Edited By shukdev,Updated: 08 Dec, 2018 09:06 PM
ये संकेत तो पहले से मिल रहे थे कि राजस्थान में कांग्रेस का पलड़ा भारी है और वहां भाजपा का सूपड़ा साफ होना तय है लेकिन एग्जिट पोल आने के बाद कहा जा रहा है कि मध्य प्रदेश में भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ सकता है। एग्जिट पोल में इंडिया टुडे ने...
नेशनल डेस्क (मनोज कुमार झा): ये संकेत तो पहले से मिल रहे थे कि राजस्थान में कांग्रेस का पलड़ा भारी है और वहां भाजपा का सूपड़ा साफ होना तय है लेकिन एग्जिट पोल आने के बाद कहा जा रहा है कि मध्य प्रदेश में भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ सकता है। एग्जिट पोल में इंडिया टुडे ने कांग्रेस को 104-122, भाजपा को 102-122 और अन्य को 4-11 सीटें दी हैं। ए.बी.पी. ने कांग्रेस को 126, भाजपा को 94 और अन्य को 10 सीटें दी हैं। एन.डी.टी.वी. ने कांग्रेस को 108, भाजपा को 110 और अन्य को 12 सीटें दी हैं। सिर्फ टाइम्स नाऊ ने ही कांग्रेस को सबसे कम 89 सीटें और भाजपा को 126 सीटें दी हैं। एग्जिट पोल पर भरोसा किया जाए तो मध्य प्रदेश में कांग्रेस के जीतने की संभावना प्रबल है।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार 3 बार मुख्यमंत्री रहे। शिवराज सिंह पहली बार नवम्बर, 2005 में मुख्यमंत्री बने थे, जब बाबू लाल गौर को उमा भारती के साथ एक विवाद के बाद मुख्यमंत्री पद छोडऩा पड़ा था। शिवराज सिंह मध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री हैं जो लगातार 11 वर्षों से इस पद पर बने हुए हैं। वर्ष 2005, 2009 और 2013 के चुनावों में उन्हें जोरदार सफलता मिली और इस दौरान ऐसा लगा मानो कांग्रेस की दोबारा वापसी राज्य में मुश्किल होगी क्योंकि दिग्विजय सिंह से लेकर कमलनाथ और अन्य कांग्रेसी दिग्गज पूरी तरह निष्क्रिय दिखाई पड़ रहे थे।
युवा नेतृत्व के रूप में ज्योतिरादित्य सिंधिया लोकप्रिय तो थे, लेकिन सांगठनिक ढांचे के छिन्न-भिन्न होने के कारण अकेले कुछ कर पाना उनके वश में नहीं था। ऐसा लगता था कि मध्य प्रदेश में भाजपा और भाजपा में शिवराज सिंह का कोई विकल्प नहीं है लेकिन अब मामा जी के नाम से लोकप्रिय और इस संबोधन से खुश होने वाले शिवराज सिंह के लिए इस बार सरकार बना पाना काफी चुनौतीपूर्ण हो गया है। सवाल है कि ऐसा आखिर क्यों हुआ?
