Chandrayaan 2: यूएस ने फहराया था झंडा, भारत बनाएगा अशोक लाट व इसरो का चिह्न

Edited By Pardeep,Updated: 07 Sep, 2019 01:07 AM

us hoisted the flag india will make the mark of ashok lat and isro

Chandrayaan 2: अमेरिका ने चांद पर भेजे गए अपने पहले मानव मिशन अपोलो 2011 के दौरान चांद पर झंडा लहराया था। अमेरिका का अपोलो 2011, 20 जुलाई 1969 को चांद पर उतरा था। वहीं, भारत चंद्रयान 2 की लैंडिंग के बाद चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चप्पे-चप्पे पर...

नई दिल्लीः Chandrayaan 2: अमेरिका ने चांद पर भेजे गए अपने पहले मानव मिशन अपोलो 2011 के दौरान चांद पर झंडा लहराया था। अमेरिका का अपोलो 2011, 20 जुलाई 1969 को चांद पर उतरा था। वहीं, भारत चंद्रयान 2 की लैंडिंग के बाद चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चप्पे-चप्पे पर सदियों के लिए अपनी उपस्थिति का निशान दर्ज करा देगा। चंद्रयान-2 का रोवर चांद पर जांच करने के दौरान जगह-जगह अशोक की लाट और इसरो का प्रतीक चिह्न बनाएगा। इसके लिए रोवर में खास व्यवस्था की गई है। 

ऐसे बनेगी आकृति
चंद्रयान-2 चांद की सतह का नक्शा तैयार करेगा। वहीं खनिजों की मौजूदगी की जांच करेगा। चंद्रमा के वातावरण की रिपोर्ट तैयार करेगा और किसी भी रूप में वहां पानी की मौजूदगी का पता लगाएगा। इतना ही नहीं, चंद्रमा पर रिसर्च के दौरान छह पहियों वाला रोवर चांद पर भारत सरकार के चिन्ह अशोक की लाट और इसरो के प्रतीक चिह्न को अंकित करेगा। इसके लिए रोवर के पहियों में अशोक लाट और इसरो के प्रतीक का चिह्न बनाया गया है। रोवर के चंद्रमा पर भ्रमण करने के दौरान ये चिन्ह चांद की सतह पर बन जाएंगे। 

क्या हैं लैंडर और रोवर?
वाशिंगटन पोस्ट से बातचीत में मुंबई स्थित थिंक टैंक गेटवे हाउस के स्पेस एंड ओशन स्टडीज के रिसर्चर चैतन्य गिरी ने कहा था, 'चांद के रहस्यमयी दक्षिणी ध्रुव पर पहली बार कोई अंतरिक्षयान उतरेगा। इस मिशन में लैंडर का नाम मशहूर वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के नाम पर विक्रम रखा गया है और रोवर का नाम प्रज्ञान है। विक्रम भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों के पहले प्रमुख थे। लैंडर वो है जिसके जरिए चंद्रयान चांद पर पहुंचेगा। रोवर का मतलब लैंडर में मौजूद उस रोबोटिक वाहन से है, जो चांद पर पहुंचकर वहां की चीजों को समझेगा और रिसर्च करेगा।' 

पानी और जीवाश्म की संभावना
2008 के मिशन चंद्रयान-1 के बाद भारत का ये दूसरा मून मिशन (Moon Mission) है। पहले मून मिशन में भारत ने चांद पर पानी की खोज की थी। भारत ने 1960 के दशक में अंतरिक्ष कार्यक्रम शुरू किया था। दूसरे मिशन के लिए भारत ने चांद के उस हिस्से (दक्षिणी ध्रुव) का चुनाव किया है, जहां अब तक कोई नहीं पहुंचा। माना जाता है कि चांद का दक्षिणी ध्रुव बेहद जटिल है। इसके साथ ही यहां नई जानकारियों का खजाना छिपा हो सकता है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि चांद के इस हिस्से में पानी और जीवाश्म मिल सकते हैं। 

चंद्रयान-2 की अहम खोज
इसरो के अनुसार चंद्रयान-2 मिशन के तहत चांद पर मौजूद चट्टानों में मैग्नीशियम, कैल्शियम और लोहे जैसे खनिज तत्वों की खोज की जाएगी। साथ ही, मिशन में चंद्रमा पर पानी की संभावनाओं और चांद की बाहरी परत की भी जांच की जाएगी। चंद्रयान-2 पहले मिशन में की गई खोजों को आगे बढ़ाएगा। 

दक्षिणी ध्रुव ही क्यों
तमाम जोखिमों के बावजूद चंद्रयान 2 को दक्षिणी ध्रुव पर ही क्यों भेजा जा रहा है? इसकी सबसे बड़ी वजह यही है कि चांद के इस हिस्से की अब तक जांच नहीं की गई है। वैज्ञानिकों को यहां कुछ नया मिलने की उम्मीद है। उम्मीद है कि इस इलाके के ज्यादातर हिस्से में हमेशा अंधेरा रहता है और सूरज की किरणें न पड़ने के कारण यहां बहुत ठंड होती है। ऐसे में यहां पानी और खनिज होने की संभावना बहुत ज्यादा है। चांद का दक्षिणी ध्रुव ज्वालामुखियों और उबड़-खाबड़ जमीन से भरा हुआ है। हाल के कुछ ऑर्बिट मिशन ने इन संभावनाओं को और मजबूत कर दिया है। अगर दक्षिणी ध्रुव पर पानी मिलता है तो भविष्य में इंसानों के चांद पर बसने में ये मददगार साबित हो सकता है। चंद्रमा की बाहरी सतह की जांच से इस ग्रह के निर्माण की गुत्थियों के सुलझाने में काफी मदद मिलेगी। 

पूरी मानवता के लिए लाभकारी
इसरो अध्यक्ष के सिवन ने कहा था कि चंद्रयान-2 की सफलता केवल भारत के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया और मानवता के लिए लाभकारी होगी। इससे चंद्रमा के प्रति हमारी समझ बढ़ेगी। भारत 2022 तक चांद पर अंतरिक्ष यात्री भेजने की भी तैयारी कर रहा है।अंतरिक्ष विज्ञान पर किताब लिख चुके मार्क विटिंगन ने भी सीएनएन से बातचीत में कहा था, 'भारत ने अंतरिक्ष मिशन को लेकर फैसले लेने शुरू कर दिए हैं। भारत जल्द ही अंतरिक्ष में महाशक्ति के तौर पर उभरेगा, क्योंकि इन अंतरिक्ष मिशन का महत्व जानता है।'

 

 

 

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