कोविड-19 से मरे लोगों की जिम्मेदारी उठा रहा यह पावरलिफ्टर, सम्मान के साथ देता है विदाई

Edited By vasudha,Updated: 25 Jul, 2020 02:06 PM

this powerlifter is taking responsibility of dead people from covid 19

कोरोना महासंकट ने लोगों का रहना सहना ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की सोच को ही बदल डाला है। जहां पहले किसी के मरने के बाद उसकी ​अंतिम विदाई सम्मान से की जाती थी तो वहीं अब कोरोना के चलते लोग शवों को हाथ लगाने से डरते हैं। हालांकि इस कोरोना काल के बीच...

नेशनल डेस्क: कोरोना महासंकट ने लोगों का रहना सहना ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की सोच को ही बदल डाला है। जहां पहले किसी के मरने के बाद उसकी ​अंतिम विदाई सम्मान से की जाती थी तो वहीं अब कोरोना के चलते लोग शवों को हाथ लगाने से डरते हैं। हालांकि इस कोरोना काल के बीच कुछ ऐसे भी लोग हैं जो अपना ना सोचकर दूसरों के लिए कुछ करना चाह रहे हैं। ऐसी ही एक कहानी हम बताने जा रहे हैं एक पॉवरलिफ्टर की। 

 

बिना झिझक, एक बार में आसानी से 295 किलोग्राम का वजन उठाने वाले पावरलिफ्टर मोहम्मद अजमतुल्ला कोविड-19 से मरने वालों का पूरे सम्मान से कफन-दफन करने का सामाजिक काम कर रहे हैं, लेकिन उनका कहना है कि ऐसे शवों का वजन उठाने में होने वाले दर्द को बयां करने के लिए उनके पास शब्द नहीं हैं। चैम्पियन पावरलिफ्टर का कहना है कि कोरोना वायरस संक्रमण से मरने वाले किसी व्यक्ति के शव को उठाते वक्त जो दर्द मैं महसूस करता हूं, उसे बयां नहीं कर सकता।

 

ऐसे में जबकि कोरोना वायरस को लेकर समाज में डर का माहौल है, लोग कोविड-19 से मरने वालों के शवों को छूने से परहेज कर रहे हैं, आसपड़ोस में उनके अंतिम संस्कार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं, यहां तक कि संक्रमण से मरने वालों के रिश्तेदारों को भी शक की नजर से देख रहे हैं, किसी शव का पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार करने की जिम्मेदारी उठाना बड़ी बात है। अजमतुल्ला ऊर्फ अजमत वैसे तो एक आईटी फर्म डीएक्ससी में प्रोग्राम मैनेजर हैं और सप्ताह में पांच दिन, सोमवार से शुक्रवार तक नौकरी करते हैं, लेकिन बचे हुए अपने दो दिन (शनिवार, इतवार) में वह ‘मर्सी मिशन' के साथ मिलकर कोरोना वायरस संक्रमण से मरने वालों का अंतिम संस्कार करते हैं। 


अजमत ने बताया कि मैं लॉकडाउन के दौरान राहत कार्य करने वाले समूह का हिस्सा था, और जब मैंने इस बीमारी से जुलाई में बड़ी संख्या में लोगों को मरते हुए देखा तो मैंने खुद को मर्सी मिशन के साथ जोड़ने का फैसला लिया। मर्सी मिशन के साथ काम करने वालों की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि अंतिम संस्कार में बहुत वक्त लगता है, अस्पताल से लेकर कब्रिस्तान तक पूरी प्रक्रिया बहुत लंबी है। इतना ही नहीं, इन स्वयंसेवकों को स्थानीय लोगों के विरोध का भी सामना करना पड़ता है जिससे और देरी होती है। कोरोना वायरस संक्रमण से बड़ी संख्या में मौतें हो रही हैं, लेकिन अजमत को उनसे डर नहीं लगता है। उनका कहना है कि मौत को आना ही है, उसके बारे में ज्यादा सोचना नहीं चाहिए। लेकिन मैं पूरा एहतियात बरतता हूं, क्योंकि मेरा भी परिवार है।

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