किसान आंदोलनः  ट्रूडो के बयान से खालिस्तानी साजिश की बू ! आग में घी डाल सकता है पाक

Edited By Tanuja,Updated: 03 Dec, 2020 05:00 PM

why did justin trudeau support farmers agitation in india

भारत में किसान आंदोलन की चिंगारी अब विदेशी तक पहुंच चुकी है । मोदी सरकार के नए कृषि बिल का विरोध विदेशी में बसे ...

इंटरनेशनल डेस्क (तनुजा तनु) भारत में किसान आंदोलन की चिंगारी अब विदेशों तक पहुंच चुकी है । मोदी सरकार के नए कृषि बिल का विरोध विदेशी में बसे भारतीयों द्वारा  किया जा रहा है। किसान परिवारों के विदेशों में बसे  रिश्तेदार इस आंदोलन को लेकर चिंतित हैं और इसके खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे हैं। इस बीच किसान आंदोलन को लेकर टिप्पणी कर प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो बुरी तरह विवादों में घिर गए हैं।  ट्रूडो के बयान को खालिस्तान आंदोलन की साजिश से जोड़ा जा रहा है। 

 

 ट्रूडो की टिप्पणी क्या भारत की अखंडता पर सवाल ? 
दरअसल  ट्रूडो की टिप्पणी भारत की अखंडता पर सवाल माना जा रहा है। कनाडा में खालिस्तान विद्रोही ग्रुप सक्रिय रहा है और जस्टिन ट्रूडो पर वैसे समूहों से सहानुभूति रखने के आरोप लगते रहे हैं। यहां तक कि ट्रूडो टोरंटो में एक अतिवादी गुरुद्वारे की ओर से आयोजित कराई गई खालसा दिवस की परेड में भी शामिल हो चुके हैं। कनाडा के कुछ गुरुद्वारों में भारतीय राजदूतों की एंट्री तक बैन है। सिखों के प्रति उदारता के कारण कनाडाई पीएम को मजाक में जस्टिन 'सिंह' ट्रूडो भी कहा जाता है। यही वजह है कि ट्रूडों की टिप्पणी को खालिस्तान समर्थक आंदोलन के साथ जोड़ कर देखा जा रहा है।  

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 सिख अलगाववाद और कनाडा की राजनीति
कनाडा में सिख वोट बैंक की राजनीति मायने रखती है।  ट्रूडो की लिबरल पार्टी, कंजर्वेटिव पार्टी और जगमीत सिंह की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी तीनों के लिए सिख वोटर मायने रखते हैं। यहां सिख आबादी पाँच लाख के क़रीब है। 2015 में जस्टिन ट्रूडो ने कहा था कि उन्होंने जितने सिखों को अपनी कैबिनेट में जगह दी है उतनी जगह भारत की कैबिनेट में भी नहीं है।  तब ट्रूडो की कैबिनेट में चार सिख मंत्री थे। भारत और कनाडा के रिश्तों में सिख अलगाववाद या खालिस्तान एक अहम मुद्दा रहा है। 

 

भारत के खिलाफ साजिश की बू !
ट्रूडो की किसान आंदोलन को लेकर टिप्पणी के बाद देश ही नहीं वैश्विक मंचों पर भी बहस शुरू हो गई है क्योंकि कनाडाई पीएम एकमात्र ऐसे अंतर्राष्ट्रीय नेता हैं जिन्होंने इस मुद्दे पर बयान दिया है।  ट्रूडो के बयान से खालिस्तानी साजिश की बू आ रही है जिसमें पाकिस्तान आग में घी डाल सकता है। हालांकि भारतीय विदेश मंत्रालय ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए ट्रूडो को नसीहत दी है कि वो भारत के आंतरिक मामलों में दखल देने की कोशिश न करें।  ट्रूडो के बयान को खारिज करते हुए भारत ने  आपत्ति जताई तो सोशल मीडिया पर भी बहस छिड़ गई।  कुछ लोगों ने समर्थन किया तो ज्यादातर लोगों ने यही कहा कि ट्रूडो सिख वोट बैंक की राजनीति चमकाने के लिए भारत के आंतरिक मामलों पर टिप्पणी कर रहे हैं। 

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किसान आंदोलन पर पाकिस्तान की नजर
पंजाब के किसानों द्वारा किए जा रहे इस आंदोलन पर पाकिस्तान की भी नजर है। पाकिस्तान इन आंदोलनों में खालिस्तान समर्थकों की एंट्री चाहता है ताकि इस आंदोलन को और उग्र बनाया जा सके। इस आंदोलन में पाकिस्तान भी अपने लिए एक शानदार अवसर देख रहा है क्योंकि  किसान आंदोलन में अब खालिस्तान की भी एंट्री हो गई है। आंदोलन में शामिल एक व्यक्ति साफ तौर पर कह रहा है कि जो हाल इंदिरा गांधी का हुआ था वही मोदी का भी होगा। ये बयान किसी किसान का नहीं हो सकता है,  ये खालिस्तान की भाषा है । इस आंदोलन में खालिस्तानियों की एंट्री इसी बात का सबूत है। 

 

भारत सरकार के सामने दोहरी चुनौती
पंजाब से हर साल बड़ी संख्या में लोग विदेशों में बस जाते हैं।  विदेश में जाकर बस गए लोगों की बातों को आज भी पंजाब के ग्रामीण इलाकों में बहुत गंभीरता से लिया जाता है, क्योंकि यहां के लोग अब भी बड़े पैमाने पर कनाडा और अमेरिका जैसे देशों में बसना चाहते हैं लेकिन अब कुछ देश विरोधी संगठन, विदेशों में बसे इन भारतीयों को भी गुमराह कर रहे हैं और इन्हें ये बताया जा रहा है कि भारत में बैठे इनके किसान रिश्तेदार संकट में हैं। ऐसे में भारत सरकार के सामने दोहरी चुनौती है कि उसे अपने देश के लोगों को ही नहीं बल्कि देश के बाहर बस चुके लोगों को भी विश्वास में लेना होगा। 

