वोट के नाम पर दलितों का होता है शोषण, ये आंकड़े बताएंगे आपको सच...

Edited By ,Updated: 23 Jul, 2016 12:01 AM

vote in the name of the exploitation of the downtrodden these figures show you the truth

भारत में जब भी कहीं चुनावों की सरगर्मी तेज होती है तो नेताओं को दलितों की चिंता सताने लगती है। इसके अलावा चुनावों के दौरान नेता दलितों...

नई दिल्ली: भारत में जब भी कहीं चुनावों की सरगर्मी तेज होती है तो नेताओं को दलितों की चिंता सताने लगती है। इसके अलावा चुनावों के दौरान नेता दलितों के लिए कई बड़े वादे भी करते हैं। लेकिन उनके ये वादे चुनावों में ही नजर आते हैं। अक्सर राजनेताओं का दलित प्रेम तभी जागता है जब चुनाव नजदीक हों। लेकिन हकीकत ये है कि ये सियासी लोग दलितों की वोट तो चाहते हैं लेकिन उनकी चिंता नहीं करते। आज पंजाब केसरी आपको बताएगा कि देश में कितने प्रतिशत दलित रहते हैं और कितने पिछड़े हुए हैं।
 
आबादी में है बड़ा हिस्सा
भारतीय आबादी में दलितों का एक बहुत बड़ा हिस्सा है। आंकड़ों के मुताबिक लगभग 16.6% भारतीय आबादी अनुसूचित जाति (यानि एससी) की है। इसके अलावा लगभग 8.6% भारतीय आबादी अनुसूचित जनजाति (यानि एसटी) की है। इसीलिए ज्यादातर नेता दलितों को वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करते हैं। लेकिन इनके हित की बात कोई राजनेता नहीं करता।
 
गरीबी रेखा से नीचे हैं दलित
योजना आयोग के आंकड़ों के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 36.8% लोग तथा शहरी क्षेत्रों में 39.9% अनुसूचित जाति के लोग गरीब रेखा से नीचे हैं। इसके अलावा यदि अन्य में बात की जाए तो ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 16.1% तथा शहरी क्षेत्रों में 16% लोग अन्य जातियों के लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं। (अन्य में ओबीसी भी शामिल हैं)

साक्षरता से कई कदम दूर खड़े हैं दलित
यदि साक्षरता के मुद्दे पर बात करें तो दलित पढ़ाई-लिखाई से कई कदमों की दूरी पर खड़े हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 62.3% लोग तथा शहरी क्षेत्रों में 76.4% दलित साक्षरता से कई कदम दूर खड़े हैं। 
 
स्कूल बीच में छोड़ देते हैं बच्चे
इसके अलावा कुछ दलित ऐसे हैं जो घर से पढ़ाई के लिए आवश्यक खर्चा और घर की अन्य गतिविधियों के कारण स्कूल के बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़ देते हैं। आंकड़ों के मुताबिक 51% अनुसूचित जाति और 58% अनुसूचित जनजाति के बच्चे अपनी स्कूल लाईफ में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं। लगभग 37% अन्य बच्चों की पढ़ाई ही बीच में छूटती है।
 
अभावों की जिंदगी
बदलते युग में भी सरकार द्वारा दी जा रहीं आम सेवाएं दलितों तक पहुंच से काफी दूर हैं। ये लोग सरकार द्वारा मुहैया कराई जा रहीं सेवा बिजली और शौचालय से परे हैं। 2011 में पीआबी के मुताबिक 41% दलित परिवारों में बिजली नहीं है ऐसे में रात का अंधेरा इनकी जिंदगी को काली कर रहा है। इसके अलावा 75%दलित परिवारों के पास शौचालय की सुविधा ही नहीं है।

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