सुरक्षा में सेंधमारी करता है टू सेकंड एप, एजेंसियां सतर्क

Edited By Pardeep,Updated: 13 Aug, 2019 05:03 AM

two second app breaches security agencies alert

सोशल मीडिया या फिर जितने भी एप इंसान की नॉलेज या फिर सहूलियत के लिए बन रहे हैं। उतना ही इनका गलत इस्तेमाल हो रहा है। सबसे ज्यादा गलत इस्तेमाल बड़े बदमाश, आतंकी और उनके आका कर रहे हैं जिससे सुरक्षा एजेंसियों को इनको ट्रैस करने में काफी ज्यादा...

नई दिल्ली: सोशल मीडिया या फिर जितने भी एप इंसान की नॉलेज या फिर सहूलियत के लिए बन रहे हैं। उतना ही इनका गलत इस्तेमाल हो रहा है। सबसे ज्यादा गलत इस्तेमाल बड़े बदमाश, आतंकी और उनके आका कर रहे हैं जिससे सुरक्षा एजेंसियों को इनको ट्रैस करने में काफी ज्यादा दिक्कतें आ रही हैं।

स्वतंत्रता दिवस में अब केवल दो दिन ही बाकी रह गए हैं। साथ ही जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद जिस तरह से सुरक्षा एजेंसियों को आतंकी गतिविधियों की सूचनाएं मिल रही हैं और सोशल मीडिया पर उनको ट्रेस करने की कोशिश भी की जा रही है, लेकिन कुछ ऐसे एप हैं जो साइबर डिपार्टमेंट को भी इनको ट्रेस करने में पसीने छूटे रहे हैं। ऐसे में इनको ट्रेस कर पकडऩे के लिए सुरक्षा एजेंसियां भी अपने मुखबिरों के भरोसे पर काम करती रहती हैं। 

ज्ञात हो कि पिछले कुछ समय से एक नया एप सामने आया है, जिसको टू सेकेंड लाइन एप कहते हैं। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि सोशल मीडिया के आने के बाद यह बात सही है कि आतंकी व असामाजिक तत्व इसका इस्तेमाल करते हैं जिससे सुरक्षा एजेंसियों का उनको पकडऩे में काफी परेशानी होती है, लेकिन एजेंसियां भी इसको लेकर अब सक्षम हैं। इनको ट्रेस करने के लिए साइबर सेल की टीमें भी समय-समय पर इनकी सूचनाएं देती रहती हैं जिससे इनको पकड़ा जाता रहा है।

साइबर सेल को सोशल मीडिया पर संदिग्धों की तलाश: पुलिस अधिकारियों ने बताया कि दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल और साइबर सेल के अलावा सुरक्षा एजेंसियां सोशल मीडिया जिसमें फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम जैस कई एप हैं जिनको 24 घंटे खंगाला जाता है। फेसबुक पर आंतकवादियों की वेबसाइट पर कई बार कोडिंग में कुछ अहम जानकारियांं मिल जाती हैं। पिछले दो महीने से कुछ मिली भी हैं जिनके बारे में पता लगाने की कोशिश की जा रही है। 

कुछ ऐसे काम करता है एप
एप को प्ले स्टोर से डाउनलोड किया जाता है। डाउनलोड करते वक्त ही एप खुद ही कुछ नंबर दिखाता है, जिसमें से एक नंबर को आपको इस्तेमाल करना होता है। इसके बाद एप इस्तेमाल करने वाले का ई-मेल और मोबाइल नंबर मांगता है। उसी नंबर पर ओटीपी आता है। ओटीपी रिसीव होने के बाद एप शुरू हो जाता है। बताया जाता है कि यूएसए और कनाडा में आप अगर इस एप से फोन करते हैं तो कोई चार्ज नहीं लगता है। यूएस और कनाडा में जितने चाहें उतने टेक्स्ट संदेश बिल्कुल मुफ्त भेज सकते हैं, लेकिन बाकी देशों में एप के जरिए फोन करने पर एक रुपए 80 पैसे प्रति मिनट चार्ज लगता है।

