पश्चिम बंगाल का सबरीमाला: जहां महिलाओं को नहीं है प्रवेश की अनुमति

Edited By Anil dev,Updated: 05 Nov, 2018 01:11 PM

west bengal sabarimala saheb das devotees

महिलाओं के प्रवेश को लेकर सबरीमला मंदिर विवाद की छाया पश्चिम बंगाल में एक स्थानीय काली पूजा समिति पर भी दिखाई दी है। समिति अपने पंडाल में महिलाओं को प्रवेश की इजाजत नहीं देती जबकि विद्वानों ने इस परंपरा का विरोध किया है।

कोलकाता: महिलाओं के प्रवेश को लेकर सबरीमला मंदिर विवाद की छाया पश्चिम बंगाल में एक स्थानीय काली पूजा समिति पर भी दिखाई दी है। समिति अपने पंडाल में महिलाओं को प्रवेश की इजाजत नहीं देती जबकि विद्वानों ने इस परंपरा का विरोध किया है। शहर के दक्षिणी हिस्से में ‘चेतला प्रदीप संघ’ पूजा समिति के सदस्यों ने पत्रकारों को बताया कि बीरभूम जिले में तारापीठ शक्तिपीठ के पुजारियों ने 34 साल पहले जब देवी की पूजा शुरू की थी तब से महिलाओं को पंडाल में प्रवेश की अनुमति नहीं है। पूजा समिति के संयुक्त सचिव सैबल गुहा ने कहा, ‘‘हम उन नियमों को बरकरार रखना चाहते हैं जिसमें कहा गया है कि अगर कोई महिला पूजा के दौरान पंडाल में प्रवेश करती है तो हमारे इलाके में त्रासदी होगी। हम पिछले 34 साल से चली आ रही परंपरा को तोड़ नहीं सकते।’’ 

पुरुष सदस्य करते हैं देवी के लिए प्रसाद को तैयार
पूजा समिति के पुरुष सदस्य और इलाके के लोग अन्य काम करने के अलावा देवी के लिए ‘प्रसाद और भोग’ तैयार करते हैं।  पूजा समिति के अन्य सदस्य साहेब दास ने कहा, ‘‘हमारी पूजा समिति में महिला सदस्य हैं लेकिन वे पंडाल में प्रवेश नहीं करतीं क्योंकि वे जानती है कि इससे देवी नाराज हो सकती है। वे देवी को पंडाल तक लाने जैसे अन्य कामों में पुरुषों के साथ हैं तथा विसर्जन में शामिल होती हैं।’’ भारतविद नरसिंह प्रसाद भादुड़ी ने ऐसे नियमों को पितृ सत्ता का प्रदर्शन करने वाला तथा स्त्रियों के प्रति अत्याधिक द्वेषपूर्ण बताया। उन्होंने कहा, ‘‘फिर वे क्यों एक देवी की पूजा कर रहे हैं? आयोजकों की इस प्रथा का ग्रंथों में कहीं जिक्र नहीं है। पूजा के दौरान महिलाओं को मंदिर के भीतर मौजूद रहने से रोकने का कोई नियम नहीं है।’’ 

महिलाओं को मंदिर जाने से रोकने का कोई नियम नहीं
वरिष्ठ पुजारी और विद्वान शम्भुनाथ कृत्य स्मृतितीर्थो ने कहा, ‘‘मंदिर परिसर में जहां देवी की मूर्ति रखी है वहां महिलाओं को जाने से रोकने का कोई नियम नहीं है।’’ बहरहाल, एक स्थानीय महिला श्रद्धालु सबिता दास को इस परम्परा से कोई आपत्ति नहीं है।  उन्होंने कहा, ‘‘20 साल पहले जब से मैं इस इलाके में बहू बनकर आई थी तब से मैं इस परम्परा का पालन कर रही हूं। हम परंपरा को तोडऩा नहीं चाहते। यह हमारे विश्वास में समाहित है।’’     

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