Edited By Chandan,Updated: 27 Feb, 2020 04:04 PM
घरेलू हिंसा पर आधारित फिल्म ''थप्पड़'' इस शुक्रवार रिलीज हो रही है। तापसी पन्नू इस फिल्म में मुख्य भूमिका में नजर आ रही हैं वहीं पावेल गुलाटी इस फिल्म से बॉलीवुड में अपना डेब्यू कर रहे हैं। इस फिल्म को डायरेक्ट किया है अनुभव सिन्हा ने। फिल्म देखने...
फिल्म: थप्पड़ (Thappad)
स्टारकास्ट: तापसी पन्नू (Taapsee Pannu), पावेल गुलाटी (Pavail Gulati), कुमुद मिश्रा (Kumud Mishra), रत्ना पाठक शाह (Ratna Pathak Shah), दीया मिर्जा (Diya Mirza), तन्वी आजमी (Tanvi Azmi), मानव कौल (Manav Kaul), राम कपूर (Ram Kapoor)
डायरेक्टरः अनुभव सिन्हा (Anubhav Sinha)
रेटिंग: 4 स्टार/5*
नई दिल्ली। हमारे पुरुषवादी समाज में हमेशा से ही महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा की घटनाएं घटती रही हैं। कभी ये हिंसा एक थप्पड़ के रूप में घटती है तो कभी जानलेवा स्थिति में। कभी ये हिंसा पति का हक समझकर बर्दाश्त कर ली जाती है तो कभी परिवार को बचाने की मजबूरी समझकर। ये एक ऐसा विषय है जिसपर कोई भी बात नहीं करना चाहता लेकिन अब इस मुद्दे पर चर्चा को जन्म देने आ रही है फिल्म 'थप्पड़'। जी हां, तापसी पन्नू स्टारर ये फिल्म इस शुक्रवार रिलीज हो रही है जिसे डायरेक्ट किया है 'मुल्क' और 'आर्टिकल 15' जैसी फिल्में दे चुके अनुभव सिन्हा ने। कहने को तो ये फिल्म एक थप्पड़ पर आधारित है लेकिन इसकी कहानी इससे कई ज्यादा है। अगर आप भी फिल्म देखने का प्लान बना रहे हैं तो पहले पढ़े ये मूवी रिव्यू...
महत्वपूर्ण 'कहानी' (Story of Thappad)
फिल्म में हालांकि बहुत ही कहानियां हैं जिसे एक मुख्य कहानी से जोड़ा गया है और ये कहानी है कपल अमृता (तापसी पन्नू) और विक्रम (पावेल गुलाटी) की। अमृता शादी के बाद अपनी शादीशुदा जिंदगी पर फोकस करना चाहती है और इसलिए अपने सपनों को पीछे छोड़कर एक हाउसवाइफ बन जाती है और अपनी जिंदगी में सिर्फ खुशी और सम्मान चाहती है। वहीं विक्रम अपने करियर पर पूरी तरह से फोकस्ड है और लंदन शिफ्ट होने की तैयारी में है। दोनों ही एक-दूसरे के साथ बहुत खुश होते हैं कि तभी इनकी खुशियों पर ग्रहण लगाता है एक थप्पड़। ऑफिस पॉलिटिक्स से झल्लाया विक्रम घर में चल रही एक पार्टी के दौरान सबके सामने अमृता को थप्पड़ मार देता है और ये थप्पड़ सबकुछ बदल देता है। अमृता इस थप्पड़ से शॉक्ड रह जाती है और उसकी जिंदगी ठहर सी जाती है। हर कोई अमृता को सलाह देता है कि वो इस घटना को भूल जाए लेकिन इससे बाहर नहीं निकल पाने के कारण वो उनकी बात नहीं मानती। वहीं दूसरी तरफ विक्रम के लिए ये बहुत ही नॉर्मल सी बात होती है। इस थप्पड़ और इसके खिलाफ अमृता की लड़ाई का असर सिर्फ अमृता पर नहीं बल्कि पड़ोसी (दिया मिर्जा), सास (तन्वी आज्मी), मां (रत्ना पाठक शाह), वकील नेत्रा जयसिंह (माया सराओ) और अमृता के घर की कामवाली बाई, हर किसी की सोच और उनकी जिंदगी पर पड़ता है। अब आगे अमृता की लड़ाई किन परिस्थितियों को सामने लाती है और विक्रम के साथ उसका रिश्ता किस मोड़ पर जाता है ये तो आपको फिल्म देखने के बाद ही पता चलेगा। हालांकि फिल्म की शुरुआत में आपको लगेगा कि क्या एक थप्पड़ के लिए ये सब करना जायज है लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती जाएगी वैसे-वैसे लंबे समय से महिलाओं को लेकर लोगों की सोच पर पड़ी धूल भी साफ होती जाएगी।
