'सबसे ज्यादा उपेक्षित गांव और किसान'

Edited By Punjab Kesari,Updated: 13 Jun, 2017 10:37 AM

the most neglected village and farmer

कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई) के राष्ट्रीय सचिव अतुल अंजान ने मध्य प्रदेश में किसानों पर हुई कार्रवाई को लेकर सीधे वहां की सरकार को कठघरे में खड़ा किया।

नई दिल्लीः कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई) के राष्ट्रीय सचिव अतुल अंजान ने मध्य प्रदेश में किसानों पर हुई कार्रवाई को लेकर सीधे वहां की सरकार को कठघरे में खड़ा किया। उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के उपवास को मृत किसानों का उपहास उड़ाना बताया। वह कहते हैं कि देश में किसान और गांव ही सबसे ज्यादा समस्याएं झेल रहे हैं। नवोदय टाइम्स के दफ्तर में अंजान ने किसान, सियासत और देश के आर्थिक हालात पर खुलकर चर्चा की।

प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश

आपके हिसाब से आज देश के हालात कैसे हैं?
देश बेहद जटिल परिस्थितियों से गुजर रहा है। कंप्यूटर-तकनीक के प्रयोग से सत्ता और उसके आसपास के लोग जो परोस रहे हैं, हकीकत से बहुत दूर है। नोटबंदी इसका एक उदाहरण है, जिसे लोग भुगत रहे हैं। दो-तीन राज्यों में जीत हासिल कर सरकार बना लेने से नोटबंदी के फैसले को नैतिक और कामयाब नहीं कहा जा सकता। वह जीत भी नैतिक नहीं थी। गोवा और मणिपुर में छल-कपट से भाजपा ने सरकार बनाई। उसे जनादेश नहीं कह सकते। यूपी-उत्तराखंड में किसानों का कर्ज माफ करने का झूठ बोलकर और जाति-धर्म की भावना उकसा कर सत्ता हासिल की। सरकार बनने के बाद सारे वादे जुमले में तब्दील हो गए हैं। यह कोई आज नहीं हो रहा है। भाजपा का चरित्र ही यही है। हर हथकंडे अपना कर सत्ता हासिल करना उसका मकसद रहता है।

भाजपा की सरकारों को कांग्रेस से कितना अलग पाते हैं..?
इसे दो प्रधानमंत्रियों की तुलना से समझा जाना चाहिए। पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह न बोलते थे और न ही डोलते थे। वर्तमान प्रधानमंत्री बोलते भी खूब हैं और डोलते भी खूब हैं। तीन साल में 40-50 देशों का भ्रमण कर चुके हैं। जल्द ही सचिन तेंदुलकर की तरह शतक लगा लेंगे। दिन में 3-4 बार कपड़े बदलते हैं। मेरी समझ से दो हजार से ज्यादा डिजाइनर कपड़ों का संग्रह मोदी जी के पास होगा। मेक इन इंडिया और स्टार्ट अप इंडिया भले ही अब तक जमीन पर कहीं नहीं दिख रहा हो, मोदी जी के डिजाइनर कपड़े सभी को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। चुनाव के दौरान 400 से ज्यादा सभाएं करने वाले नरेंद्र मोदी ने 219 सभाओं में वादा किया कि सत्ता में आने पर स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशें लागू कराएंगे। सरकार बनते ही सुप्रीमकोर्ट में शपथ पत्र दे दिया कि संभव नहीं सिफारिशों को लागू कर पाना।

देश के किसानों की स्थिति को किस रूप में देख रहे हैं..?
इस देश की सबसे बड़ी त्रासदी यही है कि किसान ही सबसे ज्यादा यहां झेल रहा है। सौंदर्यीकरण के काम शहरों में होते हैं। कभी गांवों में सौंदर्यीकरण होते देखा है। शहरों में कबाड़ घोषित हो चुकी परिवहन निगम की बसें गांवों की सड़कों पर भेज दी जाती हैं। उन्हें नई बसें क्यों नहीं दी जाती..? पीने का साफ पानी और 24 घंटे वाटर सप्लाई शहरों में होगा, गांव की आबादी आर्सेनिक युक्त पानी पीने को मजबूर है। गांवों के अस्पताल की हालत देखो या स्कूल की, सबसे बुरी स्थिति में हैं। किसान और गांव तो सरकारों की प्राथमिकता में ही नहीं है। जबकि देश की 70 फीसद आबादी गांव में रहती है। खेती से जुड़ा काम करती है। गांव के लोग ही सेना और अद्र्धसैनिक बलों में हैं, जो सीमा की रक्षा कर रहे हैं। फिर भी सरकारों की प्राथमिकता में गांव नहीं है। किसान नहीं हैं। 70 के दशक तक देश की जीडीपी में 70 फीसदी हिस्सेदारी कृषि का था। आज घट कर 17 फीसद रह गया है। खेती खत्म हो रही है। जबकि सबसे ज्यादा रोजगार परक उद्योग कृषि है। खेती बचेगी तो किसान बचेगा। किसान बचेगा तो गांव बचेगा। गांव बचेगा तो देश बचेगा।

