सबरीमला पर फैसले के बाद बोली तृप्ति देसाई- पुराने रिवाजों को बदलने का आ गया है समय

Edited By vasudha,Updated: 14 Nov, 2019 04:20 PM

trupti desai says the time has come to replace the old customs

महिला अधिकार कार्यकर्ता तृप्ति देसाई ने वीरवार को कहा कि सबरीमला मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय की सात सदस्यीय पीठ के फैसला सुनाने तक मंदिर में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दी जानी चाहिए। देसाई ने मंदिर के कपाट खुलने पर वहां जाकर पूजा अर्चना करने का...

नेशनल डेस्क: महिला अधिकार कार्यकर्ता तृप्ति देसाई ने वीरवार को कहा कि सबरीमला मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय की सात सदस्यीय पीठ के फैसला सुनाने तक मंदिर में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दी जानी चाहिए। देसाई ने मंदिर के कपाट खुलने पर वहां जाकर पूजा अर्चना करने का संकल्प लेते हुए कहा कि अब पुराने रिवाजों को बदलने का समय आ गया है। 

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पुणे में रहने वाली देसाई ने उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद पत्रकारों से कहा कि मैने जो समझा है उसके अनुसार अदालत का आदेश आने तक महिलाओं के लिए प्रवेश खुला है और किसी को इसका विरोध नहीं करना चाहिए। जो लोग कहते हैं कि कहीं कोई भेदभाव नहीं है वे गलत हैं क्योंकि विशेष आयु वर्ग की महिलाओं को वहां जाने की अनुमति नहीं है। मैं 16 नवंबर को पूजा करने जा रही हूं। देसाई ने उच्चतम न्यायालय द्वारा केरल के मशहूर अयप्पा मंदिर में 10 से 50 वर्ष की आयुवर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर रोक हटाने के बाद पिछले साल नवंबर में मंदिर में प्रवेश करने की नाकाम कोशिश की थी।

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उच्चतम न्यायालय ने सदियों पुरानी इस हिंदू प्रथा को गैरकानूनी और असंवैधानिक बताया था। न्यायालय ने सबरीमला मामले में दिए गए उसके फैसले की समीक्षा की मांग करने वाली याचिकाएं सात न्यायाधीशों की वृहद पीठ के पास भेजते हुए वीरवार को कहा कि धार्मिक स्थलों में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध केवल सबरीमला तक ही सीमित नहीं है बल्कि अन्य धर्मों में भी ऐसा है। उच्चतम न्यायालय ने सबरीमला मंदिर और मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश तथा दाऊदी बोहरा समाज में स्त्रियों के खतना सहित विभिन्न धार्मिक मुद्दे सात सदस्यीय संविधान पीठ को सौंपे हैं। महिला अधिकार कार्यकर्ता कविता कृष्णन ने सवाल किया कि पुनर्विचार याचिका को वृहद पीठ के पास क्यों भेजा गया। उन्होंने आपसी सहमति से समलैंगिक संबंध पर न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए ट्वीट किया कि उच्चतम न्यायालय ने पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर दिया...धारा 377 में पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी गयी। लेकिन सबरीमला पर फैसला वृहद पीठ के पास भेज दिया।

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कृष्णन ने कहा कि उच्चतम न्यायालय हमें ऐसा सोचने पर विवश कर रहा है कि सत्ता में बैठे लोगों की पसंद/नापसंदगी से प्रभावित होकर फैसले दिए जा रहे हैं और पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवायी की जा रही है। सबरीमला मामले में याचिकाकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता राहुल ईश्वर ने मामले को सात सदस्यीय पीठ के पास भेजने के उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत किया। उन्होंने पत्रकारों से कहा कि मुझे लगता है कि यह सही दिशा में सकारात्मक कदम है और हमें इसका स्वागत करना चाहिए। कृपया आस्था के किसी मामले में हस्तक्षेप न करें, भारत अनेकवाद और आस्था की आजादी वाला देश है। यह भारत की महानता है कि हम सांस्कृतिक रूप से काफी विविध हैं।

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