न कोई भाषा थोपी जानी चाहिए न किसी भाषा का कोई विरोध होना चाहिए: उपराष्ट्रपति

Edited By Anil dev,Updated: 14 Sep, 2020 04:46 PM

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उप राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने सोमवार को कहा कि कोई भी भाषा संस्कारों की तरह शुद्ध और आस्थाओं की तरह पवित्र होती है इसलिए न कोई भाषा थोपी जानी चाहिए और न ही किसी भाषा का कोई विरोध होना चाहिए। हिन्दी दिवस के अवसर पर मधुबन एजुकेशनल बुक्स द्वारा...

नई दिल्ली: उप राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने सोमवार को कहा कि कोई भी भाषा संस्कारों की तरह शुद्ध और आस्थाओं की तरह पवित्र होती है इसलिए न कोई भाषा थोपी जानी चाहिए और न ही किसी भाषा का कोई विरोध होना चाहिए। हिन्दी दिवस के अवसर पर मधुबन एजुकेशनल बुक्स द्वारा आयोजित समारोह को वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि देशवासियों को अपनी भाषाई विविधता पर गर्व होना चाहिए। उन्होंने कहा कि भाषाएं हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं और उनका समृद्ध साहित्यिक इतिहास रहा है। ज्ञात हो कि आज ही के दिन 1949 में संविधान सभा ने हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया था। 

उन्होंने कहा, हमारी हर भाषा वंदनीय है। कोई भी भाषा हमारे संस्कारों की तरह शुद्ध और हमारी आस्थाओं की तरह पवित्र होती है। न कोई भाषा थोपी जानी चाहिए न किसी भाषा का कोई विरोध होना चाहिए।'' उन्होंने कहा कि समावेशी और स्थायी विकास के लिए शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होनी ही चाहिए। नयी शिक्षा नीति 2020 में भारतीय भाषाओं और संस्कृति को महत्व दिए जाने के लिए प्रसन्नता जताते हुए नायडू ने किहा कि शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होने से बच्चों को स्वयं अभिव्यक्त करने में और विषय को समझने में आसानी होगी और पढऩे में रुचि पैदा होगी। च्च्हरिजन'' में महात्मा गांधी गांधी के लेख को उद्धृत करते हुए उप राष्ट्रपति ने कहा कि क्षेत्रीय भाषाओं की नींव पर ही राष्ट्रभाषा की भव्य इमारत खड़ी होगी। 

राष्ट्रभाषा और क्षेत्रीय भाषाएं एक दूसरे की पूरक हैं, विरोधी नहीं। उन्होंने कहा, महात्मा गांधी और डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा सुझाया मार्ग ही हमारी भाषाई एकता को सुदृढ़ कर सकता है। हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं को सीखना आसान होगा क्योंकि राष्ट्र के संस्कार, विचार तो समान ही हैं। उपराष्ट्रपति ने कहा कि सभी भारतीय भाषाओं का विकास साथ ही हो सकता है। च्च्हम अन्य भारतीय भाषाओं के कुछ न कुछ मुहावरे, शब्द या गिनती जरूर सीखें। उन्होंने सलाह दी कि हिन्दी में भी छात्रों को अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्य और प्रख्यात साहित्यकारों से परिचित कराया जाए तथा हिंदी के साहित्यकारों, उनकी कृतियों से अन्य भाषाई क्षेत्रों को परिचित कराया जाए। 

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