नोटबंदी से बंद हो गए उद्योग
नोटबंदी को लेकर आप क्या सोचते हैं..?
नोटबंदी करके सरकार फंस गई है। साढ़े 16 लाख करोड़ रुपए रिजर्व बैंक में वापस आ जाने के बाद सरकार यह बताने की स्थिति में नहीं है कि इसमें से कितना कालाधन है। दुनियाभर के देशों में 7-8 फीसदी लिक्विडिटी रहती है। लेकिन यहां कालाधन, नकली नोट और आतंकवाद के नाम पर सरकार ने नोटबंदी कर देश को गर्त में धकेल दिया है। हजारों छोटे-मझोले उद्योग बंद हो गए और लाखों लोग बेरोजगार कर दिए गए हैं।

किसान को उपज का उचित मूल्य नहीं मिल रहा
एमपी में अपना हक मांगते किसानों पर गोली चलने को किस रूप में देखते हैं..?
भाजपा की केंद्र में और राज्य में बैठी सरकारें, जनता की सरकार नहीं हैं। यह बिचौलियों की सरकार है। किसान को उसकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है और उपभोक्ता को वही वस्तु पचास से सौ गुने दाम पर बेचा जा रहा है। किसान उपज की कीमत मांगे तो उसे गोली मारी जा रही है और कॉरपोरेट घरानों का अरबों-खरबों का टैक्स माफ कर दिया जा रहा है। किसानों का कर्ज माफ करने का वादा करने वाली भाजपा सत्ता में आने पर सुप्रीमकोर्ट में कहती है, वह नहीं कर सकती। यह कैसी नैतिकता है कि अहिंसक आंदोलन कर रहे निहत्थे किसानों पर गोलियां बरसाई जा रही हैं और बाद में मुख्यमंत्री खुद उपवास पर बैठ कर किसानों की मौत का उपहास उड़ा रहे हैं।

यूपी सरकार विपरीत धड़ों की दुरभिसंधि
उत्तर प्रदेश में योगी की भाजपा सरकार को किस रूप में देख रहे हैं..?

योगी और भाजपा के विचारों में कोई मेल नहीं है। यह सत्ता के लिए दो विपरीत धड़ों की दुरभिसंधि है। यह भी अफसोसनाक स्थिति है कि प्रचंड बहुमत पाने वाली भाजपा के पास यूपी में अपनी पार्टी का एक विधायक नहीं है, जिसे वह मुख्यमंत्री बना पाती। योगी आदित्यनाथ न भाजपा के हैं और न ही उनका भाजपा के विचारों से कोई मेल है। वे हिंदू महासभा और उसके विचारों से जुड़े रहे हैं।

सिंगूर घटना वाम सरकार की बड़ी भूल
वामपंथ क्यों सिमट रहा है..?

सिंगूर की घटना वामपंथी सरकार की सबसे बड़ी भूल थी। पश्चिम बंगाल में 25 साल तक राज करने वाली ज्योति बसु सरकार बदलती सोच का आंकलन करने में कहीं चूक गई। लोगों की सोंच संकीर्ण होती जा रही है। अलग तरह का पूंजीवाद पनप रहा है। सामाजिक सरोकार खत्म हो रहे हैं। पूरे समाज में कोलाहल व्याप्त है। विचार भी भाग रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय पूंजी का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है। बोलचाल की भाषा से लेकर पहनावे तक पर इसका असर साफ दिखाई देने लगा है। पहले फाइनेंस कैपिटल की बात होती थी। अब कैपिटल फाइनेंस की बात हो रही है। इंडस्ट्रियल कैपिटल भी इसे कहते हैं। बदलते दौर में वामपंथ कास्ट, कम्यूनलिज्म और कैश को आत्मसात नहीं कर सका। हमारी दुविधा यह भी है कि अगर हम इन तीनों के कांबीनेशन को आत्मसात करते हैं तो हमारी बात भी चली जाएगी और जात भी। लेकिन हमें बदलाव का भरोसा है। देश और दुनिया में वामपंथ नए रूप में अपनी जड़ें मजबूत कर रहा है।

सालभर में जीएसटी के उलट खड़ें होगे राज्य
जीएसटी का बड़ा शोर मचा हुआ है। आप क्या मानते हैं..?

जीएसटी इस देश के लिए एक बड़ी समस्या बनने जा रहा है। सालभर बाद देखिएगा, वही राज्य इसके खिलाफ खड़े मिलेंगे, जो आज अपनी सहमति दे रहे हैं। इससे महंगाई बढऩी तय है। उदाहरण के तौर पर यूरिया के दाम में 140 रुपये बोरी की दर से दाम बढ़ जाएगा तो पोटाश की कीमत में 226 रुपये का इजाफा होगा। अब इतनी मंहगी खाद होगी तो खेती की लागत पर क्या असर आने वाला है, सहज आंदाजा जा सकता है। जीएसटी से सबसे ज्यादा ग्रामीण किसान और मध्यम आय वर्ग प्रभावित होने वाला है। देश का सबसे बड़ा उपभोक्ता ग्रामीण है, जिनके वोटों से सरकारें बनती हैं।

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