आस्था ने बढ़ाया संकट, प्रतिमा विसर्जन से प्रदूषित हुई यमुना

Edited By vasudha,Updated: 25 Sep, 2018 11:39 AM

yamuna polluted by immersion

प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मर्जी से भक्ति और आस्था प्रकट करने का अधिकार है। लेकिन प्रतिमाओं को नदी में प्रवाहित करने की आस्था अब संकट बनती जा रही है। नदियों के लिए यह परंपरा बड़ा खतरा बन गई है...

नई दिल्ली (नवोदय टाइम्स): प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मर्जी से भक्ति और आस्था प्रकट करने का अधिकार है। लेकिन प्रतिमाओं को नदी में प्रवाहित करने की आस्था अब संकट बनती जा रही है। नदियों के लिए यह परंपरा बड़ा खतरा बन गई है। चूंकि परंपरा है, ऐसे में बहुत कुछ कहा नहीं जा सकता और जनआस्था की बात है तो सख्ती भी उतनी नहीं की जाती। लेकिन आस्थावानों को यह भी सोचना चाहिए कि नदियां जीवित रहेंगी तो हम और आप भी रह सकेंगे। इसके लिए जरूरी है कि समय के साथ जो परंपराएं बदली हुई परिस्थितियों में नुक्सान पहुंचा रही हैं, उनको रोक देना चाहिए। 

राजधानी सहित एनसीआर के कई इलाकों में गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन यमुना में किया गया। यह अपने आप में अब पाप करने जैसा हो गया है। क्योंकि, ऐसा किए जाने से यमुना कराह रही है। प्रदूषण से उसका दम घुट रहा है। ऐसा नहीं है कि केवल यही कारण, जिससे यमुना में प्रदूषण बढ़ रहा है। लेकिन प्लास्टर ऑफ पेरिस की प्रतिमाओं का विसर्जन बड़ा कारण है। चूंकि यह जन-जन से जुड़ा है, ऐसे में उनको विसर्जन से रोकना और इसके नुक्सान को समझाना जरूरी है। 
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राजधानी में छा जाता है पेयजल का संकट 
राजधानी में समय-समय पर पेयजल का संकट हो जाता है। इसके पीछे यमुना के पानी में अमोनिया का स्तर बढऩा ही होता है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार एक दशक के दौरान अमोनिया का स्तर लगातार बढऩा यमुना के लिए बहुत ही खतरनाक है। यमुना में अमोनिया का जल स्तर 0.5 पीपीएम होना चाहिए, लेकिन यह 1.5 से अधिक हो जाता है। ऐसा होने पर दिल्ली सरकार के वाटर ट्रीटमेंट प्लांट काम करना बंद कर देते हैं और जल संकट छा जाता है। राजधानी में जो प्रदूषण नदी में होता है, पूरी यमुना में होने वाले प्रदूषण का 70 प्रतिशत से ज्यादा है।

सफाई का काम होता जा रहा बेकार
यमुना की सफाई का काम वर्ष 1993 में शुरू किया गया था। पहले चरण में वर्ष 2003 तक करीब 700 करोड़ रुपए खर्च किए गए। इससे काफी मात्रा में कचरा साफ किया गया। लेकिन, कचरा डालने का काम रुका नहीं तो सफाई बेअसर साबित हो गई। सफाई बेअसर साबित होने के पीछे अन्य कारणों के साथ प्रतिमा विसर्जन भी एक कारण रहा है। वर्ष 2003 से यमुना को साफ करने का दूसरा चरण शुरू हुआ। जिसमें 600 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किए गए। इसके तहत यमुना में सीवर का पानी सीधे नहीं गिरे, इसके लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाए गए। तीसरे चरण में यमुना एक्शन प्लान पर 1600 करोड़ से ज्यादा का खर्च। काम अभी चल रहा है, लेकिन प्रभाव नहीं के बराबर दिखाई दे रहा है।

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ढाई हजार से 3000 तक मूर्तियां की जाती हैं विसर्जित 
यमुना में विसर्जित की जाने वाली प्रतिमाओं से यमुना का दम और अधिक फूलने लगता है। पहले से प्रदूषण की मार झेल रही यमुना लोगों द्वारा तमाम तरह के हानिकारक केमिकल, रंग, कपड़ों आदि से बनी मूर्तियों के विसर्जन किए जाने से दोगुनी प्रदूषित हो जाती है। नदी में मौजूद क्रोमियम, निकिल, जस्ता, लोहा और आर्सेनिक जैसी भारी धातुओं का पानी में अनुपात बढ़ जाता है। दिल्ली में अलग-अलग इलाकों से गुजर रही यमुना में ढाई हजार से लेकर 3000 तक मूर्तियां विसर्जित की जाती हैं। इनमें मिट्टी, चीनी मिट्टी, प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी मूर्तियां सबसे ज्यादा प्रवाहित की जाती हैं। नदी सबसे ज्यादा प्रदूषित प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी मूर्तियों से होती है। सरकारी एजेंसियों और प्रशासन द्वारा बनाए गए नियम-कानूनों का पालन बहुत कम ही लोग करते हैं जिसके कारण आस्था के नाम पर यमुना को लोग प्रदूषित करने में कोई कमी नहीं छोड़ते। इंटरनेशनल जर्नल आफ एन्वॉयरनमेंटल साइंस द्वारा जारी रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया है कि मूर्ति विसर्जन के दौरान यमुना में पूजा सामग्री, पॉलीथिन बैग, फोम, फूल, खाद्य सामग्री, साज-सज्जा का सामान, मेटल पॉलिश, प्लास्टिक सीट, कॉस्मेटिक का सामान डाला जाता है। यह यमुना के प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है। मूर्तियों के विसर्जन से पानी की चालकता (पीएच), ठोस पदार्थों की मौजूदगी (टीएसएस), जैव रासायनिक ऑक्सीजन की मांग (बीओडी) और घुले हुए ऑक्सीजन (डीओ) में कमी आ जाती है।  

