पश्चिम बंगाल का दोहराता इतिहास बन रहा ममता दीदी की बैचेनी का कारण

Edited By rajesh kumar,Updated: 11 Dec, 2020 05:14 PM

the repeating history of west bengal is causing mamata didi s restlessness

पश्चिम बंगाल ने कभी किसी को अधूरा दिल नहीं दिया। बह चाहे राजनीति हो अथवा धर्म। भले ही समय समय के क्षत्रपों ने बंगाल के साथ घात ही किया हो। आजादी के बाद कांग्रेस शासन के दौरान ही बंगाल को अकाल के दिन देखने पडे़ थे। 1977 के बाद पलटती सत्ताओं ने भी...

नई दिल्ली(सुधीर शर्मा): पश्चिम बंगाल ने कभी किसी को अधूरा दिल नहीं दिया। बह चाहे राजनीति हो अथवा धर्म। भले ही समय समय के क्षत्रपों ने बंगाल के साथ घात ही किया हो। आजादी के बाद कांग्रेस शासन के दौरान ही बंगाल को अकाल के दिन देखने पडे़ थे। 1977 के बाद पलटती सत्ताओं ने भी बंगाल को कुछ नहीं दिया। तत्पश्चात माकपा सरकार के सस्ती जिन्दगी की चाहत में बंगाल ने खोया बहुत पाया कुछ खास नहीं। अब वहां की जनता फिर एक बार करवट बदल कर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को आजमाने का मन बना लिया लिया है। चुनाव होने वाले हैं, भाजपा ने ममता के आते ही राज्य में अपनी विसात बिछाना शुरु कर दिया था, उसके अनुकूल परिणाम भाजपा को इन दिनों दिखने लगे हैं। इसी क्रम में  भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर बंगाल प्रवास के दौरान हुए हमले को लेकर ममता बनर्जी ने जिस तरह से हमले को नौटंकी करार दिया। वह राजनीति के पंडितों को शकते में डालने वाला है। वह भी भारत जैसे संघीय ढाचे को लेकर और चिंतित करता है। कि वे मात्र एक राज्य की मुख्यमंत्री हैं, इसकी जिम्मेदारी से जांच की बात कहनी चाहिए थी। पर उन्होंने स्वयं इस हमले पर प्रश्न उठा डाला।

नड्डा पर हुए हमले का जवाब देना होगा ममता सरकार को
ममता ने जो प्रश्न उठाये वे हिला देने वाले हैं कि बीएसएफ और सीआरपीएफ के रहते कोई उनको कैसे छू सकता है? लगे हाथ राजधानी दिल्ली में बन रहे नए संसदभवन की योजना की भी उन्होनें आलोचना कर डाली कि यह पैसा अभी किसानों को दिया जाना चाहिए। वे इतने में ही नहीं रुकी अपितु यह भी कह डाला कि स्वामी विवेकानंद के हिंदू धर्म का अनुसरण करने वाली टीएमसी आरएसएस को हिंदू धर्म का धारक नहीं मानती आदि। यद्यपि ‘जेड’ श्रेणी की सुरक्षा कमांडो की सुरक्षा को कोई कैसे आसानी से भेद सकता है, यह बात जरूर चिंतनीय है। क्योंकि हमला तो हुआ है, जो नहीं होना चाहिए। इस पर गृहमंत्री अमितशाह ने संज्ञान लेते हुए गृह मंत्रलय के अधिकारियों को निर्देश जारी कर पश्चिम बंगाल सरकार से रिपोर्ट मांगी हैं। इसके बावजूद देश की सबसे सशक्त पार्टी के अध्यक्ष की सुरक्षा मेें हुई इस चूक पर कोई सहानुभूति व्यक्त किये बिना एक सिरे से नकार देना किसी मुख्यमंत्री जैसी पदासीन जिम्मेदार को शोभा नहीं देेता। भले जेपी नड्डा ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी को सीधी टक्कर दे रही पार्टी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के अध्यक्ष हैं। उनपर हमला ममता बनर्जी के राज्य में हुआ, ऐसे में जबाब तो देना ही पडे़गा। भले कानूनी दृष्टि से सबकुछ आया गया हो जाय, पर जनता कैसे इसे भुला सकती है।

