देर से जागीं महाराष्ट्र और केंद्र की सरकार

Edited By ,Updated: 12 Apr, 2016 05:41 PM

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महाराष्ट्र में सूखे की मार झेल रहे मराठावाड़ के लातूर क्षेत्र में पांच लाख लीटर लेकर पानी वाली ट्रेन पहुंच चुकी है। पानी से भरे 10 वैगन के

महाराष्ट्र में सूखे की मार झेल रहे मराठवाड़ के लातूर क्षेत्र में पांच लाख लीटर लेकर पानी वाली ट्रेन पहुंच चुकी है। पानी से भरे 10 वैगन के साथ वॉटर ट्रेन सोमवार को मिराज से रवाना हुई थी। पानी के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहे लोगों को संभव है नियंत्रित करना कठिन हो जाए। इसलिए कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए धारा 144 लगाकर पुलिस की तैनाती करना जरूरी था। इन सभी इलाकों में पुलिस बल की संख्या पर्याप्त होनी चाहिए। जिस प्रकार पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है लोगों के सब्र का बांध कभी भी टूट सकता है। सुप्रीम कोर्ट की ओर से जब केंद्र और राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई गई तो आनन फानन यह व्यवस्था की गई है। जबकि इसे काफी समय पहले किया जाना चाहिए था। महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त लोग चार सालों से पानी का इंतजार कर रहे हैं। 

दूसरा,पानी आपूर्ति के समय असामाजिक तत्वों के हावी होने से भी इनकार नहीं किया जा सकता। कुछ लोग ज्यादा से ज्यादा पानी लेने के लिए कोई न कोई हरकत कर सकते है। पानी माफिया सक्रिय हो सकता है। अब तक 8 से 12 दिनों में एक बार पीने का पानी मिलता रहा है। इससे उनकी समस्या की गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है। सूखा प्रभावित जिन इलाकों में टैंकरों द्वारा पानी भेजा जाना हैं उनमें टैंकर के साथ—साथ उसके चालक—परिचालक की सुरक्षा की व्यवस्था भी होनी चाहिए। वहां भी पानी की लूट न मच जाए इसे रोकने के लिए ठोस कदम उठाने बहुत जरूरी हैं। 

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्रेन के जरिए लातूर के लोगों को पानी पहुंचाने के सरकार के कदम का स्वागत किया है। उन्होंने इस काम सहयोग करने की इच्छा जताई है। यह भी स्वागत योग्य है। इससे प्रेरणा लेते हुए अन्य राज्यों को भी ऐसा उत्साह दिखाना चाहिए। केजरीवाल ने दिल्ली के लोगों से महाराष्ट्र के सूखा प्रभावित लातूर शहर के लिए पानी बचाने की अपील की है। इसका अनुसरण देश के अन्य राज्य भी करेंगे तो महाराष्ट्र को जल संकट से उबारने में आसानी होगी। वैसे भी विशेषज्ञ दो साल बाद अच्छे मानसून की जो संभावनाएं व्यक्त कर रहे हैं,उससे भी काफी उम्मीद बंध गई है। महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में जून के अंतिम दिनों में मानसून दस्तक देता है। जब पूरा देश इसके सूखाग्रस्त इलाकों की मदद को जुट जाएगा तो यह ढाई माह का समय भी कट जाएगा।

यह सही है कि 5-6 लाख टन पानी सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लिए पर्याप्त नहीं है। इससे सभी लोगों का सूखा गला तर नहीं किया जा सकता। इस समय वहां 25-30 लाख टन पानी पहुंचाने की व्यवस्था करनी चाहिए। महाराष्ट्र के 16 जिले भयंकर सूखे से बुरी तरह प्रभावित हैं। राज्य के 43 गांवों में से 15 हजार गांव सूखाग्रस्त हैं। राज्य की 125 तहसीलों में गंभीर जल संकट है। सूखाग्रस्त इलाकों में लोगों का पलायन हो रहा है। यही नहीं, एक अन्य भयानक तथ्य और है कि लातूर, उस्मानाबाद, बीड़ में इंडस्ट्री ठप पड़ गई है। मराठवाड़ा में 2000 टैंकरों से पानी सप्लाई किया जा रहा है। लातूर में हर रोज 200 टैंकर पानी सप्लाई कर रहे हैं। वहां करोड़ों रुपए की फसल बर्बाद हो चुकी है। पिछले 4 सालों में सूखाग्रस्त इलाकों से 25 लाख लोगों का पलायन हुआ है।

महाराष्ट्र के अलावा देश के 9 राज्य सूखे की चपेट में हैं। स्थिति कितनी भीषण है कि पिछले 139 सालों के इतिहास में नासिक जिले में गोदावरी नदी का घाट पहली बार सूख गया है। सूखे से निपटने में वाकई केंद्र की ओर से ढिलाई बरती गई है। वह इस दिशा में कुछ कर ही नहीं रहा था। महाराष्ट्र सरकार को अधिक चिंता होनी चाहिए थी,लेकिन अफसेास की बात है कि वह आईपीएल मैचों के आयोजन की चकाचौंध में अपनी सूखे से पी​डित जनता का दर्द भूल गई थी। यदि वह पहले सक्रिय हो गई होती तो सूखे की स्थिति इतनी न बिगड़ती। चार साल पहले राज्य और केंद्र में यूपीए की सरकार थी। दोनों में तालमेल की कमी नहीं होनी चाहिए थी,लेकिन प्रयास ही नहीं किए गए तो तालमेल कहां से होता। अब राज्य और केंद्र में भाजपा की सरकारे हैं। यदि आते की वे जुट जातीं तब भी हालात बिगड़ने से कुछ हद तक बचाए जा सकते थे। अब जल्द पता चल जाएगा कि ये कितनी तेजी से प्रयास करती हैं। 

इस समस्या से जुड़ा एक पहलू और भी है। गांवों के बेरोजगार लोगों को कुछ आस मनरेगा से होती है,लेकिन इसके तहत 150 दिन की जगह सिर्फ 25 दिन रोजगार मिल रहा है। क्या सूखे से प्रभावित राज्यों के लोगों का इससे गुजारा चल पाएगा,जो पूरी तरह मनरेगा पर ही निर्भर हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर भी केंद्र को लताड़ लगाई है। केंद्र की वजह से राज्यों को फंड में देरी हुर्इ् है। इससे पहले कि कोई ओर समस्या सिर उठाए केंद्र को अपने प्रयासों में तेजी लानी चाहिए। यह सही है कि केद्र के पास काम के साथ समस्याओं,विपक्ष के प्रहारों और आलोचनाओं की कभी कमी नहीं रहती। इन्हीं का धैर्यपूर्वक सामना करते हुए उसे अपने सारे कामों को समय पर पूरा है। अन्यथा उसका बचा हुआ कार्यकाल यूं ही निकल जाएगा।

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