9 बड़े राज्यों के पास सत्ता की चाबी

Edited By Seema Sharma,Updated: 14 Mar, 2019 10:29 AM

the power of key hand in this 9 states

मोदी लहर की बदौलत वर्ष 2014 में भाजपा 1984 के बाद अपने दम पर लोकसभा में प्रचंड बहुमत हासिल करने वाली पहली पार्टी बनी थी। सवाल यह है कि 2019 में भी क्या भाजपा अपना पुराना प्रदर्शन दोहरा पाएगी?

नई दिल्ली: मोदी लहर की बदौलत वर्ष 2014 में भाजपा 1984 के बाद अपने दम पर लोकसभा में प्रचंड बहुमत हासिल करने वाली पहली पार्टी बनी थी। सवाल यह है कि 2019 में भी क्या भाजपा अपना पुराना प्रदर्शन दोहरा पाएगी? ‘फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट (एफ.पी.टी.पी.) चुनाव प्रणाली में कुछ भी कहना मुश्किल है। हालांकि 9 बड़े राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान में उसका प्रदर्शन मायने रखेगा। या यूं कहें कि सत्ता की चाबी इन्हीं 9 राज्यों के पास रहेगी और भाजपा का भविष्य भी वहां के नतीजे ही तय करेंगे। 2014 में यू.पी.ए.-2 के भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी थी।

शानदार प्रदर्शन दिलाएगा ज्यादा सीटें
लोकसभा की 543 सीटों में से आधी से ज्यादा (278 सीटें) इन्हीं 9 राज्यों में आती हैं। भाजपा के लिए ये राज्य कितने अहम हैं इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1989 से लेकर 2014 तक हुए सभी लोकसभा चुनावों में पार्टी को मिली कम से कम 70 प्रतिशत सीटें इन्हीं राज्यों की थीं। 2014 में तो उसे प्राप्त कुल 282 लोकसभा सीटों में इन राज्यों की हिस्सेदारी 80 प्रतिशत के करीब पहुंच गई थी।

क्या है एफ.पी.टी.पी.

  • ‘फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट’ एक चुनाव प्रणाली है जिसमें किसी सीट पर सबसे ज्यादा वोट पाने वाले प्रत्याशी को वहां से विजेता घोषित कर दिया जाता है।
  • एफ.पी.टी.पी. के तहत संभव है किसी राज्य में या फिर राष्ट्रीय स्तर पर समान संख्या में वोट हासिल करने वाले दलों के सीटों का आंकड़ा जुदा हो।
  • मिसाल के तौर पर पिछले चुनावों में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 2014 के भाजपा के वोट प्रतिशत से ज्यादा था, बावजूद इसके वह अकेले दम पर बहुमत हासिल नहीं कर पाई थी।
     

आसान नहीं राह
आंकड़े दर्शाते हैं कि 2019 में इन 9 बड़े राज्यों में भाजपा की राह आसान नहीं रहने वाली है। महाराष्ट्र को छोड़ दें तो बाकी सभी राज्यों में 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद हुए विधानसभा चुनावों में पार्टी के वोट प्रतिशत में गिरावट आई है।

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