वक्त आने पर ताकत दिखा देंगे: धनोआ

Edited By Punjab Kesari,Updated: 25 Oct, 2017 09:16 AM

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एयर चीफ मार्शल बी.एस. धनोआ कहते हैं कि भारतीय वायुसेना दुश्मन में खौफ पैदा करने वाली सेना है, जो दिन-रात किसी भी चुनौती का मुकाबला करने को तैयार है। यह सेना हवाई रक्षा, आक्रामक हवाई आक्रमण, हवाई जमीनी कार्रवाई, समुद्री हवाई कार्रवाई और सामरिक बम...

नेशनल डेस्कः एयर चीफ मार्शल बी.एस. धनोआ कहते हैं कि भारतीय वायुसेना दुश्मन में खौफ पैदा करने वाली सेना है, जो दिन-रात किसी भी चुनौती का मुकाबला करने को तैयार है। यह सेना हवाई रक्षा, आक्रामक हवाई आक्रमण, हवाई जमीनी कार्रवाई, समुद्री हवाई कार्रवाई और सामरिक बम वर्षा के लिए हमेशा तैयार है। भारतीय वायुसेना की घटी हुई स्क्वाड्रन क्षमता से पैदा हुई चिंता पर वायुसेना प्रमुख कहते हैं कि देश में ही एलसीए मार्क-2 और एडवांस्ड मीडियम कम्बैट एयरक्राफ्ट (एमका ) के विकास का काम चल रहा है, जिसे हम तहेदिल से समर्थन दे रहे हैं।

धनोआ ने पंजाब केसरी/ नवोदय टाइम्ससे विशेष बातचीत की है। प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश:

प्रतिद्वंद्वी देशों की वायुसेनाओं की हमलावर क्षमता की तुलना में आप अपनी वायुसेना को कैसे आंकेंगे?
वायुसेना की हमलावर ताकत तो सबसे पहले इसके कर्मियों द्वारा निर्धारित होती है। दूसरा इसकी मशीन और तीसरा इसके हथियारों की किस्म व संसाधनों पर निर्भर करती है। वायुसेना में जो हवाई लड़ाके होते हैं वे भिन्न स्तरों पर प्रशिक्षित और प्रेरित होते हैं। प्रशिक्षण का संचालन पूरी दुनिया में तकनीकी विकास और रणनीतिक अवधारणाओं के अनुरूप होता है। हम अपनी मौजूदा क्षमता और संसाधनों की उपलब्धता का विश्लेषण करें तो यह हमारे प्रतिद्वंद्वी देशों पर भारी पड़ती है। इसके अनुरूप ही एक सतत् प्रक्रिया के तहत युद्ध लडऩे की नई रणनीति का विकास होता है । हवाई ताकत के सभी पहलुओं का हर टीम में समावेश होता है और विभिन्न युद्धाभ्यासों के जरिए इन्हें सिद्ध किया जाता है। इसके अलावा शस्त्र को हासिल करने का फैसला क्षेत्रीय अनुमानित खतरों के आधार पर लिया जाता है। भारतीय वायुसेना की समाघात रणनीति समुद्र और जमीनी इलाके पर तालमेल से की जाने वाली कार्रवाई संसाधनों के सक्षम इस्तेमाल पर विकसित होती है। हथियारों के तकनीकी विकास के अनुरूप भारतीय वायुसेना कदम से कदम मिलाकर चल रही है और क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी देशों से आगे रहने के लिए गहन योजना बनाई जाती है। इसके लिए अचूक मार करने वाले संहारक  हथियारों को हासिल करने में वायुसेना निवेश कर रही है।