एकला चलों रे का नारा इन दिनों धराशायी
वास्तव में ममता की यह बौखलाहट उनकी अपनी पार्टी टीएमसी की प्रान्त की जनता पर ढीली होती पकड़ का परिणाम है। बीजेपी की जनलोकप्रियता संबंधी फंदा जैसे जैसे ममता के गले पर बढ़ता जाता है, वैसे वैसे वे आगबबूला होंगी और बौखलायेंगी भी। फिर तो ममता हैं, उनका एकला चलों रे का नारा उन्हें इन दिनों धराशायी जो होता दिख रहा है। यद्यपि कभी उन्हें उनके बंगाल ने अपना दिल पूरी तरह से दिया था, पर अब वह दिल ममता से टूट रहा है। तो ममता कभी बीजेपी पर, कभी केंद्र सरकार पर, कभी जनता पर, कभी अपने ही कार्यकर्ताओं पर बौखलायेंगी, यह बौखलाहट अभी तो शुरुवात है। चुनाव आने तक कौर बढेगी। हम पुनः कहते हैं कि बंगाल ने कभी किसी को अधूरा दिल नहीं दिया। जब दिया तो फिर किसी दूसरे को उसने बर्दास्त नहीं किया। जिसे उखाड़ा उसके प्रति एक दम सौतिया डाह जैसी तेजगी बंगाल वासियों में देखने को मिली। कांग्रेस, कम्युनिस्ट, टीएमसी अर्थात आज ममता दीदी इसी तरह की एकक्षत्रप महारानी ही तो हैं।

ममता दीदी इतिहास को दोहराता देख बैचेन
कभी माकपा को उखाड़ फेंकने के लिए जो खेल ममता ने खेला था, वही आज उनके साथ बीजेपी खेल रही है। ममता दीदी इतिहास को दोहराता देख बैचेन हैं। वे ऊपर से भले तेज तर्रार दिख रही हैं, पर उनके अंदर वाला स्पष्ट संदेश दे रहा है कि अभी नहीं तो तभी विदाई के लिए तैयार रहना ही होगा। माकपा सरकार के दौरान सेज ईकोनामिकल जोन बने सिंगूर से सम्भवतः नैनो कम्पनी को अपना डोरा दंडा उखाड़ने के लिए इन्हीं ममता बनर्जी ने ही तो विवश किया था। उन दिनों तत्कालीन सरकार के साथ ममता यही सब बिना बात के बटंगण करती थीं, जो आज उन्हें बीजेपी करती दिख रही है। ममता जानती हैं कि बीजेपी यदि फील्ड में टिकी रही तो ममता सरकार का जाना तय है। क्योंकि कभी ममता द्वारा टिके रहकर पश्चिम बंगाल की तत्कालीन सरकारों की हर अच्छी से अच्छी चादर को फाड़ने, उसे कूड़ा बनाकर अपने लिए सत्ता का रास्ता साफ करने का अनुभव ही आज उन्हें पूरे दम खम के साथ बीजेपी आजमा रही है। फिर बीजेपी आजमाए क्यों न और ममता विरोध में सभी अस्त्रें का प्रयोग क्यों न करें। भाई सवाल तो दोनों के लिए सत्ता से जुड़ा है न। ध्यान रहे बीजेपी को वहां के जनमानस में प्रवेश करने का अच्छा अवसर ममता ने खुद दिया है, वह भी अपने अहम पूर्ण प्रतिक्रिया वादी स्वभाव के चलते। बीजेपी ने बंगाल की मनोभूमि के साथ ममता के मनोदशा का भी गहरा अध्ययन किया और फिर पूरे प्रान्त भर में अपनी भूमिका निर्धारित की।

