Edited By Punjab Kesari,Updated: 15 Dec, 2017 02:41 PM
ट्रंप प्रशासन ने ‘नेट न्यूट्रैलिटी’ के उस पूराने कानून को पलट दिया है जिसे पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में पास किया गया था। जानकारी के अनुसार वहां के फेडरल कम्युनिकेशन कमीशन ने रिपब्लिकन द्वारा नियुक्त भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक अजित...
इंटरनेशनल डेस्क: ट्रंप प्रशासन ने ‘नेट न्यूट्रैलिटी’ के उस पूराने कानून को पलट दिया है जिसे पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में पास किया गया था। जानकारी के अनुसार वहां के फेडरल कम्युनिकेशन कमीशन ने रिपब्लिकन द्वारा नियुक्त भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक अजित पई के प्रस्ताव को वोटिंग में 3-2 से स्वीकार कर लिया। आलोचकों का कहना है कि यह कदम उपभोक्ताओं के हित के खिलाफ है और केवल बड़ी कॉरपोरेट कंपनियों की मदद पहुंचाने वाला है।
इस फैसले का हुआ विरोध
ओबामा प्रशासन का मत था कि किसी भी कंटेंट को ब्लॉक नहीं किया जाएगा। इंटरनेट को इस आधार पर न बांटा जाए कि पैसा देकर इंटरनेट और मीडिया कंपनियां फास्ट लेन पाएं और बाकी लोगों को मजबूरन स्लो लेन मिले। एफसीसी ने अब इस बदले हुए कानून के पक्ष में बयान देते हुए कहा कि 2015 के बिना किसी रोकटोक के चलने वाली प्रक्रिया के स्थान पर हम सुगमता से चलने वाली इंटरनेट सुविधा के दौर में लौट रहे हैं, जो व्यवस्था 2015 से पहले थी। इस फैसले का विरोध करते हुए डेमोक्रैटिक लीडर नैन्सी पोल्सी ने कहा कि इस अतार्किक और बड़ी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए बनाए कानून के साथ अजित पाई ने साबित कर दिया कि वह ट्रंप प्रशासन के उपभोक्ता विरोधी परंपरा को ही आगे ले जाना चाहते हैं। यह फैसला दुखद और अमेरिका की जनता के हितों के विरोध में है।
भारत पर भी पड़ेगा असर
वहीं इस फैसले का असर भारत पर भी पड़ेगा। कुछ टेलीकॉम कंपनीज इसके समर्थन में हैं, तो कई इसके खिलाफ। नेट न्यूट्रैलिटी के समर्थन में यह तर्क दिया जाता है कि अगर इसे आज से दस साल पहले खत्म कर दिया जाता, तो शायद ऑरकुट और माई-स्पेस जैसी वेबसाइट्स सर्विस प्रोवाइडर को ज्यादा पैसे देकर अपनी स्पीड बढ़वा सकती थी। वहीं अगर ऐसा होता है तो इससे नई वेबसाइटों को मुश्किल का सामना करना पड़ेगा।