आपने पहले कहा है कि वायुसेना अपने को  समग्र क्षमता वाली एक सामरिक  एयरोस्पेस पावर  में बदल रही है। क्या आप इसे विस्तार से बताएंगे?
सम्पूर्ण क्षमता वाली एयरोस्पेस पावर हासिल करने का उद्देश्य सामरिक लक्ष्यों को हासिल करना होता है। वायुसेना एक ताकतवर खौफ पैदा करने वाली सेना है जो हवाई रक्षा, आक्रामक हवाई आक्रमण, हवाई जमीनी कार्रवाई समुद्री हवाई कार्रवाई, समाघात कार्रवाई और सामरिक बमवर्षा में अपनी महारत हासिल कर चुकी है। वर्तमान की बात करें तो वायुसेना की पहुंच काफी अधिक है और इसकी मारक क्षमता पूरी दुनिया में विभिन्न अभ्यासों के जरिए सिद्ध की जा चुकी है। वायुसेना को अब इस बात की ख्याति मिल चुकी है कि वह कम से कम वक्त में अपने संसाधन तैनात कर सके और अधिक से अधिक वक्त तक युद्ध क्षेत्र में डटी रह सके। हथियारों का जो मौजूदा संसाधन है वह काफी उच्च तकनीक वाला है और समग्र हवाई क्षेत्र में इसकी ताकत का इस्तेमाल असाधारण है।

करगिल के 18 सालों बाद वायुसेना की हमलावर क्षमता के नजरिए से  वायुसेना को आप कहां देखते हैं?
जहां तक आक्रमण क्षमता की बात है करगिल युद्ध के बाद से भारतीय वायुसेना ने काफी दूरी तय की है। हमारी आक्रमण क्षमता का मुख्य आधार सुखोई-30, मिराज-2000, जगुआर, मिग-29 जैसे विमान हैं। इन सभी वैमानिकी बेड़ों को नवीनतम क्षमता से लैस किया जा रहा है। बेंगलूर में लाइट कम्बैट एयरक्राफ्ट के पहले स्क्वाड्रन की स्थापना का काम चल रहा है। फ्रांस से राफेल विमानों को हासिल किया जा रहा है।

वायुसेना में अब 45 स्क्वाड्रन के स्थान पर 32 हैं । घटते स्क्वाड्रनों की वजह से वायुसेना दुश्मन के हमलों का प्रभावी उत्तर कैसे दे पाएगी?
भारतीय वायुसेना दिन-रात किसी भी खतरे का मुकाबला करने के लिए तैयार है।  हम वक्त आने पर अपनी ताकत दिखा देंगे। वायुसेना में नए विमानों को शामिल करने के लिए वायुसेना ने रक्षा मंत्रालय को एक रोडमैप पहले ही सौंपा रखा है ताकि  42 स्क्वाड्रन लड़ाकू विमानों की जो मंजूर की गई क्षमता है वह हासिल की जा सके। इसके अनुरूप वायुसेना का आधुनिकीकरण किया जा रहा है। लड़ाकू विमानों की क्षमता बढ़ाने को हम सर्वोच्च प्राथमिकता दे रहे हैं। इसे हासिल करने के लिए वायुसेना नए विमानों को शामिल कर रही है और मौजूदा विमानों को मिड लाइफ अपग्रेड भी किया जा रहा है। इसके तहत मिग-29, जगुआर और मिराज-2000 का चरणबद्ध तरीके से आधुनिकीकरण किया जा रहा है ताकि उनकी लड़ाकू क्षमता बढ़ाई जा सके। हथियारों में जो कमी है उन्हें दूर किया जा रहा है। इसके साथ ही लड़ाकू  विमानों को हासिल करने के लिए अनुबंध किए गए हैं, इनमें लाइट कम्बैट एयरक्राफ्ट, राफेल और बाकी बचे सुखोई-30 एमकेआई विमान हैं। एलसीए मार्क वन-ए हासिल करने के लिए भी मंजूरी दी जा चुकी है। इसके अलावा जहां तक सामरिक सांझेदारी मॉडल के तहत नए लड़ाकू  विमान हासिल करने की बात है तो इनके योग्य विकल्पों पर चर्चा चल रही है। इससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि भारतीय वायुसेना 15वीं योजना (2032 ) तक अपनी स्वीकृत स्क्वाड्रन क्षमता को हासिल कर सके।

वायुसेना को 126 मीडियम मल्टी रोल कम्बैट एयरक्राफ्ट प्रदान  करने की  बात थी और टैंडर 2007 में जारी किया गया था। लेकिन, वायुसेना को अब केवल 36 विमान ही मिलेंगे। वायुसेना को बाकी और विमान कब मिलेंगे?
मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत सरकार लड़ाकू विमानों को हासिल करने का रोडमैप तैयार कर रही है। यह सामरिक सांझेदारी मॉडल से हासिल होगा। वायुसेना ने पहले ही एलसीए सौदे को मंजूरी दी है जो वायुसेना की ताकत को मजबूत करेगी।

