनेत्र कड़गम-20
बीजेपी - 5 कांग्रेस- 10 (पुडुचेरी)
पाट्टाली मक्कल कॉची-7 मरुमलार्ची द्रविड़ मुनेत्र कझगम- 1
देसिया मुरपोक्कु द्रविड़ कड़गम -4 विदुथलाई चिरुथिगाल काची -2
तमिल मनीला  कांग्रेस (मूपनार) -1 कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया-2
पुथिया तमिझगम -1 कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सिस्ट )-2
न्यू  जस्टिस पार्टी -1 इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग -1
आल इंडिया एन आर कांग्रेस -1 (पुडुचेरी)

कोंगुनाडु मक्कल देसिया काची-1

  इंदिआ जननायगा काची-1

 

पार्टी सीट जीतीं वोट%
द्रविड़ मुनेत्र कषगम 00 23.91
आल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम 37 44.92
भाजपा 01 5.56
कांग्रेस 00 4.37
बसपा 00 0.39
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ  इंडिया 00 0.55
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ  इंडिया (मार्किसस्ट) 00 0.55
देसिया मुरपोक्कु द्रविड़ कषगम 00 5.19

2014 लोकसभा चुनाव में पार्टियों का प्रदर्शन 38 सीट 


 

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