Edited By ,Updated: 04 Dec, 2015 11:09 AM
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि परेशानी के वक्त में पत्नियों की देखभाल करना पुरुषों का प्रमुख कत्र्तव्य है और बीमार जीवन साथी की मदद का वायदा विवाह विच्छेद के समझौते का वैध आधार नहीं है।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि परेशानी के वक्त में पत्नियों की देखभाल करना पुरुषों का प्रमुख कत्र्तव्य है और बीमार जीवन साथी की मदद का वायदा विवाह विच्छेद के समझौते का वैध आधार नहीं है। न्यायमूर्ति एम.वाई. इकबाल और न्यायमूर्ति सी. नागप्पन की पीठ ने कहा कि पत्नी की मदद और उसका संरक्षण करना पुरुष की पहली जिम्मेदारी है।
न्यायालय ने परस्पर सहमति के बावजूद पति को तलाक की अनुमति देने से इंकार कर दिया। न्यायालय ने कहा कि उसकी पत्नी स्तन कैं सर से ग्रस्त थी और इसलिए महंगे इलाज की जरूरत को देखते हुए ही उसने समझौते के लिए सहमति दी थी।
पीठ ने कहा कि एक हिन्दू पत्नी के लिए उसका पति उसका भगवान है और उसकी जिंदगी अपने पति के लिए नि:स्वार्थ सेवा और समर्पण के लिए हो जाती है। वह अपनी जिंदगी और प्यार ही सांझा नहीं करती है बल्कि अपने पति के खुशी और गम तथा कठिनाइयों को भी सांझा करती है।