Edited By Seema Sharma,Updated: 23 Dec, 2018 04:33 PM
मलाला को जब पता चला था कि 2013 में टाइम मैगजीन के मुख पृष्ठ पर 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में वह भी हैं तब उनपर कोई असर नहीं हुआ था और उन्होंने अपने पिता से कहा था कि मैं इंसानों के वर्गीकरण में विश्वास नहीं करती।
नई दिल्ली: मलाला को जब पता चला था कि 2013 में टाइम मैगजीन के मुख पृष्ठ पर 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में वह भी हैं तब उनपर कोई असर नहीं हुआ था और उन्होंने अपने पिता से कहा था कि मैं इंसानों के वर्गीकरण में विश्वास नहीं करती। उसके पिता जियाउद्दीन युसूफजई अपनी नई पुस्तक ‘लेट हर फ्लाई: ए फादर्स जर्नी एंड फाईट ऑफ इक्वलिटी’ में इस रोचक तथ्य की चर्चा करते हैं। मलावा मैगजीन के मुखपृष्ठ पर थीं और उन्हें 15वां रैंक मिला था। राष्ट्रपति बराक ओबामा 51वें नंबर पर थे। ब्रिटेन में शाहिद हुसैन नामक एक ड्राइवर ने जियाउद्दीन को अपने मोबाइल पर इस पत्रिका की एक कॉपी दिखाई। उन्होंने इसे अपनी बेटी को दिखाया। जियाउद्दीन लिखते हैं कि जब मलाला पहली बार पूरी तरह अस्पताल में थी, तब उसके इलाज के सिलसिले में मेरी पत्नी तूर पेकाई और मैं आए थे तथा हमें अस्पताल लाने- ले जाने के लिए किसी की जरुरत थी।
एक दिन हमारे ड्राइवर शाहिद हुसैन, जो हमारा दोस्त बन चुका था, दुनिया के सबसे अधिक प्रभावशाली 100 व्यक्तियों की टाईम मैगजीन की सूची की खबर के साथ पहुंचा। हुसैन ने जियाउद्दीन से कहा कि कृपया, मेरा आपसे यह रिपोर्ट उसे दिखाने का अनुरोध है। वह खुश होंगी। ड्राइवर ने जियाउद्दीन को अपना मोबाइल फोन दिया। जियाउद्दीन ने मोबाइल ले लिया और उसे मलाला को दिखाया। डब्ल्यू एच एलेन द्वारा प्रकाशित पुस्तक में उन्होंने लिखा है, ‘‘स्क्रीन पर जो कुछ था, उसे देख मैं बहुत गौरवान्वित था। उसने मुझसे फोन लिया और उसे पढ़ा। फिर उसने उसे रख दिया। उसने कहा, मैं इंसानों के ऐसे वर्गीकरण में विश्वास नहीं करती।
जियाउद्दीन 20 सालों तक समानता के लिए लड़ते रहे, पहले मलाला के लिए औ फिर दुनिया के उन सभी लड़कियों के लिए जो पितृ सत्तात्मक समाज में रह रही हैं। वैसे तो पाकिस्तान में बचपन में उन्हें सिखाया गया था कि वह अपनी बहनों से वंशानुगत से श्रेष्ठ हैं लेकिन उन्होंने छोटी उम्र में ही असानता के खिलाफ झंडा उठा लिया। जब उन्हें एक बेटी हई तब उन्होंने ठान लिया कि वह उसे शिक्षा दिलायेंगे, जबकि शिक्षा बस लड़कों को दी जाती थी। उन्होंने एक स्कूल खोला जहां वह पढऩे जा सकती थी। लेकिन 2012 में, अपने पिता के स्कूल में जाने और तालिबान के विरुद्ध खड़े होने पर मलाला को गोली मार दी गई। जियाउद्दीन करीब करीब उसे खो चुके थे जिसके लिए उन्होंने समानता की लड़ाई छेड़ी थी। ‘लेट हर फ्लाई’ जियाउद्दीन की पाकिस्तान के पहाड़ों के एक छोटे से गांव के तुतलाते बच्चे लेकर, समानता के लिए संघर्ष करते सामाजिक कार्यकर्ता तथा नोबेल पुरस्कार के सबसे कम उम्र की प्राप्तकर्ता के पिता का सफर है। अब जलाला इस दुनिया की सबसे प्रभावशाली एवं प्रेरक किशोरियों में एक बन चुकी है।