जम्मू-कश्मीर में ये है अमित शाह का 'शाही प्लान'

Edited By vasudha,Updated: 24 Jun, 2018 12:46 PM

this is amit shah plan in jammu and kashmir

जम्मू से श्रीनगर पहुंचने के लिए भाजपा ने लद्दाख रुट पकड़ा है। हालांकि यह सफर लम्बा जरूर है लेकिन अमित शाह के प्लान को लेकर मिल रहे संकेतों पर जाएं तो भाजपा ने कश्मीर में यही रास्ता अपनाया है...

नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा): जम्मू से श्रीनगर पहुंचने के लिए भाजपा ने लद्दाख रुट पकड़ा है। हालांकि यह सफर लम्बा जरूर है लेकिन अमित शाह के प्लान को लेकर मिल रहे संकेतों पर जाएं तो भाजपा ने कश्मीर में यही रास्ता अपनाया है। महबूबा सरकार से किनाराकशी करने के एक सप्ताह के भीतर ही अमित शाह ने जम्मू में रैली करके यह साफ़ कर दिया है कि भाजपा जम्मू-कश्मीर में अपने दम पर सत्ता पाने के लिए गंभीर है। शाह ने समर्थन वापसी का जो कारण बताया है उससे कई कुछ साफ हो जाता है। भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि केंद्र ने जम्मू कश्मीर के लिए कई योजनाएं और आर्थिक  सहायता भेजी। लेकिन महबूबा मुफ़्ती ने  उन्हें जानबूझकर आगे नहीं बढ़या। खासकर जम्मू और लद्दाख के विकास की योजनाओं पर अमल नहीं किया गया। अब इसे सियासी चश्मे से देखें तो साफ़ हो जायेगा कि अमित शाह क्या कहना चाह  रहे हैं। 
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जम्मू कश्मीर में विधानसभा की सीटें तीन हिस्सों में बंटी हैं। कुल 87 विधानसभा सीटों ( गुलाम कश्मीर को मिलाकर 111 ) में से कश्मीर वाले हिस्से में 46 सीटें हैं, चार लद्दाख रीजन में हैं जबकि जम्मू वाले हिस्से में 37 सीटें हैं। यह विभाजन विशुद्ध सियासी नजरिये (आप चाहें तो इसे सामुदायिक भी पढ़ सकते हैं ) से किया गया था ताकि किसी भी सूरत में  कश्मीर वालों के हाथ सत्ता बनी रहे। स्टेट सब्जेक्ट जैसे नियम भी इसी स्कीम को शक्ति देते हैं। सरकार बनाने के लिए 44 सीटें चाहिए होती हैं। यानी सीधे सीधे ध्रुवीकरण कराओ, जम्मू या लद्दाख में कोई भी जीते कश्मीर  वाले ही सरकार बना जायेंगे। होता भी यही रहा है। आप पिछले किसी भी चुनाव के परिणाम उठाकर देख लें। दिलचस्प ढंग से  जम्मू और लद्दाख वाले हिस्सों में भारत और भारतीयता का समर्थन करने वाली पार्टियां प्रभावी रही हैं। इन दोनों इलाकों की जनसंख्या भी कश्मीर के मुकाबले कहीं ज्यादा है लेकिन इसके बावजूद सीटें इस तरह से दी गयी हैं कि अगर यहां की सभी सीटें भी एक ही दल जीत जाए तो भी उसकी सरकार नहीं बन पाए। 
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पिछले चुनाव में बीजेपी को सभी 25 सीटें जम्मू-लद्दाख रीजन में ही मिली थीं। कश्मीर की 46 में से 28 सीटें पीडीपी ने जीती थीं। ऐसे में अमित शाह ने जम्मू और लद्दाख की अनदेखी का आरोप लगाकर एक तरह से इन इलाकों पर पकड़ बनाये रखने का पैंतरा फेंका है। भाजपा इस क्षेत्र में अपनी ताकत बढ़ाने पर फोकस कर रही है। इस काम में संघ  भीतर-भीतर उसके लिए माहौल बना रहा है। कोशिश यही है कि 41 की 41 सीटों परभाजपा या उसके हिमायती जीतें। ऐसे में अगर कश्मीर में चार-पांच सीटों का भी जुगाड़ हो गया तो श्रीनगर पर कब्जा हुआ समझो। इस लिहाज़ से भाजपा आधा दर्जन सीटों पर कश्मीर में जहां खुद  जीत की संभावना देख रही है वहीं उसकी नज़र कश्मीर में जीतने वाले आजाद उम्मीदवारों पर भी है। पिछली बार भी जो 11 आज़ाद जीते थे उनमे से सात कश्मीर से थे। तो यह है श्रीनगर पहुंचने का 'शाही प्लान'। 
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कांग्रेस की जगह लेने की जुगत 
दिल्ली के 5 दीन दयाल मार्ग के सूत्रों की मानें तो भाजपा घाटी में कांग्रेस को रिप्लेस करने की रणनीति पर भी काम कर रही है। कांग्रेस  जम्मू-कश्मीर में अब तक का सबसे बड़ा नुक्सान झेल रही है। पिछले चुनाव में कांग्रेस को महज 12 सीटें मिली थीं और वो प्रतिपक्षी दल के दर्जे को भी तरस गयी थी. तीन साल में घाटी में कांग्रेस  की सक्रियता भी  नगण्य रही है। शायद पार्टी को एहसास ही नहीं था कि सरकार इतनी जल्दी गिर जाएगी। ऐसे में उसके नेता सुस्ती में रहे और अब जब चुनाव लोकसभा के साथ होंगे तो उसके नेताओं की बयानबाजी ने उसे गफलत में डाल दिया है। खासकर सैफुद्दीन सोज के आज़ादी वाले ब्यान के बाद तो कांग्रेस बैकफुट पर है। भाजपा इसी का लाभ उठाकर कश्मीर रीजन में कांग्रेस को रिप्लेस करना चाहती है। अगर यह प्लान कामयाब होता तो दो लाभ होंगे। पहला घाटी में भाजपा की एंट्री और  दूसरा कांग्रेस मुक्त कश्मीर, जिसका लाभ लोकसभा में जे एन्ड के से अन्यत्र भी मिलेगा ।  
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सेना से संबल हासिल करना भी प्लान में 
दिलचस्प ढंग से  जम्मू-कश्मीर में सत्ता पाने के लिए भाजपा ने सेना से भी संबल हासिल करने का प्लान बनाया है।  राज्यपाल शासन में सेना की कार्रवाई को बढ़ाकर भाजपा उसका लाभ पूरे देश में लेना चाहती है। घाटी में ब्लैक कैट कमांडोज की तैनाती करके उसने इसका संकेत भी दे दिया है। आतंकियों के शव परिजनों को नहीं सौंपने का फैसला भी हिंसा थामने की दिशा में अहम फैसला है। थलसेना अध्यक्ष बिपिन रावत ने एक तरह से श्रीनगर में डेरा डाल दिया है।  यानी आने वाले दिनों में आतंकियों पर और कड़ी कार्रवाई होगी ही। सीमा पर पाक फायरिंग का भी कड़ा जवाब दिया जा रहा है। कोई बड़ी बात नहीं गुलाम कश्मीर में एक आध सर्जिकल स्ट्राइक और हो जाए। यह सारी चीजें केंद्र सरकार  के प्रति जनसमर्थन बढ़ाने वाली ही साबित होंगी। 


 

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