 

प्रधानमंत्री मोदी के लिए ट्रूडो क्यों मायने नहीं रखते?
फरवरी 2018 में ट्रूडो भारत के सात दिवसीय दौरे पर आए थे। उस दौरे दौरान भी तनाव साफ़ दिखा था।  ट्रूडो का दौरा बहुत ही गुमनाम रहा था और भारत सरकार की तरफ़ से कोई ख़ास तवज्जो नहीं दी गई थी। भारतीय और विदेशी मीडिया में यह बात कही गई कि क्षेत्रफल के मामले में दुनिया के दूसरे सबसे बड़े देश कनाडा के पीएम को लेकर भारत ने कोई गर्मजोशी नहीं दिखाई। तब भारत के दौरे पर आए ट्रूडो को  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें बिल्कुल तवज्जो नहीं दी थी जो  मोदी सरकार का ट्रूडो को सिख अलगाववादियों को लेकर स्पष्ट संदेश था।हालांकि, कनाडा और भारत के संबंधों में गर्मजोशी ना होने के पीछे और भी कई वजहें हैं। 

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 जानें ट्रूडो ने अपने बयान में क्या कहा ?
दरअसल, ट्रूडो ने भारत में आंदोलनकारी किसानों का समर्थन करते हुए यहां की स्थिति पर चिंता जाहिर की है। उन्होंने कहा कि उनका देश कनाडा शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन के अधिकार का सम्मान करता है। ट्रूडो का यह बयान भारत में वायरल हो चुका है। सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म ट्विटर पर #Trudeau ट्रेंड कर रहा है। कुछ लोग इस हैशटैग के साथ ट्रूडो के बयान पर सवाल उठा रहे हैं तो कुछ का कहना है कि ट्रूडो ने किसानों का साथ देकर सही किया है।


कनाडा में भारतीयों की स्थिति 

  • कनाडा की कुल आबादी में 5.6 फीसदी लोग भारतीय मूल के हैं।
  •  इनकी आबादी 19 लाख है. कनाडा की कैबिनेट में भी कई भारतीय मूल के लोग शामिल हैं।  
  • भारतीय मूल की अनीता आनंद जस्टिन ट्रूडो की कैबिनेट में हैं और वो हिंदू हैं।
  • इमिग्रेशन को लेकर कनाडा की संसद में जस्टिन ट्रूडो सरकार द्वारा पेश रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में यहां भारतीय अप्रवासी आंकड़ो के हिसाब से शीर्ष पर रहे।
  • नए लोगों की रिकॉर्ड संख्या के कारण, भारतीय कनाडा में सबसे तेजी से बढ़ते समुदायों में से एक हैं। 
  • लगभग पौने चार करोड़ आबादी वाले कनाडा में भारतीयों की संख्या 16 लाख के पार हो गई है.
  • 2019 में कैनेडा सरकार ने 3,41,180 लोगों को स्थाई निवासी के तौर पर स्वीकार किया।
  • इसी दौरान 30 हजार शरणार्थियों के साथ 4 लाख से ज्यादा स्टडी परमिट और 4 लाख 4 हजार लोगों को अस्थायी वर्किंग वीजा दिया गया।
  • 2016 में 39,340 भारतीय प्रवासी कनाडा पहुंचे थे। 
  • 2019 में यह आंकड़ा बढ़कर 85,000 हो गया, जिसमें 105 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। 

दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्ते 
2015 के अप्रैल महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कनाडा के दौरे पर गए थे। मोदी का ये दौरा 42 सालों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री का कनाडा का पहला दौरा था।  इसी से पता चलता है कि कनाडा भारत के लिए कितना मायने रखता है। द्विपक्षीय रिश्तों में किसी देश से कितनी गर्मजोशी है  यह उस पर निर्भर करता है कि दोनों देशों के बीच कारोबार कितने का है। इस लिहाज से  कनाडा और भारत दोनों एक दूसरे के लिए बहुत मायने नहीं रखते। आंकड़ों के मुताबिक, 2018-19 में कनाडा और भारत के बीच का द्विपक्षीय कारोबार महज 6.3 अरब डॉलर का था। जाहिर है कि यह कारोबार अमेरिका, चीन और खाड़ी के देशों की तुलना में कुछ भी नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने अब तक के कार्यकाल में चीन, अमेरिका और खाड़ी के देशों के सबसे ज्यादा दौरे किए हैं औऱ इन देशों से तुलना में कनाडा कहीं नहीं ठहरता है। 

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पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की नाराजगी
साल 2015 में जस्टिन ट्रूडो ने कहा था कि भारत की कैबिनेट से ज्यादा सिख उनकी कैबिनेट में हैं।  तब ट्रूडो की कैबिनेट में चार सिख मंत्री थे। ट्रूडो पर पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह भी ट्रूडो पर कनाडाई सिख अलगाववादियों के साथ सहानुभूति रखने का आरोप लगा चुके हैं।  जब ट्रूडो भारत आए तो चारों सिख मंत्री भी उनके साथ थे। अमरिंदर सिंह ने ट्रूडो के रक्षा मंत्री हरजीत सज्जन से मुलाकात करने से इनकार कर दिया था। कनाडा के प्रधानमंत्री भी अपने मंत्रियों की तीखी आलोचना की वजह से नाराज थे और उन्होंने अपने दौरे में अमरिंदर सिंह से मुलाकात नहीं की थी। 

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