Edited By Seema Sharma,Updated: 12 Jul, 2021 04:36 PM
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें ऐसे फैसले लिखने चाहिए जो आम आदमी को आसानी से समझ आ सकें। सुप्रीम कोर्ट की तीन जज की बेंच ने कहा कि अगर हमारे फैसले स्पष्ट होंगे तो आम आदमी को इनको समझने में दिक्कत नहीं होगी। जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी...
नेशनल डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें ऐसे फैसले लिखने चाहिए जो आम आदमी को आसानी से समझ आ सकें। सुप्रीम कोर्ट की तीन जज की बेंच ने कहा कि अगर हमारे फैसले स्पष्ट होंगे तो आम आदमी को इनको समझने में दिक्कत नहीं होगी। जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस हृषिकेश रॉय की बेंच ने कहा कि फैसलों को समझने में आसान बनाने के लिए कोर्ट को रेन एंड मार्टिन के नियमों को अपनाना चाहिए। बेंच ने कहा कि हमें लगता है कि आम आदमी इन फैसलों के शब्दों के जाल में फंसता जा रहा है। बेंच ने यह टिप्पणी फेसबुक के वीपी अजित मोहन की याचिका खारिज करने वाले फैसले के पोस्टस्क्रिप्ट (परिशिष्ट) में की।
छह पन्नों की पोस्टस्क्रिप्ट को तीन जजों ने फैसले में जोड़ा था, इसके जरिए अदालती फैसलों की समझ को आम आदमी के लिए भी आसान बनाने की कोशिश की गई थी। पोस्टस्क्रिप्ट में जजों ने लिखा कि 'हमारी पोस्टस्क्रिप्ट का उद्देश्य केवल कानूनी रूप से तैयार किए गए लिखे गए सारांश के महत्व को लोगों के ध्यान में लाना है साथ ही कानूनी बिरादरी के बीच एक चर्चा शुरू करना है। इसी के साथ बेंच ने कहा कि अदालत एक कंपटीशन की जगह बन गया है जहां सबसे लंबे समय तक बहस होती है।
फिलहाल शीर्ष अदालत में 2 जुलाई, 2021 तक 69,212 मामले पेंडिंग हैं जिनमें से 447 मामले पांच, सात और नौ जजों की संवैधानिक पीठ के समक्ष हैं। बता दें कि पिछले दो-तीन सालों में सुप्रीम कोर्ट ने हजार पन्नों में लिखे आदेश दिए हैं, जिनमें अयोध्या राम मंदिर का मामला भी शामिल है। कोर्ट ने नवंबर 2019 में अयोध्या जमीन विवाद पर 1045 पेज का फैसला दिया था। अगस्त 2017 में निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित करने वाले न्यायालय के फैसले में 547 पन्ने थे और सितंबर 2018 में 1448 पन्नों के साथ आधार कार्ड को वैध घोषित करने का निर्णय शामिल है।