उल्लेखनीय है कि इस बार चुनाव प्रचार के दौरान मध्य प्रदेश में भाजपा के प्रत्याशियों को कई जगहों पर विरोध का सामना करना पड़ा। यहां तक कि शिवराज सिंह की पत्नी साधना सिंह जब चुनाव प्रचार के लिए गईं, तो उन्हें भी महिलाओं के विरोध का सामना करना पड़ा। वैसे देखा जाए तो शिवराज की छवि व्यक्तिगत तौर पर साफ-सुथरी रही है और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं का भरोसा भी उन्हें हासिल है लेकिन सत्ता तो तब मिलती है जब मतदाताओं का भरोसा हासिल हो। मध्य प्रदेश की राजनीति पर नजदीक से नजर रखने वालों का कहना है कि शिवराज ने यह भरोसा काफी हद तक खो दिया है। इसके पीछे कई वजहें हैं। कुछ खास पर नजर डालते हैं:
व्यापमं घोटाला: व्यापमं घोटाला मध्य प्रदेश का ही नहीं बल्कि देश के बड़े घोटाले के रूप में सामने आया। इस घोटाले की शुरूआत यद्यपि शिवराज के सत्ता में आने से पहले ही हो चुकी थी, पर शिवराज के शासन के दौरान यह घोटाला परवान चढ़ता रहा। माना जाता है कि शिवराज ने इस पर पर्दा डालने की कोशिश की और इस घोटाले के कई गवाहों की संदेहास्पद परिस्थितियों में मौत हो गई जिन्हें हत्या के तौर पर देखा गया।
किसानों का आक्रोश: 6 जून, 2017 को मंदसौर में फसल के मूल्य की बढ़ौतरी के लिए प्रदर्शन कर रहे किसानों पर पुलिस ने गोली चला दी, जिससे शिवराज सरकार की छवि किसान विरोधी की बन गई। बाद में किसानों का आंदोलन दूसरे जिलों में भी फैल गया। इसके अलावा किसानों की कर्ज माफी के मामले में भी शिवराज सरकार ने कुछ भी नहीं किया। कांग्रेस ने चुनाव प्रचार के दौरान मंदसौर गोलीकांड के मुद्दे को भुनाया।
बेरोजगारी का मुद्दा: मध्य प्रदेश में बेरोजगारी का मुद्दा एक बड़ा मुद्दा था, पर इसे लेकर शिवराज सरकार कुछ भी नहीं कर सकी। स्वाभाविक है कि कांग्रेस ने इस मुद्दे को जोरदार ढंग से उठाया और नवजवान मतदाता शिवराज सरकार से निराश दिखे।
सवर्ण मतदाताओं का अंसतोष: एस.सी./एस.टी. एक्ट को लेकर राज्य में सवर्ण मतदाताओं का भाजपा से कुछ मोहभंग दिखाई पड़ा। उल्लेखनीय है कि सवर्ण मतदाताओं ने स्पोक्स नाम का संगठन भाजपा के विरोध में बनाया था। सवर्णों का वोट भाजपा का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है।
विकास की फर्जी बातें: भाजपा ने चुनाव प्रचार का जो तरीका अपनाया, उसमें विकास की फर्जी बातें ही खूब की गईं। प्रधानमंत्री मोदी की तरह शिवराज ने भी वही शैली अपना ली। सोशल मीडिया पर राज्य में सड़कों के विकास की गलत फोटो सांझा कर दी गई। इससे सरकार की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हुए और मतदाताओं के बीच उनकी छवि पर नकारात्मक असर पड़ा।
भाजपा का नकारात्मक प्रचार: लोगों का यह भी मानना है कि यदि राज्य में भाजपा की हार होती है तो उसके पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और अन्य नेताओं का नकारात्मक प्रचार रहा। इनका प्रचार मुद्दा आधारित न होकर कांग्रेस के खिलाफ रहा, खास कर जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी को निशाना बनाया गया, जिसे जनता ने स्वाभाविक तौर पर नापसंद किया। भाजपा के पास चुनाव प्रचार का कोई मुद्दा ही नहीं था, क्योंकि राज्य के साथ केंद्र में भी उसी की सरकार है।
राहुल का आक्रामक प्रचार: इन सबके साथ राहुल गांधी ने कांग्रेस के अन्य नेताओं के साथ आक्रामक प्रचार शुरू किया और चौकीदार ही चोर है का उनका नारा लोगों को प्रभावित करने में कामयाब रहा। इसकी वजह है माल्या, नीरव मोदी आदि प्रकरण और अंत में राफेल।
जनता की बदलाव की चाहत: 3 बार भाजपा की सत्ता के बाद यह भी स्वाभाविक है कि जनता बदलाव की इच्छा करे। चुनावों के दौरान मतदाताओं में सत्ता विरोधी यह प्रवृत्ति स्वाभाविक है।
यही वे मुख्य वजहें हैं जिनके चलते शायद इस बार भाजपा मध्य प्रदेश में वापसी न कर सके और शिवराज की चौथी बार मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा पूरी न हो सके।