Edited By Mahima,Updated: 04 Dec, 2024 09:45 AM
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महाराष्ट्र की नई सरकार 5 दिसंबर को शपथ लेगी, जिसमें बीजेपी को सीएम पद मिलने की संभावना है, जबकि शिवसेना और एनसीपी को डिप्टी सीएम मिलेगा। बीजेपी 132 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी, जबकि शिवसेना और एनसीपी ने क्रमशः 57 और 41 सीटें जीतीं। मंत्रालयों...
नेशनल डेस्क: महाराष्ट्र में सत्ता की राजनीति ने एक बार फिर गर्मी पकड़ ली है। नई महायुति सरकार का शपथ ग्रहण 5 दिसंबर को दक्षिण मुंबई के आज़ाद मैदान में होगा, जहां मुख्यमंत्री (CM) और दो डिप्टी सीएम शपथ लेंगे। इसके बाद मंत्रिमंडल और विभागों के बंटवारे को अंतिम रूप दिया जाएगा। शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कई अन्य शीर्ष नेता भी मौजूद रहेंगे। इस बार का शपथ ग्रहण समारोह खास इसलिए है, क्योंकि इस बार बीजेपी कोटे से मुख्यमंत्री बनने की संभावना जताई जा रही है, जबकि शिवसेना और एनसीपी के कोटे से डिप्टी सीएम बनाए जाएंगे।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का परिणाम
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे 23 नवंबर को आए थे, जिसमें महायुति (बीजेपी, शिवसेना और एनसीपी) को भारी बहुमत मिला। बीजेपी ने सबसे अधिक 132 सीटें जीतीं, जबकि शिवसेना ने 57 और एनसीपी ने 41 सीटें हासिल की। अन्य छोटे दलों ने भी कुछ सीटों पर जीत दर्ज की, लेकिन बीजेपी की स्थिति सबसे मजबूत रही। इस चुनाव में बीजेपी ने 149 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, शिवसेना ने 81 और एनसीपी ने 59 उम्मीदवारों को टिकट दिया था। वर्तमान में महाराष्ट्र सरकार में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे हैं, जिनके नेतृत्व में शिवसेना का गुट बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चला रहा है। बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस और एनसीपी के अजित पवार डिप्टी सीएम के पद पर कार्यरत हैं।
पावर शेयरिंग को लेकर खींचतान
महाराष्ट्र में नई सरकार के गठन को लेकर पिछले 11 दिनों से खींचतान जारी है। पावर शेयरिंग के मुद्दे पर बीजेपी ने सीएम पद पर दावा किया है, जिस पर अजित पवार गुट ने समर्थन दिया है। इससे शिवसेना का सीएम पद पर दावा कमजोर पड़ गया है। अब सबसे बड़ा मुद्दा मंत्रालयों के बंटवारे को लेकर है, और इसी पर चर्चा तेज हो गई है। महायुति के नेताओं के बीच इस मुद्दे पर लगातार दिल्ली में बैठकें हो रही हैं। देवेंद्र फडणवीस, एकनाथ शिंदे और अजित पवार ने कई बार दिल्ली में बैठकें की हैं, और अभी भी अजित पवार दिल्ली में ही डेरा डाले हुए हैं।
अजित पवार की निगाहें बड़े विभागों पर
अजित पवार की हमेशा से कोशिश रही है कि वह बड़े विभागों को अपने पास रखें। जब 2023 में अजित पवार गुट महायुति का हिस्सा बना था, तो उसने अपनी पार्टी के 9 विधायकों को मंत्री बना लिया था और कृषि, वित्त जैसे महत्वपूर्ण विभागों पर कब्जा कर लिया था। अब अजित पवार एक बार फिर वही बड़े विभाग अपने पास रखने के लिए प्रयासरत हैं। इसके लिए वह पूरी ताकत से जुटे हुए हैं और मंत्रालयों के बंटवारे में अपनी हिस्सेदारी को सुनिश्चित करने के लिए दबाव बना रहे हैं।
शिंदे गुट का विरोध और बीजेपी का दबदबा
