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Dr. Ambedkar ने क्यों कहा था, "मैं संविधान जला दूंगा"? जानें उनसे जुड़ी कुछ विशेष बातें

Edited By Mahima,Updated: 06 Dec, 2024 10:44 AM

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Dr. Ambedkar ने 1953 में कहा था, "मैं संविधान जला दूंगा", यह बयान संविधान में सुधार की आवश्यकता को लेकर था। उनका मानना था कि यदि संविधान सही तरीके से लागू नहीं होता, तो यह समाज के लिए हानिकारक हो सकता है। उनका यह बयान अल्पसंख्यकों के अधिकारों की...

नेशनल डेस्क: 6 दिसंबर को भारतीय संविधान निर्माता, समाज सुधारक और दलितों के मसीहा डॉ. भीमराव अंबेडकर का महापरिनिर्वाण दिवस है। इस दिन को हम श्रद्धा और सम्मान के साथ याद करते हैं, क्योंकि 1956 में आज ही के दिन डॉ. अंबेडकर का निधन हुआ था। वे भारतीय संविधान के निर्माण में अपनी अहम भूमिका के लिए जाने जाते हैं। भारतीय संविधान के प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में उनकी भूमिका को कभी भुलाया नहीं जा सकता।

हालांकि, डॉ. अंबेडकर ने संविधान बनाने के बाद एक विवादित बयान दिया था, जिससे देशभर में चर्चा का विषय बन गया। उन्होंने एक बार संसद में कहा था, "मैं संविधान जला दूंगा"। यह बयान उन्होंने क्यों दिया था? आइए जानते हैं इसके पीछे की कहानी। यह घटना 2 सितंबर 1953 की है, जब राज्यसभा में एक महत्वपूर्ण बहस चल रही थी। बहस का मुद्दा संविधान संशोधन और राज्यपाल की शक्तियों के बढ़ाने पर था। डॉ. अंबेडकर ने अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा को लेकर अपनी चिंता जाहिर की और जोर देकर कहा कि छोटे तबके के लोगों को हमेशा यह डर रहता है कि बहुसंख्यक समाज उन्हें नुकसान पहुंचा सकता है। इस बहस के दौरान डॉ. अंबेडकर ने यह भी कहा, "मेरे मित्र अक्सर मुझसे कहते हैं कि संविधान मैंने ही बनाया है, और इसे जलाने वाला भी मैं ही होऊंगा। लेकिन मैं आपको यह बता दूं कि ऐसा करना किसी के लिए ठीक नहीं होगा।" 

डॉ. अंबेडकर का यह बयान असल में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा की दिशा में था। उनका मानना था कि यदि बहुसंख्यक समाज अल्पसंख्यकों के अधिकारों को नजरअंदाज करता है, तो इससे भारतीय लोकतंत्र को नुकसान पहुंचेगा। उन्होंने यह भी कहा कि संविधान में दिए गए प्रावधानों को अगर सही तरीके से लागू नहीं किया गया, तो यह पूरी तरह से निरर्थक साबित हो जाएगा।1953 में किए गए इस बयान पर सवाल उठने के बाद, 19 मार्च 1955 को संसद की कार्यवाही के दौरान एक बार फिर डॉ. अंबेडकर से इस मुद्दे पर सवाल पूछा गया। पंजाब के सांसद अनूप सिंह ने उनसे पूछा कि आपने 1953 में संविधान जलाने की बात क्यों कही थी। इस पर डॉ. अंबेडकर ने अपना पूरा पक्ष रखा। उन्होंने कहा, "मैंने सोच-समझकर यह बयान दिया था। हम लोग मंदिर इसलिए बनाते हैं ताकि उसमें देवता आएं और उसका वास हो। लेकिन अगर मंदिर में दानव रहने लगे तो उसे नष्ट करना जरूरी हो जाता है। इसी तरह, संविधान को बनाए जाने का उद्देश्य यह था कि यह लोगों के भले के लिए काम करें। यदि इस संविधान में भ्रष्टाचार, अन्याय और असमानता का वास होता है, तो इसे जलाना ही बेहतर होगा।"

डॉ. अंबेडकर का यह बयान संविधान में सुधार की आवश्यकता को लेकर था। उनका मानना था कि एक संविधान जितना भी अच्छा क्यों न हो, अगर उसे सही तरीके से लागू नहीं किया जाएगा तो वह समाज के लिए हानिकारक साबित हो सकता है। इसके लिए जरूरी था कि संविधान को लागू करते समय उसकी मूल भावना को समझा जाए और सभी वर्गों के हितों की रक्षा की जाए। डॉ. अंबेडकर का दृष्टिकोण हमेशा समाज के कमजोर वर्गों की रक्षा करने का था। उनका मानना था कि भारतीय समाज में न केवल धार्मिक और जातिगत भेदभाव को समाप्त किया जाना चाहिए, बल्कि संविधान के प्रावधानों को वास्तविक रूप में लागू किया जाए ताकि हर नागरिक को समान अधिकार मिल सके।

डॉ. अंबेडकर ने अपने जीवनभर समाज के हर वर्ग के लिए काम किया, और उनका यह संदेश आज भी हमारे लिए प्रासंगिक है। उनके योगदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता, और आज उनके महापरिनिर्वाण दिवस पर हम उन्हें नमन करते हैं। डॉ. भीमराव अंबेडकर का यह बयान, "मैं संविधान जला दूंगा", असल में उनके संविधान और उसके सही कार्यान्वयन के प्रति गहरी चिंता को दर्शाता है। उन्होंने यह चेतावनी दी थी कि यदि संविधान में कोई बुराई समाहित हो जाती है, तो उसे नष्ट करना ही बेहतर होगा। उनकी यह सोच और दृष्टिकोण आज भी भारतीय लोकतंत्र की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण है। 

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