कोविड-19 के खिलाफ युद्ध, आज के ‘अर्जुन’ बने योद्धा

Edited By vasudha,Updated: 16 Jun, 2020 10:20 AM

war against covid 19

भगवद गीता पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है, विशेष रूप से अब कोविड-19 महामारी के दौर में। ऑक्सफोर्ड यूनिवॢसटी की पत्रिका ‘द यूरोपियन हार्ट जर्नल’ में प्रकाशित एक लेख में इस संबंध में उल्लेख किया गया है। लेख में स्वास्थ्यकर्मी को राजकुमार अर्जुन के रूप...

नेशनल डेस्क: भगवद गीता पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है, विशेष रूप से अब कोविड-19 महामारी के दौर में। ऑक्सफोर्ड यूनिवॢसटी की पत्रिका ‘द यूरोपियन हार्ट जर्नल’ में प्रकाशित एक लेख में इस संबंध में उल्लेख किया गया है। लेख में स्वास्थ्यकर्मी को राजकुमार अर्जुन के रूप में पेश किया गया है और अस्पताल उसके लिए कुरुक्षेत्र (युद्ध का मैदान) है। इस लेख में हजारों साल पहले गीता में दिए गए उद्धरणों और आज के हालात में समानता दिखाई गई है कि किस तरह से मुश्किल हालात में अर्जुन अधर्म के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे और किस तरह से आज स्वास्थ्य कार्यकत्र्ता कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं। 

 

जिस तरह से महाभारत काल में जब कुरुक्षेत्र(युद्ध के मैदान) में पांडव और कौरव एक-दूसरे के आमने-सामने युद्ध के लिए आए और अर्जुन अपने कत्र्तव्य पथ से विचलित नहीं हुए ठीक वैसे ही आज कोरोनाकाल में जो स्वास्थ्यकर्मी अपनी जान की परवाह किए बगैर चुनौती का सामना कर रहे हैं वो आज के ‘अर्जुन’ हैं। लेख में स्वास्थ्य कर्मचारियों को अर्जुन के साथ अस्पतालों को कुरुक्षेत्र की संज्ञा दी गई है। आज के हालात में भगवद गीता के एक अंश को रेखांकित करते हुए बताया गया है कि जब पांडव और कौरव सेना एक-दूसरे के आमने-सामने खड़ी हो गई तो अर्जुन के सामने धर्मसंकट था कि वो कैसे अपने ही भाइयों, चाचा और स्वजनों के खिलाफ लड़ाई लड़ सकते हैं। उस समय उनके पथ-प्रदर्शक श्री कृष्ण ने बताया कि वो इस समय धर्म की रक्षा के लिए युद्धभूमि में हैं। आज के संदर्भ में कोरोना महामारी ने 80 लाख से अधिक लोगों को संक्रमित किया है और 4 लाख लोगों की मौत हो गई है। 

 

लेख में कहा गया है कि संकट की इस घड़ी में स्वास्थ्यकर्मी अर्जुन की भूमिका में युद्ध के मैदान में डटे हुए हैं तथा कोरोना वायरस के खिलाफ इस जंग का मैदान(अस्पताल) में गलत सूचना, एक इलाज की कमी या एक प्रभावी रोकथाम रणनीति, और एक प्रणाली जो हमें विफल रही है। इस अराजकता के बीच, स्वास्थ्यकर्मी को धर्म  द्वारा निर्देशित किया जा रहा है।  कोविड-19 महामारी ने अपने पेशे से स्वास्थ्यकर्मियों को संकट में डाल दिया है। कोविड-19 ने अपने समुदायों और अपने परिवारों की सुरक्षा और जरूरतों के बलिदान के साथ, उनके समुदायों और मानवता के लिए चिकित्सकों की पेशेवर प्रतिबद्धता को चुनौती दी है। यह हमारे चरित्र, हमारे ध्यान, हमारी ताकत और सबसे बीमार लोगों की देखभाल करने के हमारे जुनून का एक लिटमस टैस्ट बन गया है। इस उम्मीद के साथ कि निराशा और हताशा के बीच भी हम किसी न किसी तरह से हर जीवन में एक अंतर बना रहे हैं, जिसे हमें छूने और स्वस्थ करने का विशेषाधिकार है।

 

इस संकट ने चिकित्सकों के लिए आंतरिक अशांति पैदा कर दी है; फिर भी भगवद गीता ने मन को शांत करने, मानसिक ध्यान और संकल्प के साथ, विशेष रूप से कठिन परिस्थितियों में मन को अशांत नहीं करने देना सिखाया। समाज के रूप में हमने जो तल्खियां पहले निवेश की थीं, वे अब प्रासंगिक या महत्वपूर्ण नहीं लगतीं। इसके अलावा, भगवद गीता हमें सिखाती है कि हमें अपने कार्यों के परिणामों से खुद को अलग करना सीखना चाहिए अथवा परिणाम की इच्छा का त्याग करना चाहिए। नैदानिक स्थिति(क्लीनिकल सिचूएशन) पर चिकित्सकों का पूर्ण नियंत्रण नहीं हो सकता है, लेकिन वे अपने नैदानिक कत्र्तव्यों और सेवा को समभाव के साथ उठा सकते हैं। सभी उम्र के रोगियों में कोविड-19 प्रगति के प्राकृतिक पाठ्यक्रम ने हमें इस त्याग को अपनाने के लिए प्रस्तुत किया है। यद्यपि हमें अपने रोगियों के हित में कार्य करना जारी रखना चाहिए, साक्ष्य का अभ्यास करना चाहिए और जीवन को बचाने में मदद करने के लिए हमें कोई कसर नहीं छोडऩी चाहिए तथा इस तथ्य का सम्मान करना है कि न तो जीवन और न ही मृत्यु हमारे नियंत्रण में है। यदि कुछ भी हो तो इस महामारी ने हमें दिखाया है कि हम केवल धर्म के संघनित्र हैं।

 

कोविड-19 ने असमानताओं को उजागर किया
कोविड-19 ने हमारे समाज में उन बड़ी संरचनात्मक असमानताओं को उजागर किया है जो हमेशा नस्लीय/जातीय अल्पसंख्यक समूहों और निम्र सामाजिक-आर्थिक स्तर के लिए मौजूद रही हैं। स्वास्थ्य सेवा और बीमा, भीड़-भाड़ वाले स्थानों, खाद्य असुरक्षा और सेवाओं में रोजगार के लिए असमानताएं, जिनका अक्सर जनता सामना करती है, उन सभी को कोविड-19 संक्रमण सामने ला दिया है। कोविड-19 ने टूटी हुई स्वास्थ्य प्रणालियों पर एक सुर्खी डाली है, जो सभी रोगियों के इलाज के लिए स्वास्थ्यकर्मियों को नैतिक दायित्वों के साथ छोड़ देती है, इस युद्ध के मैदान के लिए अपर्याप्त व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण और बीमारी के प्रसार को रोकने के लिए अपर्याप्त सरकारी नीतियों का खुलासा हुआ। दरअसल, कोविड-19 संकट ने स्वास्थ्य असमानताओं और स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों में फ्रैक्चर को दिखाया है और इन विभाजनों को व्यापक रूप से विभाजित किया है। 

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