हिंदुत्ववादी राजनीति में उलझी ममता 
लोग कहते हैं कि बीजेपी हिंदुत्व की राजनीति करती है। तो यह कोई नई बात नहीं, पर बीजेपी ने अपनी हिंदुत्ववादी राजनीति में ममता जैसी चालाक को फंसा लिया। यह बड़ी बात है। बीजेपी की चाल में वे ऐसे उलझती गई कि तेजतर्रार कड़क प्रशासक, सम्प्रदाय मुत्तफ़ दिखने वाली ममता साफ्रट हिंदुत्व की प्रतिनिधित्व करती दिखने लगीं। यह भी उनके लिए घातक साबित हुआ। उनकी छवि को दोहरा धक्का तब लगा। जब वे विपक्ष की भूमिका निभाती बीजेपी के दांव को तोड़ने के लिए प्रशासन की मुस्तैदी की जगह खुद अपने कार्यकर्ताओं की प्रतिरोधक रैली निकलकर बीजेपी को काउंटर करने में लग गईं। पूर्व में हुए दंगों में प्रतिक्रियात्मक रैलियों की भूमिका कम नहीं थी। जिसके चलते दुर्गा पूजा जैसे कार्यक्रम प्रभावित हुए। जबकि धर्म विरोधी माने जाने वाले कम्युनिस्ट माकपा शासन में भी दुर्गा पूजा के दौरान हिन्दू मुश्लिम सभी मिलकर एकता का संदेश देते थे। अन्य दल की तरह आज की बीजेपी तहेदिल से समझ चुकी है कि कमाल करने की चाभी इस देश में सीधे जनता के हाथ में है। उचित हो या अनुचित बस जनता को अपनी ओर मोड़ने में कामयाब होना चाहिए। वैसे इस दौर की जनता भी कमाल की हो गयी है। उसे न सत्ता से मतलब, न कामों की अच्छाई बुराई से। उसे बस दलों को भिड़ते देखने में आनंद मिलना चाहिए।

ममता लाख कोशिश करें जनता अब बीजेपी को लाएगी
मजेदार बात एक और कि वह समय बहुत पीछे छूट गया, जिसमें जनता को उसकी रोटी कपड़ा मकान, उत्थान से मतलब था। इस यथार्थ वादी मुद्दों की पूर्ति करने में ही सरकार अपना तेल निकाल कर जनता के सामने इस भाव से रखती थी कि वह आगे चांस देगी। पर बंगाल गहरी भावनाशीलों का प्रान्त है। वहां भावनाओं को मोड़ सके तो सत्ता आपकी ही है। कांग्रेस से लेकर कम्युनिस्ट, आज ममता दीदी सबने यही तो किया। इसीलिए जनता गरीबी में जीवन जीकर भी इन्हें क्रमशः सत्ता सौंपती रही। अब बीजेपी भी जन भावनाओं को मोड़ने के लिए उसी रास्ते को आजमा रही है, तो ममता क्यों परेशान हो रही हैं। ध्यान रहे कम्युनिस्ट के जाने और ममता के आने के साथ ही बीजेपी ने जिस हिंदुत्व के इंजेक्शन को लोगों की भावनाओं में लगाया था। उसके परिणाम सत्ताफल रूप में आने का समय आ गया है। अब ममता लाख कोशिश करें जनता देर सबेर बीजेपी को लाएगी। उसी के लिए 120 दिवसीय प्रोग्राम बनाया है। ममता के आंखों के सामने उनके हाथ से बंगाल स्वतः बीजेपी के झोली में खुदबखुद आ गिरेगा। इसलिए ममता बनर्जी जी सत्ता की ममता को छोड़कर अब तो बीजेपी के बाद के लिए सोचना शुरू करें।

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