बिना सिम के होता है इस्तेमाल, नहीं होता ट्रेस
पुलिस अधिकारियों ने बताया कि इस एप से कॉलिंग करने पर इसे ट्रेस कर पाना काफी मुश्किल होता है। जिसका फायदा आतंकी व बदमाश व उनके आका उठा रहे हैं। यह सुरक्षा के लिहाज से काफी खतरनाक एप है। आतंकी इसके अलावा वीडियो कॉलिंग और व्हट्सएप कॉलिंग का भी इस्तेमाल करते हैं, लेकिन इनको पकड़ा जा सकता है क्योंकि इनको बिना सिम नंबर के इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

पकड़े गए गैंगस्टर कर रहे थे इस्तेमाल
दिल्ल्सी पुलिस सूत्रोंं का कहना है कि जिस तरह से हाल में पकड़े गए दिल्ली के टॉप गैंगस्टर के नौ करीबी बदमाशों को पकड़ा है। वह भी इसी एप का इस्तेमाल कर रहे थे जिनसे पूछताछ करने के बाद अब शक है कि तिहाड़ जेल में बंद और दूसरी जेलों में बंद बदमाश भी इसी एप का इस्तेमाल जेल में बंद रहने के बावजूद छोटे फोन से कर रहे हैं। असल में फोन में इस एप का इस्तेमाल कर रहे कॉलर के नंबर को ट्रेस नहीं किया जा सकता है कि फोन विदेश से आया था या फिर देश से। क्योंकि कॉलर का नंबर जब भी दूसरे फोन पर आता है। उसमें यूएसए और कनाडा का कोड दिखता है। 

कुछ मोबाइल फोन पर कोडिंग भी आई सामने
सूत्रों की मानें तो जब से एयर स्ट्राइक भारत ने पाकिस्तान पर की है। उसके बाद बॉर्डर पर सुरक्षा एजेंसियों ने कुछ कोड वर्डिंग में बातें सुनी हैं जिसके बाद एजेंसियां सतर्क हो गई हैं। इन कोडिंग को लेकर एजेंसियां बॉर्डर व कश्मीर में संदिग्धों तक पहुंचने की कोशिश कर रही हैं जिससे आने वाले बड़ी घटना को टालकर आतंकवादियों क मंसूबों को खत्म किया जा सके। 

व्हाट्सएप कॉलिंग के साथ इस्तेमाल
पुलिस अधिकारियों ने बताया कि आजकल गैंग सोशल मीडिया और कॉलिंग एप का इस्तेमाल कर सुरक्षा एजेंसियों को चकमा दे रहे हैं। यह गैंग भी एपा ही करता है। साथी आपस में किसी वारदात को अंजाम देने या फिर योजना बनाने के लिए व्हाट्सएप कॉलिंग की सहायता लेते है जिससे वह पुलिस की आंखों में धूल झोंक सके। इसके अलावा गैंग टू सैकेंड एप का इस्तेमाल करता है। इस एप से वह कारोबारियों से फोन कर वसूली करते हैं। अगर पुलिस कॉलर का नंबर जानने की कोशिश करती है तो उसको पीड़ित के फोन पर यूएसए और कनाडा का कोड नंबर दिखाई देता है। जिससे पुलिस आरोपी तक पहुंचने में नाकाम साबित होती है। गैंग ने कारोबारियों से वसूली करने के लिए कई बार इस एप का इस्तेमाल किया है। हैरानी की बात यह है कि इसके लिए कोई सिम की जरूरत नहीं होती है।

दिल्ली, यूपी और साउथ के शहरों पर निगाह
सूत्रों की मानें तो जब से जम्मू कश्मीर से धारा 370 को सरकार ने हटाया गया है। तभी से सुरक्षा एजेंसियों को कई संदिग्ध चीजों के बारे में पता चला है। दिल्ली में 7 से 8 जगह जिसमें पुरानी दिल्ली और सीलमपुर के आसपास का एरिया, यूपी और साउथ के कुछ शहरों की कॉल व यहां से इस्तेमाल करने वाले सोशल मीडिया अकाउंट पर सबसे ज्यादा नजरें हैं। टू सेकेंड एप का जिस तरह से इस्तेमाल किया जा रहा है। उससे शक है कि स्लीपर सेल भी एजेंसियों से बचने के लिए इसका इस्तेमाल कर रहा है। 

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