स्मृति शेष: वो शख्स जो नाश्ते में खाता था नेता

Edited By Anil dev,Updated: 11 Nov, 2019 03:43 PM

tirunelli narayan iyer seshan chandra shekhar madras ias examination

देश के दसवें मुख्य निर्वाचन आयुक्त तिरुनेल्लई नारायण अय्यर शेषन यानी टी एन शेषन अपनी सांसारिक यात्रा पूरी कर गए हैं। चुनाव सुधारों के इस  शहंशाह ने चेन्नई में रविवार रात करीब साढ़े नौ बजे अंतिम सांस ली। इसके साथ ही एक ऐसी शख्सियत इतिहास हो गई जिसे...

नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा ): देश के दसवें मुख्य निर्वाचन आयुक्त तिरुनेल्लई नारायण अय्यर शेषन यानी टी एन शेषन अपनी सांसारिक यात्रा पूरी कर गए हैं। चुनाव सुधारों के इस  शहंशाह ने चेन्नई में रविवार रात करीब साढ़े नौ बजे अंतिम सांस ली। इसके साथ ही एक ऐसी शख्सियत इतिहास हो गई जिसे देश में चुनाव सुधारों का शहंशाह कहा जाता था। टी एन शेषन को लेकर के किस्से मशहूर हैं, आज उनके जाने के बाद  एकबार फिर हम उनसे जुड़ी कुछ बातें साझा कर रहे हैं।  

PunjabKesari

ये 1950 की बात है ,18 साल का एक किशोर मद्रास के एक रेस्त्रां में चवन्नी खर्च करके दोस्तों को काफी पिलाता है। घर पहुंचने पर जब यह बात उसकी मां को पता चलती है तो वो उसे बिना इजाजत ऐसा करने के लिए मार-मार कर अधमरा कर देती हैं। ठीक पांच साल बाद वही लड़का आईएएस की परीक्षा में टॉप करता है, लेकिन तब तक मां की वह मार सबक बन चुकी होती है, कि आपके पास पैसा चाहे कितना भी क्यों न हो, फिजूल खर्ची नहीं होनी चाहिए। और आगे चलकर उस शख्स ने नेताओं को ऐसा सबक सिखाया कि आजतक देश उन्हें चुनावी सुधारों के लिए याद करता है। हम बात कर रहे हैं टी एन शेषन की जिन्होंने चुनाव में होने वाली फिजूलखर्ची पर न सिर्फ नकेल कसी बल्कि नेताओं को भी नाकों चने चबवा दिए।

PunjabKesari

चंद्र शेखर ने बनाया था मुख्य निर्वाचन आयुक्त
 दिसंबर 1990 में टी एन  शेषन को तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने निर्वाचन आयुक्त बनाया था, राजीव गांधी की इसमें सहमति थी। शेषन इससे पहले राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते उनके सुरक्षा सचिव भी रहे चुके थे, लेकिन शेषन ने जब मुख्य निर्वाचन का कार्यभार संभाला तो किसी को नहीं बख्शा। उन्होंने चुनाव आयोग को इतना शक्तिशाली बना दिया कि नेता और सियासी दल तड़प उठे और उन्हें  हटाए जाने की कोशिश तक हुई /लेकिन शेषन ठहरे शेषन, वो किसी की पकड़ में नहीं आए। स्वभाव से कड़क और ईमानदार शेषन ने पहले ही दिन से चुनाव आयोग  में सुधार शुरू कर दिए थे।  तब तक चुनाव आयोग को सरकार का पिच्छलग्गू माना जाता था जिसे शेषन ने सरकार का कान  मरोडऩे  वाला संस्थान बना डाला। यह शेषन ही थे जिन्होंने उम्मीदवारों के लिए चुनाव खर्च की सीमा बांधी थी। 

PunjabKesari


उन्होंने जनप्रतिनिधत्व कानून 1951 की धारा  77 के तह  यह सिनिश्चित किया कि चुनाव लडऩे वाले उम्मीदवार चुनाव के लिए अलग बैंक खाता खोलें और सारा खर्च उसी से हो। 1993 के लोकसभा चुनाव में शेषन ने खूब सख्ती की। उस समय उन्होंने तय सीमा से अधिक खर्च करने या चुनाव खर्च का ब्यौरा न देने वाले करीब 1400 नेताओं को तीन साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया था। उस चुनाव में शेषन की सख्ती के चलते करीब 40 हज़ार शिकायतें आई थीं। कहते हैं शेषन ने हर शिकायत को खुद पढ़कर मार्क किया था। वर्ष 1992 में टी एन  शेषन ने चुनाव आयोग को शक्तियां नहीं दिए जाने को लेकर पंजाब और बिहार के चुनाव  तक रद कर दिए थे। इसी तरह बाद में उन्होंने पश्चमी बंगाल का राजयसभा चुनाव रद कर दिया था और प्रणब मुखर्जी राज्यसभा नहीं पहुंच पाए थे ।  