बेहतरीन 'एक्टिंग' (Acting)
इस फिल्म को इसके सब्जेक्ट के साथ-साथ इसके कलाकारों ने एक अलग ही ऊंचाई दी है। अमृता के किरदार को तापसी ने बहुत ही संजीदगी और प्रभावी तरीके से निभाकर एक बार फिर से अपनी एक्टिंग का लोहा मनवा दिया है। डायलॉग्स के साथ-साथ उन्होंने अपने एक्प्रेशन से काफी शानदार प्रदर्शन किया है। वहीं अमृता के पति के किरदार में पावेल गुलाटी ने इस फिल्म से अपना बॉलीवुड डेब्यू किया है और ये कहना गलत नहीं होगा कि उनकी फिल्मी करियर की शुरुआत बहुत ही बेहतरीन और असरदार है। इस रोल में पावेल काफी जचे हैं और अपने किरदार को उन्होंने पर्दे पर बहुत ही बेहतरीन तरीके से जिया है। कुमुद मिश्रा और रत्ना पाठक शाह ने पति-पत्नी के रिश्ते को बहुत ही खूबसूरती से पर्दे पर उतारा है, दोनों का ही वर्किंग एक्सपीरियंस उनके काम में साफ देखने को मिलता है। इनके साथ ही बात करें बाकी को-एक्टर्स की तो दीया मिर्जा, मानव कौल, तन्वी आज्मी, माया सराओ ने भी अपने किरदार के साथ पूरा न्याय किया है।
दमदार 'डायरेक्शन' (Direction)
'मुल्क' और 'आर्टिकल 15' जैसे फिल्में देकर समाज की रूढ़िवादी सोच पर हमेशा से सवाल उठाने वाले अनुभव सिन्हा ने इस बार फिल्म 'थप्पड़' के जरिए महिलाओं के साथ होने वाली घरेलू हिंसा की घटनाओं पर एक जोरदार थप्पड़ मारा है। इस फिल्म को अनुभव सिन्हा के मास्टरपीस में से एक कहा जा सकता है। अनुभव ने इस फिल्म में सभी रिश्तों को बड़ी ही खूबसूरती और संजीदगी से आपस में बुना है। कई कहानियां होने के बावजूद ये एक-दूसरे से जुड़ी रहती हैं और मिलकर फिल्म को एक कहानी के रूप में आगे बढ़ाती हैं। इस फिल्म को वास्तविकता से जोड़े रखने में अनुभव कामयाब रहे हैं जिसके कारण हर कोई खुद से इससे कनेक्ट कर सकता है। उनकी ये फिल्म महिलाओं के साथ होने वाली हिंसक घटनाओं पर सवाल खड़े करती है बल्कि उन सवालों के जवाब भी देती है। इस फिल्म से अनुभव ने पुरुषवादी सोच पर करारा प्रहार किया है जो हर किसी को सोचने पर मजबूर जरूर करेगी।
परफेक्ट 'म्यूजिक' (Music)
फिल्म में बस एक ही गाना है 'एक टुकड़ा धूप' जो फिल्म की कहानी में बिल्कुल फिट बैठता है। इस गाने को शब्दों में उतारा है शकील अजमी ने और संगीत से सजाया है अनुराग साइकिया ने। इसका हर एक शब्द दिल को छू लेता है। अगर बात करें फिल्म के बैकग्राउंड स्कोर की तो मंगेश ढ़ाकरे ने इस पर बेहतरीन काम किया है।
रिएलिस्टिक 'डायलॉग्स' (Dialogues)
फिल्म के सबसे मजबूत पक्षों में से एक है इसके डायलॉग्स। इसके डायलॉग्स पर बहुत ही काम किया गया है जो कि साफ दिखता है। फिल्म में कुछ ऐसे डायलॉग्स हैं जो आपको छू लेते हैं और सोचने पर मजबूर कर देते हैं। ये हैं फिल्म के 10 दमदार डायलॉग्स...
