ट्रिपल तलाक पर SC ने पूछा, 'जो धर्म में घिनौना कृत्य, वो कानून में वैध कैसे'

Edited By ,Updated: 12 May, 2017 01:31 PM

triple divorce on hearing in court

तीन तलाक पर सुनवाई आज दूसरे दिन भी सुप्रीम कोर्ट में जारी है। इस मसले पर सलमान खुर्शीद ने इस्लाम में निकाह, मेहर और तलाक को लेकर अपनी दलील दी।

नई दिल्ली: तीन तलाक पर सुनवाई आज दूसरे दिन भी सुप्रीम कोर्ट में जारी है। इस मसले पर सलमान खुर्शीद ने इस्लाम में निकाह, मेहर और तलाक को लेकर अपनी दलील दी। चीफ जस्टिस जे.एस. खेहर की अध्यक्षता में पांच जजों की बेंच ने ट्रिपल तलाक के मामले में सुनवाई की। खुर्शीद की दलील पर जस्टिस रोहिंगटन नरीमन ने उनसे पूछा कि इस्लाम में निकाह और तलाक़ को लेकर मौजूद व्यवस्था में थ्‍यौरी और व्‍यावहारिकता में जो अंतर है, क्या आप ये बताना चाहते हैं? क्या आप चाहते हैं कि कोर्ट उस व्यवस्था को लागू करे जो इस्लाम में है? इस पर सलमान खुर्शीद ने कहा कि हां लेकिन कोर्ट को इस मामले में कोई कानून नहीं बनाना चाहिए बल्कि इस्लाम में जो बेहतर तरीका बताया गया है, उसे बताना चाहिए। जब तीसरी बार तलाक बोला जाता है तो वो वापस नहीं हो सकता, लेकिन इसके लिए तीन महीने का वक्त होता है। उन्होंने कहा कि पति-पत्नी को इस पर फिर सोचना चाहिए।

क्या तीन तलाक वैध है
निजी तौर पर कोर्ट की मदद कर रहे पूर्व कानून मंत्री और कांग्रेसी नेता सलमान खुर्शीद ने कहा कि मेरी निजी राय में तीन तलाक पाप है। जस्टिस कूरियन जोजफ ने पूछा-क्या जो धर्म के मुताबिक ही घिनौना है वो कानून के तहत वैध ठहराया जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि जो पाप है क्या उसे शरियत में लिया जा सकता है? इस पर खुर्शीद ने कहा कि नहीं ठहराया जा सकता चाहे वो संवैधानिक तौर पर वैध हो तो भी।

भारत में तीन तलाक विशिष्ट
वहीं कोर्ट ने पूछा कि अगर भारत में तीन तलाक विशिष्ट है तो दूसरे देशों ने कानून बनाकर तीन तलाक को खत्म कर दिया? इस पर खुर्शीद ने कहा कि इसी तरह की दिक्कतें आईं होगी तो उन देशों को लगा होगा कि इसे खत्म कर देना चाहिए।

ये है मामला
बता दें 10 दिन तक चलने वाली इस सुनवाई में यह तय किया जाएगा कि ट्रिपल तलाक धर्म का हिस्सा है या नहीं है। इस बीच कोर्ट ने तीन तलाक के खिलाफ याचिका डालने वालों और पक्ष में बोलने वालों को कथित तौर पर निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने कहा कि अगर ये धर्म का हिस्सा है तो इसमें दखल नहीं दिया जाएगा। लेकिन अगर धर्म का हिस्सा नहीं है, तो इस सुनवाई जारी रहेगी। साथ ही यह भी तय किया जाएगा कि संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों में इसका स्थान है या नहीं।

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