PunjabKesari
 

ऊपर खुदा नीचे शेषन
यह शेषन की ही सख्ती थी कि उस जमाने में यह मशहूर हो गया कि भारत के नेता दो ही चीजों से डरते हैं। एक भगवान् से और दूसरा शेषन से। शेषन ने प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को भी आचार संहिता के उल्लंघन का नोटिस जारी कर दिया था। हिमाचल के राज्यपाल गुलशेर अहमद को तो उन्होंने हटाए जाने की सिफारिश तक कर डाली थी। सतना के पूर्व नवाब गुलशेर अहमद साहब राज्यपाल रहते हुए अपने बेटे के चुनाव प्रचार में  शामिल पाए गए थे। नेता टी एन से कितना परेशान थे इसका अंदाजा यहीं से लगाया जा सकता है कि अक्सर उन्हें टी एन सेशन के बजाए टेंशन कहकर पुकारा जाता था। यहां तक कि ज्योति बसु जैसे मुख्यमंत्री ने एकबार उनकी तुलना पागल कुत्ते से कर डाली थी। बाद में शेषन को नाथने के लिए सरकार ने दो अतिरिक्त चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति कर डाली ताकि बहुमत से फैसले की प्रक्रिया में शेषन अकेले पड़ जाएं। एम एस गिल और जीवीजी कृष्णमूर्ति को चुनाव आयुक्त बनाया गया। लेकिन शेषन ने पूरी शान से अपना कार्यकाल पूरा किया और अपने रहते दूसरे चुनाव आयुक्तों को कोई महत्वपूर्ण काम तक नहीं दिया। यही नहीं 1996 में जाते जाते टी एन शेषन देश में वोटर कार्ड भी शुरू करवा गए,जिसने फर्जी मतदान कराने वालों की कमर तोड़ डाली ।

 

गजब के जुनूनी थे शेषन
टी एन शेषन ने अपना करियर शिक्षक के रूप में शुरू किया था। उसके बाद 1953 में वे सिविल सेवा में पुलिस कॉडर के लिए  चुने गए। लेकिन उन्होंने इसे नहीं अपनाया। 1955 में उन्होंने सिविल सेवा में टॉप किया और इस तरह आईएएस बने। आईएएस बनने के बाद शेषन की पहली तैनाती मद्रास के परिवहन सचिव के रूप में हुई थी। उस समय मद्रास परिवहन सेवा में 3000 बसें और 40 हज़ार कर्मचारी थे।  एक प्रदर्शन के दौरान  एक ड्राइवर ने उनपर  तंज़ कसा था  कि न तो शेषन को बस चलानी आती है और न ही उसके कलपुर्जों बारे जानकारी है, ऐसे में वे ड्राइवरों की समस्याएं क्या समझेंगे। शेषन ने इसे चुनौती के तौर पर लिया।   दिलचस्प ढंग से अगले ही महीने शेषन ने वर्कशॉप में जाकर उसी ड्राइवर की बस का इंजन खोला और उसे दोबारा फिट करके दिखाया।  यही नहीं  वे सवारियों से भरी बस को 80 किलोमीटर तक चलाकर भी गए। जाहिर है यही जूनून उन्हें जीते जी इतिहास पुरुष बना गया। हालांकि इस समय शेषन अपनी पत्नी के देहांत के बाद चेन्नई के एक वृद्धाश्रम में एकाकी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। वे अपनी पेंशन का सारा पैसा वृद्धाश्रम को ही देते हैं।  


खुद को खड़ूस कहने से नहीं हिचकते थे
टी एन शेषन खुद को खड़ूस इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा था कि वे दक्षिणी भारत के पल्गार ब्राह्मण हैं। इनकी चार प्रजातियां होती हैं। वे अच्छे  कुक (रसोइये ) होते हैं। वे क्रुक होते हैं, वे नौकरशाह होते हैं और वे अच्छे संगीतज्ञ होते हैं। मैं अच्छा कुक हूं, थोड़ा बहुत क्रुक हूं, और नौकशाह भी हूं। हालांकि मैं संगीतज्ञ नहीं हूं पर मुझे संगीत बेहद पसंद है। एक टीवी इंटरव्यू में जब उनसे उनकी पसंदीदा डिश के बारे पूछा गया था तो उन्होंने मजाक में कहा था , मैं नाश्ते में नेता खाता हूं।  

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!