उसने मुझे मारा पहली बार...नहीं मार सकता, बस इतनी सी बात है'...
रिश्ते बनाने में इतनी एफर्ट नहीं लगती जितना उसे निभाने में लगती है...
वो चीज जिसे जोड़ना पड़े मतलब वह टूटी हुई है...
पता है उस थप्पड़ से क्या हुआ...उस थप्पड़े से सारी अनफेयर चीजें साफ-साफ दिखने लग गईं जिसे मैं अनदेखा करके मूवऑन करती जा रही थी...
पति से रोज मार खाने वाली नौकरानी का पति से सवाल करना- 'क्यों मारते हो मुझे?' और पति का जवाब- 'तुम्हें मारने के लिए लाइसेंस चाहिए क्या मुझे...'
औरतों को मन मारना पड़ता है...थोड़ा बर्दाश्त करना सीखना चाहिए।
अमृता के पिता कहते हैं- सवाल यह ज्यादा जरूरी है कि ऐसा हुआ क्यों?
हम तो हमेशा सही सोचकर करते हैं और कई बार सही करने का रिजल्ट हैप्पी नहीं होता...
विक्रम- 'बस एक थप्पड़ ही तो था। क्या करूं? हो गया ना...'
अमृता की मां कहती है, 'परिवार के लिए औरतों को अपनी इच्छा का त्याग करना पड़ता है। यह मेरी मां ने मुझे सिखाया था, उन्हें उनकी मां ने...और शायद उन्हें उनकी मां ने सिखाया होगा।'
क्या है खास
- ये फिल्म घरेलू हिंसाओं पर सवाल खड़े करती है जिसपर कई बार लोग बात करने से कतराते हैं या फिर बात करना ही नहीं चाहते।
- फिल्म वास्तविकता से जुड़ी हुई है जिससे हर कोई खुद को कनेक्ट कर सकता है।
- ये एक फैमिली फिल्म है जिसे हर किसी को देखनी चाहिए।
- अगर आप अच्छे कंटेट की तलाश में हैं तो ये फिल्म आपकी तलाश को पूरा करती है।
- ये फिल्म महिलाओं को लेकर चली आ रही सोच को बदलने की पहल करती है।
- ये फिल्म हक और अन्याय के बीच के फर्क को बहुत ही संजीदगी से दिखाती है।
- फिल्म थोड़ी स्लो होने के बावजूद आपको खुद से जोड़े रखती है।
क्यों न देखें
- फिल्म का फर्स्ट पार्ट थोड़ा स्लो लगता है लेकिन पूरी फिल्म को देखा जाए तो ये स्लो पेस कहानी के लिए जरूरी था, हालांकि इसे थोड़ा क्रिस्पी बनाया जा सकता था।
- अगर आप सीरियस और सोशल इश्यू पर बेस्ड फिल्में देखना पसंद नहीं करते हैं तो ये फिल्म आपके लिए नहीं है।
- अगर आप सिर्फ इंटरटेनमेंट के लिए कोई फिल्म देखना चाहते हैं तो आप दूसरे ऑप्शन भी एक्सप्लोर कर सकते हैं।
Source : Navodaya Times