इलेक्शन डायरी: जब कोर्ट ने रद्द किया धर्म के आधार पर जीते पूर्व मंत्री का निर्वाचन

Edited By Pardeep,Updated: 14 May, 2019 04:34 AM

when court has canceled the election of the former minister won basis religion

देश में चल रहे लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान धर्म के नाम पर खूब सियासत हो रही है लेकिन इतिहास में देश ऐसे मामलों का गवाह भी बना है जब धर्म के नाम पर सियासत करने वाले उम्मीदवार का न सिर्फ चयन रद्द हुआ बल्कि उसके चुनाव लडऩे पर 3 साल की रोक भी लगी।...

इलेक्शन डेस्क: देश में चल रहे लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान धर्म के नाम पर खूब सियासत हो रही है लेकिन इतिहास में देश ऐसे मामलों का गवाह भी बना है जब धर्म के नाम पर सियासत करने वाले उम्मीदवार का न सिर्फ चयन रद्द हुआ बल्कि उसके चुनाव लडऩे पर 3 साल की रोक भी लगी। मामला 2004 के लोकसभा चुनाव से जुड़ा है।

केरल की मुवातुपुज्जा लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरे इंडियन फैडरल डैमोक्रेटिक पार्टी के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी.सी. थॉमस का चुनाव केरल हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था। पी.सी. थॉमस को चुनाव में 256411 वोट हासिल हुए थे जबकि उनके विरोधी सी.पी.एम. के पी.एम. इस्माईल को 255882 वोट हासिल हुए। थॉमस ने इस चुनाव के दौरान 529 वोटों के अंतर से जीत हासिल की। उनके विरोधी उम्मीदवार ने पूरे मामले में हाईकोर्ट में याचिका दायर कर आरोप लगाया कि चाको ने क्षेत्र के ईसाई वोटरों को भ्रमित करने के लिए धार्मिक आधार पर वोट मांगे। चाको ने इलाके में ऐसे पर्चे वितरित किए जिनमें उन्होंने खुद को ईसाइयों का प्रतिनिधि बताया था। 

इन पर्चों में उनके अलावा पॉप जॉन पाल टू की फोटो के साथ-साथ मदर टैरेसा की फोटो भी थी। अदालत में चाको द्वारा पर्चे बांटे जाने का आरोप साबित हो गया और उन्हें रिप्रैजैंटेशन ऑफ पीपल एक्ट की धारा 123 (3) और 123 (5) के तहत दोषी पाया गया। अदालत ने उनका चुनाव रद्द करते हुए विरोधी उम्मीदवार पी.एम. इस्माईल को विजेता घोषित किया।

इस पूरे मामले में चाको ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी लेकिन उन्हें वहां भी कोई राहत नहीं मिली और सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। इसके बाद उनके खिलाफ चुनाव आयोग में उन्हें अयोग्य करार देने के लिए याचिका दायर की गई जिस पर फैसला करते हुए आयोग ने उन्हें रिप्रैजैंटेशन ऑफ पीपल एक्ट 1951 की धारा  8 (ए) के सब-सैक्शन 1 के तहत 19 मई 2010 को 3 साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया था।                

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