कई घाटों पर प्रतिमाओं को किया जाता है प्रवाहित
दिल्ली में पडऩे वाली यमुना के दर्जनों घाट पर प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है। हालांकि सरकार विसर्जन के लिए कुछ खास घाटों का नाम तय करती है, लेकिन लोग इसको मानते नहीं हैं। सरकार ने कुदेसिया, गीता, कालिंदी कुंज व राम घाट के नाम घोषित किए थे। घाटों में यमुना से कुछ दूरी पर तारों का जाल लगाया गया था ताकि पूजा सामग्री अधिक दूर तक नहीं डाली जा सके। दिल्ली में 13 घाटों पर प्रतिमाओं का विसर्जन होता था। लेकिन रोक के बाद इनकी संख्या चार कर दी गई। लेकिन, ऐसा हो नहीं पाता। निगम द्वारा हर साल नदी से प्रतिमा विसर्जन से होने वाला कचरा निकाला जाता है। ट्रकों के माध्यम से अकेले दक्षिणी निगम करीब 100 ट्रक वह कचरा निकालता है जो विसर्जन के दौरान होता है। 

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यमुना में बढ़ जाती है पारे की मात्रा 
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक सामान्य समय में यमुना के पानी में पारे की मात्रा लगभग नहीं के बराबर होती है। लेकिन धार्मिक उत्सवों के दौरान यह अचानक बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। यहा तक कि क्रोमियम, तांबा, निकिल, जस्ता, लोहा और आर्सेनिक जैसी भारी धातुओं का पानी में अनुपात भी बढ़ जाता है। यमुना को प्रदूषित होने से बचाने के लिए कोर्ट भी कई बार सरकारी एजेंसियों को तमाम तरह के सुझाव दे चुका है। कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश पर ही केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के तत्वावधान में एक कमेटी भी बनी थी जिसने पर्यावरणपूरक मूर्ति-विसर्जन को लेकर कुछ अहम सुझाव दिए थे। सुझावों के मुताबिक मूर्तियों पर ऐसे केमिकल से बने रंगों के इस्तेमाल पर पाबंदी लगनी चाहिए जो जहरीले हों और नॉन बायोडिग्रेडेबल हों मतलब घुलनशील न हों। सिर्फ प्राकृतिक तथा पानी में घुलनशील रंग का ही इस्तेमाल करने के लिए कहा गया था। इसके अलावा प्लास्टर ऑफ पेरिस की बजाय मिट्टी की मूर्तियां बनाने के लिए प्रोत्साहित भी किया गया था। विसर्जन से पहले मूर्तियों पर पड़े फूल, वस्त्र और थर्मोकोल आदि अलग किए जाएं। सुझाव दिया गया था कि ऐसे कृत्रिम तालाबनुमा गड्ढे बनाए जाएं जिनमें आसानी से विसर्जन हो सके ताकि विसर्जित की गई मूर्तियां समूचे सार्वजनिक जलाशय को प्रदूषित न करें।

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यमुना जियो अभियान का तर्क 
यमुना जियो अभियान के मनोज मिश्रा ने बताया कि वर्तमान में यमुना में मूर्ति विसर्जन करने को लेकर कुछ लोगों में बदलाव तो आया है, लेकिन विसर्जन से अभी यमुना को नुकसान पहुंच रहा है। उन्होंने कहा कि प्रशासन और सरकारी एजेंसियों को गणपति विसर्जन के दौरान और ज्यादा सचेत और सख्ती बरतनी चाहिए ताकि लोग गणेश भगवान की मूर्तियां यमुना में विसर्जित न कर सकें। अगर मूर्ति का विसर्जन यमुना में करना भी है तो इसके लिए मिट्टी से बनी मूर्तियों का एवं ईको फ्रेंडली मूर्तियों का ही चयन किया जाए। पिछले दो तीन साल पहले की अपेक्षा अब गणपति विसर्जन के दौरान यमुना इसलिए इतनी ज्यादा मैली नहीं होती क्योंकि अब नगर-निगम विसर्जन के एक दो दिन बाद ही यमुना में विसर्जित की गई मूर्तियों व कचरे को बाहर निकाल लेता है जिससे नदी बहुत ज्यादा प्रदूषित नहीं हो पाती। 

22 किमी में बरती जानी चाहिए विशेष सावधानी
दिल्ली में यमुना की लंबाई 22 किमी है। इस दूरी में अत्यधिक मात्रा में प्रदूषण नदी में डाला जाता है। इसी प्रदूषण से यमुना मैली होती जा रही है। राजधानी में करीब दो दर्जन सीवरेज प्लांट है, लेकिन वह पूरी तरह से प्रदूषण नहीं रोक पाते। अब इंटरसेप्टर लगाकर गंदगी को पानी में मिलने से रोकने पर काम किया जा रहा है। अगले साल इससे संंबंधित कार्य पूरा कर लिया जाएगा। इसी २२ किमी की दूरी में प्रतिमा विसर्जन भी राजधानी वालों की तरफ से किया जाता है, जिसे रोक देना चाहिए। 
 

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