भारतीय सेना का वो जवान, जिसकी वीरता के किस्से पाकिस्तान में सुनाए जाते थे

Edited By Yaspal,Updated: 07 Jul, 2018 07:49 PM

the indian army soldier whose story was narrated in pakistan

कैप्टन बत्रा का नाम तो आपने सुना होगा। जी हां वही कैप्टन बत्रा, जिन्होंने आज से 19 साल पहले भारतीय सेना के अपने एक साथी ऑफिसर को बचाते हुए अपनी जान दे दी थी।

नेशनल डेस्कः कैप्टन बत्रा का नाम तो आपने सुना होगा। जी हां वही कैप्टन बत्रा, जिन्होंने आज से 19 साल पहले भारतीय सेना के अपने एक साथी ऑफिसर को बचाते हुए अपनी जान दे दी थी। विक्रम बत्रा ने कारगिल युद्ध में अभूतपूर्व वीरता का परिचय देते हुए शहीद हुए थे। कैप्टन बत्रा को मरणोपरांत वीरता सम्मान परमवीर चक्र से समान्नित किया गया।

आइए आपको बताते हैं कैप्टन बत्रा की वीरता के वो किस्से, जिन्हें आज भी देश याद रखता है।

पालमपुर में जी.एल.बत्रा की पत्नी कमलकांता बत्रा ने 9 सितंबर 1974 को दो जुड़वां बच्चों को जन्म दिया। उन्होंने दोनों का नाम लव-कुश रखा। लव यानि विक्रम और कुश यानी कि विशाल। शुरूआती पढ़ाई के लिए विक्रम किसी स्कूल में नहीं गए थे। उनकी शुरूआती पढ़ाई घर पर ही हुई थी और उनकी टीचर बनीं उनकी मां कमलकांता बत्रा।

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19 जून 1999 को कैप्ट विक्रम बत्रा की लीडरशिप ममें इंडियन आर्मी ने घुसपैठियों से प्वाइंट 5140 छीन लिया था। ये रणनीति के हिसाब से बड़ा महत्वपूर्ण प्वाइंट था क्योंकि यह एक ऊंची, सीधी चढ़ाई पर पड़ता था। वहां छिपे पाकिस्तानी घुसपैठिए भारतीय सैनिको पर ऊंचाई से गोलियां बरसा रहे थे। इसे जीतते ही विक्रम बत्रा अगले प्वाइंट 4875 को जीतने के लिए चल दिए, जोकि सी लेवल से 17 हजार फीट की ऊंचाई पर था और 80 डिग्री पर पड़ता था।

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"ये दिल मांगे मोर"
19 जून, 1999 को कैप्टन विक्रम बत्रा की लीडरशिप में इंडियन आर्मी ने घुसपैठियों से प्वांइट 5140 छीन लिया था. ये बड़ा इंपॉर्टेंट और स्ट्रेटेजिक प्वांइट था, क्योंकि ये एक ऊंची, सीधी चढ़ाई पर पड़ता था. वहां छिपे पाकिस्तानी घुसपैठिए भारतीय सैनिकों पर ऊंचाई से गोलियां बरसा रहे थे. इसे जीतते ही विकम बत्रा अगले प्वांइट 4875 को जीतने के लिए चल दिए, जो सी लेवल से 17 हजार फीट की ऊंचाई पर था और 80 डिग्री की चढ़ाई पर पड़ता था।

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7 जुलाई 1999 को कैप्टन बत्रा की मौत एक घायल ऑफिसर को बचाते हुई थी। इस ऑफिसर को बचाते हुए कैप्टन ने कहा था। “तुम हट जाओ, तुम्हारे बीवी बच्चे हैं” अक्सर अपने मिशन में सफलता पाने के बाद विक्रम जोर से चिल्लाया करते थे, “ये दिल मांगे मोर। उनके साथी नवीन, जो बंकर में उनके साथ थे। वह बताते हैं कि अचानक एक बम उनके पैर के पास आकर फटा। नवीन बुरी तरह घायल हो गए, पर विक्रम न तुरंत उन्हें वहां से हटा दिया, जिससे नवीन की जान बच गई, लेकिन उसके आधे घंटे बाद कैप्टन बत्रा ने अपनी जान दूसरे ऑफिसर को बचाते हुए दे दी।

पाकिस्तानी सेना भी मानती थी लोहा
कैप्टन बत्रा के किस्से भारत में नहीं बल्कि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में भी मशहूर हैं। पाकिस्तानी आर्मी उन्हें शेरशाह कहा करती थी। बत्रा की 13 JAK रायफल्स में 6 दिसंबर 1997 को लेफ्टिनेंट के पोस्ट पर जॉइनिंग हुई थी। उनकी सफलता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह दो साल के अंदर कैप्टन बन गए। उसी दौरान कारगिल में भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो गया। 7 जुलाई 1999 को 4875 प्वाइंट पर उन्होंने अपने जीवन की अंतिम सांस ली। वह जब तक जिंदा रहे, अपने सैनिक साथियों की जान बचाते रहे।

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