वहीं, एकनाथ शिंदे गुट के विधायक भी समझौते के मूड में नहीं हैं। उनका कहना है कि इस चुनाव में उनकी अगुवाई वाली शिवसेना ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उनकी योजनाओं के कारण ही महायुति को बड़ी जीत मिली है। शिंदे गुट का तर्क है कि यदि उन्हें सीएम नहीं बनाया जा रहा है और डिप्टी सीएम पद दिया जाता है, तो फिर उन्हें गृह मंत्रालय जैसे बड़े विभाग मिलने चाहिए। शिंदे गुट का कहना है कि जब देवेंद्र फडणवीस सीएम थे तो गृह मंत्रालय उनके पास था, इसलिए शिंदे को भी इस पद का दावा करना चाहिए। बीजेपी इस बार सीएम पद से लेकर मंत्रालयों तक में बड़े भाई की भूमिका में दिखना चाहती है। 2019 में बीजेपी को सीएम पद के लिए छोटे भाई की भूमिका निभानी पड़ी थी, लेकिन इस बार बीजेपी के पास 89% की सफलता दर है, जिससे पार्टी को अपने दावे को मजबूत करने का अवसर मिल रहा है। बीजेपी की कोशिश है कि पार्टी वर्कर्स का मनोबल बढ़े और वह आगामी चुनावों में अपने दम पर चुनाव जीतने के लिए तैयार रहें।
2029 तक का रोडमैप
2019 के राजनीतिक घटनाक्रम के बाद बीजेपी के संगठन का मनोबल गिरा था, और हाल ही में लोकसभा चुनाव में भी पार्टी का प्रदर्शन कमजोर रहा था। ऐसे में बीजेपी आगामी बीएमसी चुनाव से लेकर 2029 के लोकसभा चुनाव तक को लेकर रणनीति तैयार कर रही है। पार्टी किसी भी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहती है और यही वजह है कि वह सीएम पद और मंत्रालयों के बंटवारे में अपनी प्रमुख भूमिका चाहती है। बीजेपी जानती है कि यदि वह सीएम पद से समझौता करती है, तो यह उसकी आगामी चुनावी योजनाओं को प्रभावित कर सकता है।
सीएम पद के लिए क्या 'कुर्बानियां' देनी होंगी?
बीजेपी चाहती है कि महायुति में किसी भी तरह की रार न हो, ताकि यह संदेश जाए कि सीएम पद और मंत्रालयों का बंटवारा आपसी सहमति से हुआ है। इसके लिए दिल्ली और मुंबई के बीच लगातार बैठकें हो रही हैं और कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई जा रही है। एकनाथ शिंदे और अजित पवार ने पहले ही यह स्पष्ट कर दिया है कि वे बीजेपी हाईकमान के फैसले के साथ खड़े हैं और उनका हर फैसला मंजूर होगा। हालांकि, हाल ही में शिंदे ने अचानक से अपना कार्यक्रम बदल लिया और बीमार होने का बहाना बनाकर बैठकों से दूरी बनाई। इसके बावजूद, मुंबई में महायुति की बैठक में दोनों नेताओं के बीच फिर से बैठकों और संदेशों का आदान-प्रदान हुआ। आज बीजेपी विधायक दल की बैठक होने वाली है, जिसके बाद महायुति की बैठक प्रस्तावित है। इस बैठक में ही तय होगा कि तीनों दलों के बीच किस तरह की सहमति बनी और किन-किन कुर्बानियों के साथ मंत्रालयों का बंटवारा हुआ है।
पिछली कैबिनेट का स्वरूप
महाराष्ट्र विधानसभा में कुल 288 सीटें हैं और मुख्यमंत्री समेत मंत्रिमंडल की क्षमता 43 है, यानी कुल 43 मंत्री हो सकते हैं। जुलाई 2023 में अजित पवार गुट की एनसीपी महायुति का हिस्सा बनी थी, जिसके बाद शिंदे कैबिनेट का स्वरूप बदल गया था। इस समय 105 विधायकों वाली बीजेपी में केवल 10 मंत्री शामिल किए गए थे, जबकि अजित पवार गुट के 9 मंत्री और शिवसेना के 10 मंत्री इस कैबिनेट का हिस्सा बने थे। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे शिवसेना कोटे से थे, जबकि डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस (बीजेपी) और अजित पवार (एनसीपी) थे। महाराष्ट्र की राजनीतिक स्थिति फिलहाल बेहद गतिशील है और 5 दिसंबर को होने वाला शपथ ग्रहण समारोह महत्त्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। बीजेपी की स्थिति सबसे मजबूत है, लेकिन मंत्रालयों और सत्ता के बंटवारे को लेकर अब भी असमंजस बना हुआ है। अब यह देखना होगा कि बीजेपी, शिवसेना और एनसीपी के बीच किस तरह का समझौता होता है और किस पार्टी को क्या 'कुर्बानियां' देनी पड़ती हैं।