ऑफ द रिकॉर्डः ‘एंकर’ की नौकरी जाने के पीछे की कहानी!

Edited By Seema Sharma,Updated: 12 Aug, 2018 10:17 AM

the story behind the  anchor  job

पुण्य प्रसून वाजपेयी अचानक सुर्खियों में छा गए। यद्यपि पहले वह आज तक टी.वी. चैनल से बर्खास्त किए गए और अब ए.बी.पी. न्यूज चैनल से उनका ग्राफ कई गुना बढ़ गया। इस घटनाक्रम को जानने वाले प्रत्येक व्यक्ति का कहना है कि प्राइम टाइम एंकर के रूप में दोनों...

नेशनल डेस्कः पुण्य प्रसून वाजपेयी अचानक सुर्खियों में छा गए। यद्यपि पहले वह आज तक टी.वी. चैनल से बर्खास्त किए गए और अब ए.बी.पी. न्यूज चैनल से उनका ग्राफ कई गुना बढ़ गया। इस घटनाक्रम को जानने वाले प्रत्येक व्यक्ति का कहना है कि प्राइम टाइम एंकर के रूप में दोनों चैनलों से वाजपेयी की नौकरी इसलिए गई है क्योंकि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के साथ सीधा टकराव लेना शुरू कर दिया था। मोदी के साथ दो-दो हाथ करने का साहस करने वाले को यह पता होना चाहिए कि प्रत्येक शक्ति सर्वशक्तिमान व्यक्ति के पास होती है। इसमें संदेह नहीं कि वाजपेयी मोदी, मोदी और मोदी के खिलाफ अपने प्राइम टाइम शो के दौरान हर रोज एक के बाद एक कहानी चलाते थे। यह मामला जब सत्ता पक्ष के पास पहुंचा तो उसने आज तक के प्रबंधकों को बताया कि यह एक अभियान पत्रकारिता है और मोदी की आलोचना करने के लिए यह स्वच्छ पेशेवर ढंग नहीं।

अंतत: वाजपेयी की छुट्टी हो गई और उन्होंने ए.बी.पी. न्यूज चैनल का हाथ थामा, जहां उन्हें पूरी खुली छूट दी गई और वह निडर हो गए और मोदी पर तीखे हमले बोलने लगे। समूचे भाजपा नेतृत्व ने ए.बी.पी. प्रबंधकों को बताने के लिए बड़ी कोशिश की। यह मोदी के खिलाफ सबसे बदतर अभियान है मगर प्रबंधकों ने 4 महीने तक वाजपेयी को नहीं रोका। यह बहुत बड़ा समय था। अचानक क्या हुआ! किसी को मालूम नहीं। अब यह स्पष्ट है कि मोदी-शाह टीम ने वाजपेयी को बाहर का रास्ता दिखाना यकीनी बनाया। एक अन्य घटना यह बताई जा रही है कि बाबा रामदेव जो टी.वी. चैनलों को सबसे अधिक विज्ञापन देते हैं, ने ए.बी.पी. न्यूज चैनल की पेमैंट रोक दी। यह राशि करोड़ों रुपए थी। बाबा इस बात को लेकर भी नाराज हैं कि ए.बी.पी. न्यूज ने उनके खिलाफ एक बड़ी खबर दी है जबकि वह उदारता के साथ विज्ञापन देते हैं। पेमैंट बंद हो गई और प्रबंधकों को झुकना पड़ा लेकिन भीतरी सूत्रों का कहना है कि इसके पीछे वास्तविक कहानी कुछ और ही है। ये सभी ताकतें एकजुट होकर काम कर रही थीं और ए.बी.पी. प्रबंधकों को काफी कठिन दौर से गुजरना भी पड़ा और उन्होंने किसी की बात नहीं सुनी।

वे इस बात के लिए चिंतित हुए कि चैनल की टी.आर.पी. तेजी से कम होने लगी। ए.बी.पी. की टी.आर.पी. 18 महीनों में नंबर एक से गिर कर प्राइम टाइम में चौथे स्थान पर आ गई। प्रबंधकों ने मुख्य संपादक को इस संबंध में नोटिस दिया जिन्होंने स्थिति को सही करने के लिए 3 महीने का समय मांगा। सम्पादक वाजपेयी को ले आए और टी.आर.पी. 5वें स्थान पर पहुंच गई। मुख्य संपादक को एक और महीने का समय दिया गया मगर टी.आर.पी. गिर कर छठे स्थान पर पहुंच गई। अंतत: टीम को बाहर का रास्ता दिखाया गया। इसमें सच्चाई कितनी है कोई नहीं जानता मगर मीडिया की दुनिया में स्थिति बदतर होती जा रही है।

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