मुर्मू की उम्मीदवारी पर दुविधा में टीएमसी, विरोध करने पर आदिवासी मतदाताओं के नाराज होने का डर

Edited By rajesh kumar,Updated: 11 Jul, 2022 05:53 PM

tmc in dilemma over murmu s candidature

राष्ट्रपति चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को लेकर तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) दुविधा में है। पार्टी को डर है कि मुर्मू का विरोध करने की सूरत में पश्चिम बंगाल में अगले साल होने वाले पंचायत चुनाव और 2024 के...

नेशनल डेस्क: राष्ट्रपति चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को लेकर तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) दुविधा में है। पार्टी को डर है कि मुर्मू का विरोध करने की सूरत में पश्चिम बंगाल में अगले साल होने वाले पंचायत चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले राज्य के आदिवासी मतदाता उससे नाराज हो सकते हैं। पश्चिम बंगाल की आबादी में आदिवासियों की हिस्सेदारी सात से आठ प्रतिशत के बीच है। राज्य की 47 विधानसभा और सात लोकसभा सीट पर आदिवासी निर्णायक भूमिका निभाते हैं जो जंगलमहल क्षेत्र-पुरुलिया, पश्चिम मेदिनीपुर, बांकुड़ा और झाड़ग्राम तथा जलपाईगुड़ी व अलीपुरद्वार में फैली हुई हैं।
 

महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन के बाद मुर्मू के चुनाव जीतने की संभावनाएं बढ़ी

तृणमूल कांग्रेस ने राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार के रूप में यशवंत सिन्हा के नाम पर सहमति बनवाने में अहम भूमिका निभाई थी। हालांकि, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के इस बयान से पार्टी की यह दुविधा उजागर हो गई है कि राजग ने मुर्मू को चुनाव मैदान में उतारने से पहले अगर विपक्षी दलों से चर्चा की होती तो वह आम सहमति की उम्मीदवार हो सकती थीं। ममता ने यह भी कहा कि महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन के बाद राजग के संख्या बल में इजाफा होने से मुर्मू के चुनाव जीतने की संभावनाएं भी बढ़ गई हैं। टीएमसी प्रमुख के बयान ने विपक्षी खेमे के कई नेताओं को स्तब्ध कर दिया है। हालांकि, पार्टी सूत्रों का मानना है कि आदिवासी बहुल जंगलमहल क्षेत्र का चुनावी गणित ममता के इस बयान के पीछे की वजह हो सकता है।

वरिष्ठ टीएमसी नेता ने कहा, “एक राजनीतिक दल जमीनी हकीकत के आधार पर फैसले लेता है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने हमें अपने उम्मीदवार के बारे में पहले सूचित नहीं किया। हालांकि, यह जरूरी नहीं है कि मुर्मू का समर्थन या विरोध आदिवासी मतों के मिलने या छिटकने की वजह बनेगा। आदिवासी मतदाताओं का समर्थन इस बात पर निर्भर करता है कि संबंधित क्षेत्रों में पार्टी कितनी मजबूत है।” तृणमूल कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता सुखेंदु शेखर राय ने कहा, “अतीत में राष्ट्रपति चुनाव के लिए आम सहमति के उम्मीदवारों के कई उदाहरण हैं। द्रौपदी मुर्मू हम सभी के लिए एक अप्रत्याशित नाम था। भाजपा ने पहले अपने प्रत्याशी के नाम की घोषणा नहीं की, क्योंकि वह आम सहमति का उम्मीदवार का नहीं चाहती थी।

विपक्ष ने आपस में चर्चा करने के बाद यशवंत सिन्हा का नाम तय किया था।” कुछ अन्य तृणमूल नेताओं ने कहा कि राज्य में बड़ी आदिवासी आबादी को देखते हुए पार्टी मुर्मू की उम्मीदवारी को लेकर ‘कैच-22' स्थिति में है। ‘कैच-22' का अर्थ ऐसी मुश्किल परिस्थिति या दुविधा होता है, जिसमें परस्पर विरोधी या आश्रित परिस्थितियों के कारण बच निकलना मुश्किल होता है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा, “मुर्मू आदिवासी होने के साथ-साथ महिला भी हैं। तृणमूल कांग्रेस एक बड़ी पार्टी है, जिसमें समाज के विभिन्न तबके के नेता शामिल हैं। ऐसे में हम यह नहीं कह सकते कि हम असमंजस में नहीं हैं।”

