WEF मंच पर बोले मोदी-दुनिया के सामने 3 बड़े खतरे, आतंकवाद सबसे बड़ी चुनौती

Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Jan, 2018 06:11 PM

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज विश्व आर्थिक मंच (WEF) की 48वीं बैठक के उद्घाटन भाषण की शुरुआत नमस्कार करके की। अपने भाषण में मोदी ने कहा कि WEF का एजेंडा दुनिया के हालात को सुधारना है। मोदी को सुनने के लिए बॉलीवुड के बादशाह शाहरुख खान भी सम्मेलन...

दावोसः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज विश्व आर्थिक मंच (WEF) की 48वीं बैठक के उद्घाटन भाषण की शुरुआत नमस्कार करके की। अपने भाषण में मोदी ने कहा कि WEF का एजेंडा दुनिया के हालात को सुधारना है। मोदी को सुनने के लिए बॉलीवुड के बादशाह शाहरुख खान भी सम्मेलन में मौजूद रहे। इससे पहले दावोस (स्विट्जरलैंड) के स्विट्जरलैंड के राष्ट्रपति एलेन बर्सेट ने सम्मेलन में कहा कि अर्थव्यवस्था, क्लाइमेट चेंज सबसे बड़ी चुनौती हैं।

मोदी ने गिनाईं बड़ी चुनौतियां
-मोदी ने विश्व आर्थिक मंच की 48वीं वार्षिक बैठक के पूर्ण सत्र में अपने उद्घाटन भाषण में जलवायु परिवर्तन को बड़ी चुनौती बताते हुए कहा कि इसके कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं, कई द्वीप डूब चुके हैं या डूबने की कगार पर हैं, बहुत गर्मी, बहुत सर्दी, कहीं बाढ़ तो कहीं सूखे की समस्या आ रही है। मोदी ने कहा कि भारतीय परंपरा में पृथ्वी को माता माना गया है। यदि हम पृथ्वी की संतान हैं तो प्रकृति और मानव के बीच संघर्ष क्यों चल रहा है। लालचवश हम अपने सुखों के लिए प्रकृति का शोषण तक कर रहे हैं। हमें अपने आप से पूछना होगा कि यह विकास हुआ है?

-प्रधानमंत्री ने आतंकवाद को दूसरी बड़ी चुनौती बताते हुए ‘अच्छे आतंकवादी और बुरे आतंकवादी’ के बीच बनाए गए  कृत्रिम भेद का मुद्दा उठाया और परोक्ष रूप से पाकिस्तान को घरते हुए कहा कि आतंकवाद जितना खतरनाक है उससे भी खतरनाक है ‘गुड टेररिस्ट’ और ‘बैड टेररिस्ट’ के बीच बनाया गया कृत्रिम भेद। 

मोदी के भाषण के प्रमुख अंशः
-पिछली बार जब 1997 में भारतीय प्रधानमंत्री यहां आए थे, भारत का सकल घरेलू उत्पाद करीब 400 अरब डॉलर था, जो कि अब छह गुना से अधिक बढ़ चुका है। शांति, सुरक्षा और स्थिरता के मुद्दे आज गंभीर वैश्विक चुनौतियों के रुप में सामने आये है। मौजूदा दौर में तकनीक का महत्व काफी बढ़ा है, यह हमारे तौर तरीकों, राजनीति और जीवन के विभिन्न पहलुओं को गहराई से प्रभावित कर रही है।

-बहुत से देश आत्म केंद्रीत होते जा रहे है. ग्लोब्लाइजेशन अपने नाम के विपरीत सिकुड़ता जा रहा है। ग्लोब्लाइजेशन की चमक धीरे-धीरे कम होती जा रही है. दूसरे विश्व युद्ध के बाद बने संगठनों की संरचना क्या आज के मानव की आकांक्षाओं को परिलिक्षित करते है? इन संस्थानों की पुरानी व्यवस्था और बहुताय विकासशील देशों के बीच बहुत बड़ी खाई है।

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