नजरिया : नीतीश कुमार की दिक्कतें

Edited By Seema Sharma,Updated: 09 Jul, 2018 10:32 AM

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बहुत शोर सुनते थे पहलू में दिल का, जो चीरा तो कतरा  भर लहू न निकला- जेडीयू का बहुचर्चित दिल्ली अधिवेशन ऐसे ही नतीजे के साथ  समाप्त हो गया है। ले-दे कर जो बात सामने आई है वो यह कि जेडीयू लोकसभा चुनाव में भाजपा द्वारा सीटें ऑफर किए जाने का इंतजार...

नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा): बहुत शोर सुनते थे पहलू में दिल का, जो चीरा तो कतरा  भर लहू न निकला- जेडीयू का बहुचर्चित दिल्ली अधिवेशन ऐसे ही नतीजे के साथ  समाप्त हो गया है। ले-दे कर जो बात सामने आई है वो यह कि जेडीयू लोकसभा चुनाव में भाजपा द्वारा सीटें ऑफर किए जाने का इंतजार करेगी। दरअसल यही नीतीश और जेडीयू की हकीकत है। उसके पास कोई ज्यादा ऑप्शन नहीं बचे हैं। विधानसभा चुनाव में जिस गठबंधन ने सरकार स्थापित की थी उसे नीतीश तोड़ चुके हैं। जेडीयू और आरजेडी की राहें अब अलहदा -अलहदा हैं। लालू कई मौकों पर कह चुके हैं कि नीतीश के लिए अब वे नो एंट्री का बोर्ड लगा चुके हैं।
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लालू के लाल जिस तरह से नीतीश सरकार के खिलाफ मुहिम छेड़े हुए हैं उससे भी साफ है कि आरजेडी उसे मिल रहे जनसमर्थन को बरकरार रखना और बढ़ाना चाहती है। अब चूंकि यह प्रत्युत्तर उसे नीतीश विरोध के कारण मिल रहा है ऐसे में वह लोकसभा में नीतीश के साथ जाकर बिहार में अपनी सरकार बनाने की संभावनाओं पर विराम लगाने से तो रही। उधर कांग्रेस ने भी लगभग साफ़ कर दिया है कि उसे नीतीश में कोई ख़ास रूचि नहीं है और वह आरजेडी के साथ  बनी रहेगी। हालांकि कांग्रेस की नज़र नीतीश-बीजेपी गठजोड़ से उपजने वाली स्थितियों पर जरूर है।

कांग्रेस को उम्मीद है कि  ऐसे में उपेंद्र कुशवाहा एनडीए से छिटक सकते हैं जो उसके लिए उपयोगी साबित हो सकते हैं। लोकसभा में कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय समता पार्टी के पास तीन सीटें हैं. इस लिहाज़ से करीब चालीस विधानसभा क्षेत्रों में उनका सीधा प्रभाव है जो विधानसभा चुनाव के लिहाज़ से महत्वपूर्ण समीकरण है। इसलिए इस तरफ की तस्वीर लगभग साफ़ है। अब जो भी होना है दूसरी तरफ ही होना है यानी एनडीए की तरफ। लेकिन एनडीए में बीजेपी किसी भी सूरत में कम से कम राम बिलास पासवान को नहीं छोड़ेगी ,यह भी तय है। और रामबिलास पासवान के होते नीतीश को ज्यादा सीटें मिलें यह मुश्किल काम है क्योंकि लोकसभा में उनके पास नीतीश से जयादा सांसद हैं।
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हां, उलटे अगर ज्यादा विवाद हुआ तो  बीजेपी नीतीश को अकेला छोड़ सकती है लेकिन वह पासवान और कुशवाहा को साथ लेकर ही लड़ना चाहेगी। इसमें उसे भविष्य के  समीकरण भी नज़र आ रहे हैं। नीतीश भी इस समीकरण को बखूबी समझते हैं। इसीलिए उन्होंने अपनी तरफ से सीटों की कोई मांग रखे बगैर एनडीए के ऑफर की बात कही है। ये  समय अर्जित करने की  रणनीति है। क्या पता कोई नया समीकरण इस बीच बन जाये जो नीतीश को फ्रंट सीट पर ला खड़ा करे। पर फिलहाल अपनी कोई डिमांड नहीं रख पाना नीतीश की मजबूरी है।
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निगाहें नीतीश-शाह मीटिंग पर 
दिल्ली में दरबार सजाने के बाद जेडीयू  की  निगाहें अब अमित शाह के साथ होने वाली नीतीश कुमार की बैठक पर टिक गई हैं। यह बैठक 12  जुलाई को पटना में प्रस्तावित हैं। माना जा रहा है कि इसमें बीजेपी नीतीश को सीट शेयरिंग का कोई संभावित फॉर्मेट  दे सकती है। उसके बाद तस्वीर थोड़ी साफ हो सकती है। वैसे अंदर की सूचना यह भी है कि भाजपा नीतीश को कोई ज्यादा भाव नहीं देना चाहती। अमित शाह चतुर सुजान हैं और उनकी तरफ से-बिहार तुम सम्भालो, दिल्ली हमें देखने दो-जैसा ऑफर आ सकता है। शाह को नीतीश की तमाम मजबूरियों का भी आभास है लिहाजा वे बेहतर मूव चलने की स्थिति में हैं।
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क्या है वस्तुस्थिति 
बिहार में लोकसभा की 40 और विधानसभा की 243  सीटें हैं। लोकसभा में मोदी लहर ने नीतीश को 2  और लालू को 4  सीटों पर ला खड़ा कर  दिया था। बीजेपी को 20  सीटें मिली थीं। उसकी सहयोगी राम बिलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी को 6 सीटें मिली थीं जबकि उपेंद्र कुशवाहा की समता पार्टी के तीन सांसद जीते थे। हालांकि विधानसभा में  जरूर  नीतीश को 70 सीटें मिली थीं ,लेकिन यहां आरजेडी 81 सीट के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। भाजपा के पास भी विधानसभा में 53 सीटें हैं (पूरा एनडीए 61 ), दोनों ही लिहाज़ से भाजपा प्रभावशाली स्थिति में है। इसलिए  सीट शेयरिंग पर पेंच फंसना स्वाभाविक है।

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