भोपाल गैस त्रासदी : 34 साल बाद भी मंडरा रहा खौफ का साया

Edited By vasudha,Updated: 05 Dec, 2018 04:09 PM

the horror of the victims bhopal gas tragedy hanging on the head

भोपाल गैस त्रासदी को 34 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन उसका साया आज भी पीड़ितों के सिर पर मंडरा रहा है। यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के जिस संयंत्र से जहां से 2-3 दिसंबर 1984 की दरम्यानी रात निकली जहरीली गैस ने तबाही मचाई थी...

नेशनल डेस्क: भोपाल गैस त्रासदी को 34 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन उसका साया आज भी पीड़ितों के सिर पर मंडरा रहा है। यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के जिस संयंत्र से जहां से 2-3 दिसंबर 1984 की दरम्यानी रात निकली जहरीली गैस ने तबाही मचाई थी, उस संयंत्र के नजदीक आज भी पीड़ितों की दूसरी और तीसरी पीढिय़ां रह रही हैं। हालांकि अब उस हादसे की यादें कुछ धुंधली हो गई हैं लेकिन उसका खौफ बरकरार है। 
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दिल्ली में रहने वाले स्वतंत्र डॉक्यूमेंट्री फोटोग्राफर रोहित जैन ने ‘चिल्ड्रन डिसैबिलिटीज: अ फॉरगॉटेन केस ऑफ यूनियन कार्बाइड’प्रोजेक्ट के लिये दिव्यांग बच्चों और युवाओं की खौफनाक तस्वीरों को अपने कैमरे में कैद किया था। ऐसे ही व्हीलचेयर पर अपने भाई की फोटो लिये बैठे, 24 वर्षीय पीड़ित उमर खान की तस्वीर दिखाते हुए जैन कहते हैं कि वह रात तो गुजर गई, लेकिन बरसों की पीड़ा अभी शुरू हुई थी। उमर का भाई अजहर, 1984 की गैस त्रासदी के दौरान मिथाइल आइसोसायनेट गैस की चपेट में आने के बाद मस्क्युलर डिस्ट्राफी का शिकार हो गया था। पिछले साल उसकी मौत हो गई।  

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जैन ने कहा कि उमर भी अजहर की तरह मस्क्युलर डिस्ट्राफी का शिकार है। उमर ने अपने भाई को मरते देखा है, लिहाजा उसे लगता है कि वह भी ज्यादा नहीं जी सकेगा। उन्होंने कहा कि उमर के परिजन उसकी पूरी देखभाल करते हैं। वह उसे खाना खिलाते, नहलाते और दूसरी गतिविधियों में मदद करते हैं। उमर को 24 घंटे देखभाल की जरूरत है। यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के प्लांट से निकली जहरीली गैस की चपेट में आने से 15 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी जबकि पांच लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हुए थे। जैन ने कहा कि मुझे लगता था कि अब सबकुछ ठीक हो गया है, लेकिन मैंने भोपाल पहुंचकर फैक्ट्री के नजदीकी इलाकों का दौरा कर देखा कि बच्चे किन खौफनाक हालात में जी रहे हैं।

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जैन ने बताया कि हर दस में से 3-4 बच्चे किसी दिव्यांगता का शिकार हैं। इतने साल गुजर जाने के बावजूद हालात नहीं बदले हैं। सभी इलाकों के लोग बीमारियों और अक्षमता के शिकार नहीं हैं। पीड़ितों की भी स्थानीय सिविल सोसाइटियों की ओर से देखभाल की जा रही है। हालांकि अभी भी लोग दूषित भूमिगत जल पीने को मजबूर हैं। जहरीली गैस से हुए प्रदूषण ने त्रासदी के बाद जन्मे जिन बच्चों पर असर डाला उनमें 17 वर्षीय सिद्धेश भी शामिल है। सेरिब्रल पाल्सी के शिकार सिद्धेश को 24 घंटे देखभाल की जरूरत है। जैन ने बताया कि अपनी मां और नाना नानी के साथ रह रहे सिद्धेश का परिवार उसके नाना की पेंशन से चलता है जो 78 साल के हैं। कल्पना नहीं की जा सकती कि सिद्धेश का भविष्य क्या होगा?

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