तृणमूल के सभी सांसद और विधायक मेरे पक्ष में मतदान करेंगे

हालांकि, राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा देने वाले सिन्हा को भरोसा है कि उन्हें पार्टी के सभी सांसदों और विधायकों के वोट मिलेंगे। सिन्हा ने कहा, “मुझे यकीन है कि तृणमूल के सभी सांसद और विधायक मेरे पक्ष में मतदान करेंगे।” हालांकि, उन्होंने ममता के बयान पर टिप्पणी करने से इनकार किया। यशवंत सिन्हा के करीबी सूत्रों के मुताबिक, राष्ट्रपति चुनाव में कुछ ही दिन बचे हैं, ऐसे में उनके समर्थन जुटाने के लिए पश्चिम बंगाल आने की संभावना बेहद कम है। राष्ट्रपति चुनाव 18 जुलाई को होना है। 

वर्ष 2011 में पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस द्वारा वाम मोर्चे को सत्ता से बेदखल किए जाने के बाद से ही पार्टी को आदिवासियों का समर्थन हासिल रहा है। हालांकि, स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार से नाराज होने के चलते 2018 के पंचायत चुनावों के बाद से उनका झुकाव भाजपा की तरफ हो गया। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा जंगलमहल क्षेत्र की छह में से पांच और उत्तर बंगाल की दोनों (अलीपुरद्वार तथा जलपाईगुड़ी) सीट पर जीत दर्ज करने में कामयाब रही थी। आदिवासी बहुल क्षेत्रों में हार के बाद तृणमूल कांग्रेस तुरंत हरकत में आ गई और विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा कर एक बार फिर संथालों और कुर्मियों का भरोसा जीता। इसके चलते 2021 के बंगाल विधानसभा चुनाव में पार्टी जंगलमहल की 40 में से 25 सीट जीतने में सफल रही।

मुर्मू की उम्मीदवारी ने टीएमसी को दुविधा में डाल दिया

वहीं, एक अन्य तृणमूल नेता ने कहा, “भाजपा इन जिलों में प्रचार कर रही है कि तृणमूल एक आदिवासी विरोधी पार्टी है, क्योंकि वह मुर्मू का समर्थन नहीं कर रही है। इससे अगले साल होने वाले पंचायत चुनाव में हमारी जीत की संभावनाएं प्रभावित हो सकती हैं।” भाजपा का भी मानना है कि मुर्मू की उम्मीदवारी ने टीएमसी को दुविधा में डाल दिया है। बंगाल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष एवं वरिष्ठ भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी ने कहा, “राष्ट्रपति चुनाव में पाला बदलना तृणमूल की पुरानी फितरत है। पार्टी ने 2012 में भी ऐसा ही किया था, जब प्रणब मुखर्जी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (सप्रंग) के उम्मीदवार थे। अब वे मुश्किल में हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि मुर्मू का विरोध करने से उनका आदिवासी वोट बैंक छिटक सकता है।”

तृणमूल दुविधा में है या नहीं, जानें राजनीतिक विश्लेषकों की राय?

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि तृणमूल दुविधा में है, क्योंकि मुर्मू आदिवासी और महिला, दोनों हैं। रवींद्र भारती विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर विश्वनाथ चक्रवर्ती ने कहा, “तृणमूल को डर है कि वह फिर से आदिवासी वोट खो सकती है। मुझे आश्चर्य नहीं होगा अगर राष्ट्रपति चुनाव में पार्टी की तरफ से ‘क्रॉस वोटिंग' की जाती है।” वहीं, सेंटर फॉर स्टडीज इन सोशल साइंसेज में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर मैदुल इस्लाम ने कहा, “तृणमूल की दुविधा का कारण प्रतिनिधित्व की राजनीति है, जो चलन में है। हर दल इसमें लिप्त है। पश्चिम बंगाल में आदिवासी और महिला मतदाताओं की संख्या काफी अधिक है। शायद यही वजह है कि वह परेशान है।”

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