क्यों जरूरी है भारत के लिए चंद्रयान-2 ?

Edited By Ravi Pratap Singh,Updated: 15 Jul, 2019 06:49 PM

why is chandrayaan 2 essential for india

भारत में बच्चों के चंदा मामा के वैज्ञानिक अध्यन की शुरुआत वैसे तो चंद्रयान-1 के अक्टूबर, 2008 को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (पीएसएलवी) से प्रक्षेपण के साथ हुई थी।

 

2006 में आई बालीवुड फिल्म चांद के पार चलो का चंर्चित गीत,

भरोसा कर लो तुम

साथ निभाउंगा

सितारों की दुनिया में

तुमको ले जाऊंगा

कर लो मेरा ऐतबार चलो

चाँद के पार चलो, के बोल अल्का याग्निक ने दिए हैं और इसके गीतकार हैं ऋषि आज़ाद। चांद के ईर्द-गिर्द रची गई रचनाएं हमेशा ही प्रेम रस में डूबी रही हैं और चांद हमेशा से ही कवियों का पसंदीदा विषय भी रहा है। लेकिन मानव की तार्किकता ने प्राचीन समय से ही चांद के प्रति उत्सुकता पैदा की है। इसलिए मनुष्य के लिए चांद हमेशा से ही जिज्ञासा का केंद्र रहा है।    

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भारत में बच्चों के चंदा मामा के वैज्ञानिक अध्यन की शुरुआत वैसे तो चंद्रयान-1 के अक्टूबर, 2008 को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (पीएसएलवी) से प्रक्षेपण के साथ हुई थी। इसका वजन 1380 किलोग्राम था। लेकिन चांद के वैज्ञानिक मिशन की चर्चा पहली बार 1999 में भारतीय विज्ञान अकादमी की बैठक में की गई थी। वर्ष 2002 में एस्ट्रोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया ने इस विचार को आगे बढ़ाया। जल्द ही भारतीय अंतरिक्ष संगठन (इसरों) ने राष्ट्रीय चंद्र मिशन टास्क फोर्स का गठन किया। 15 अगस्त, 2003 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राष्ट्र को किए संबोधन में चंद्रयान मिशन की घोषणा कर चंद्रयान-1 मिशन की आधारशिला रख दी थी। 

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चंद्रयान-2 चंद्रयान-1 की उसी सफल यात्रा का दूसरा पड़ाव है। लांचिंग से कुछ समय पहले ही चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण जीएसलवी-एमके-3 में आई तकनीकी खामी के चलते भले ही अनिश्चित काल के लिए टाल दिया गया हो। लेकिन अब यह सफल यात्रा रूकेगी नहीं। इसरो समय आने पर चंद्रयान-2 मिशन की जानकारी देगा। 

चंद्रयान-1 और चंद्रयान-2 मिशन में क्या है अंतर

चंद्रयान-1 प्रक्षेपण के 5 दिन चांद के पास पहुंचा। साथ ही इसे चांद की कक्षा में स्थापित होने में 15 दिन लग गए। चंद्रयान-1 का मकसद चांद की सतह के नक्शे, पानी के अंश और हीलियम की तलाश करना था। चंद्रयान-1 चांद की सतह से 100 किलोमीटर ऊपर ध्रुवीय कक्षा में स्थापित किया था। इसके साथ ही भारत चांद पर यान भेजने वाला दुनिया का छठा देश बन गया था। चंद्रयान-1 का कार्यकाल दो वर्ष का था लेकिन तकनीकी खामी के चलते इसका संपर्क नियंत्रण कक्ष से टूट गया था। चंद्रयान-1 करीब एक साल तक सक्रिय रहा। 

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चंद्रयान-2 पहले मिशन का ही अगला भाग है। लेकिन पूरी तरह से देशी तकनीक पर आधारित चंद्रयान-2 मिशन के तीन हिस्से हैं। ऑर्बिटर, लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान। ऑर्बिटर चांद की कक्षा में स्थापित होगा। लैंडर विक्रम रोवर को लेकर चांद के अनजाने हिस्से दक्षिणी ध्रव पर उतरेगा और रोवर तय जानकारियों को विश्लेषण कर पृथ्वी पर मौजूद नियंत्रण कक्ष पर भेजेगा। जहां इस डाटा का वैज्ञानिक विश्लेषण किया जाएगा। चंद्रयान-2 की सफल उड़ान के साथ ही भारत अमेरिका, चीन और रूस के बाद ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा देश होगा।

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चंद्रयान-2 क्यों है जरूरी ?

चांद पृथ्वी का सबसे करीबी खगोलीय पिंड है जिस पर अन्य स्पेस मिशन के मुकाबले अंतरिक्ष खोज करना आसान है। इसके चलते सुदूर अंतरिक्ष मिशन के लिए जरूरी तकनीकों के परीक्षण के लिए पृथ्वीवासियों के लिए बेहतर मंच हैं। चंद्रयान-2 अंतरिक्ष में भारतीय वैज्ञानिकों की समझ को बढ़ाने के साथ ही स्पेस के लिए जरूरी नई पीढ़ी की प्रौद्योगिकी विकसित करने में भी मददगार साबित होगा। इससे चांद पर मानव बस्ती बसाने की संभावनाओं को तलाशनें में भी मदद मिलेगी।  

 

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