क्या आपको लगता है कि लाइट कम्बैट एयरक्राफ्ट की मौजूदा किस्म वायुसेना की समाघात जरूरतों को पूरा करेगी?
एलसीए की मौजूदा किस्म को प्रारम्भिक समाघात मंजूरी (आई.ओ.सी.) मिली है जो एक विकास के दौर वाला विमान है, जो हवा से हवा और हवा से जमीन पर कार्रवाई करने में सक्षम होगा। जब इस विमान को पूरी समाघात मंजूरी (एफ.ओ.सी. ) मिल जाएगी तब यह विमान और ताकत हासिल करेगा। एलसीए मार्क वन ए में अतिरिक्त क्षमता होगी, जैसे कि आएसा राडार, इंटीग्रेटेड इलैक्ट्रॉनिक वारफेयर सूट, लम्बी दूरी की बी.वी.आर. मिसाइल, एयर टू एयर मिसाइल,एडवांस्ड एवियानिक्स आदि।

वायुसेना  भारी  थ्रस्ट वाले इंजन लगे एलसीए मार्क-2 को हासिल करना चाहती थी। इसे कब तक शामिल करेंगे?
एलसीए को चरणबद्ध तरीके से शामिल करने की योजना पर काम चल रहा है। मौजूदा किस्म एलसीए मार्क-वन-ए है। यह अधिक उन्नत किस्म वाला है जिसमें इलैक्ट्रॉनिक युद्ध करने की बेहतर क्षमता है, इसमें एडवांस्ड एवियानिक्स लगे हैं। एलसीए मार्क-2 का विकास फिलहाल डिजाइन स्टेज पर है। डिजाइन और विकास के बाद एलसीए मार्क-2 को शामिल  किया जाएगा। एलसीए मार्क- 1- ए को पूरा सौंपने के बाद एलसीए मार्क-2 को शामिल किया जाएगा।

रक्षा मंत्रालय सामरिक सांझेदारी मॉडल के तहत लड़ाकू विमानों का देश में ही निर्माण करना चाहता है,  इसके बारे में अंतिम फैसला कब तक हो जाएगा?
किसी भी हथियार को हासिल करने के लिए एक तय प्रक्रिया होती है, खासकर लड़ाकू विमान जैसी महत्वपूर्ण परियोजनाओं के लिए। इसकी प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही  सरकार अंतिम फैसला लेगी, इसलिए इस बारे में अभी कोई टिप्पणी करना उचित नहीं होगा।

क्या आपको लगता है कि केवल तीन अवाक्स और तीन एम्ब्रेयर पूर्व चेतावनी देने वाले टोही विमान ही काफी होंगे?
वायुसेना के पास एयर डिफैंस राडार हैं जो अवाक्स की क्षमता में इजाफा करते हैं। इसके अतिरिक्त नए टोही विमान हासिल करने और स्वदेशी विकास की प्रक्रिया चल रही है।

वायुसेना की पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान हासिल करने की योजना है। क्या आपको लगता है कि एक दशक के भीतर आप इन्हें हासिल कर लेंगे?
एफ.जी.एफ.ए. में उन्नत किस्म की स्टील्थ टैक्नोलॉजी होती है। यह तय किया गया है कि एक स्थापित डिजाइन संगठन के साथ मिलकर इस तरह के विमान का सांझा विकास किया जाए। स्वदेशी एडवांस्ड मीडियम कम्बैट एयरक्राफ्ट (ए.एम.सी.ए.) का फिलहाल एरोनॉटिकल डिवैलपमैंट एजैंसी (ए.डी.ए.) और डी. आर. डी. ओ. द्वारा विकास किया जा रहा है। रूस से पांचवीं पीढ़ी का लड़ाकू  विमान हासिल करने की योजना रक्षा मंत्रालय के विचाराधीन है। भारतीय वायुसेना ए.एम.सी.ए. (एमका)  विमान के विकास को तहेदिल से समर्थन दे रही है।

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