आडवाणी के करीबी, मोदी के धुर विरोधी, जानें फिर कैसे एनडीए से दूर होते चला गया बिहार की माटी का लाल यशवंत सिन्हा

Edited By Yaspal,Updated: 21 Jun, 2022 08:35 PM

yashwant sinha was once close to advani

यशवंत सिन्हा अपने करीब चार दशक लंबे राजनीतिक जीवन में समाजवादी नेता चंद्रशेखर से लेकर भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज लालकृष्ण आडवाणी तक के करीबी सहयोगी रहे। भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी सिन्हा पार्टी एवं सरकार में कई प्रमुख पदों पर रहे लेकिन...

नई दिल्लीः यशवंत सिन्हा अपने करीब चार दशक लंबे राजनीतिक जीवन में समाजवादी नेता चंद्रशेखर से लेकर भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज लालकृष्ण आडवाणी तक के करीबी सहयोगी रहे। भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी सिन्हा पार्टी एवं सरकार में कई प्रमुख पदों पर रहे लेकिन भाजपा में नए नेतृत्व के उभरने के साथ ही पिछले दशक में उनके सितारे धुंधले पड़ने लगे।

सिन्हा ने कई मौकों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नीत सरकार की तीखी आलोचना की और भाजपा विरोधी दलों को एकजुट करने का खासा प्रयास किया। इससे 80 साल से अधिक उम्र के हो चुके सिन्हा को विपक्षी खेमे में स्थान मिला और उसने राष्ट्रपति चुनाव में उन्हें अपना संयुक्त उम्मीदवार बनाया है। उन्हें उम्मीदवार ऐसे दौर में बनाय गया है जब माना जा रहा था कि सिन्हा का राजनीतिक सफर समाप्त होने की ओर अग्रसर है।

सिन्हा ने अल्पकालिक चंद्रशेखर सरकार में और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में वित्त मंत्री के रूप में कार्य किया। हालांकि हमेशा उनका तेवर विद्रोही का रहा। उन्होंने 1989 में वी. पी. सिंह सरकार के शपथ ग्रहण समारोह का बहिष्कार किया और फिर 2013 में तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी के खिलाफ कथित भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर मुखर रहे। उसके बाद गडकरी को पद छोड़ना पड़ा और कई लोगों का मानना ​​​​था कि सिन्हा के कदम को आडवाणी का आशीर्वाद प्राप्त था।

हालांकि सिन्हा के इस कदम ने उन्हें पार्टी में हाशिये पर धकेल दिया और पार्टी सदस्यों ने हमेशा ऐसे नेता के आगे बढ़ने पर नाराजगी जताई, जो वास्तव में भाजपा की पृष्ठभूमि से नहीं थे। भाजपा ने 2014 में उन्हें लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं देकर उनके बेटे जयंत सिन्हा को मैदान में उतारा। लेकिन वह इससे शांत नहीं हुए और उन्होंने 2018 में भाजपा छोड़ दी और आरोप लगाया कि लोकतंत्र खतरे में है। वह 2021 में तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए।

बिहार में पैदा हुए और बिहार-कैडर के आईएएस अधिकारी ने 1984 में प्रशासनिक सेवा छोड़ दी और जनता पार्टी में शामिल हो गए। जनता पार्टी के नेता चंद्रशेखर उन्हें पसंद करते थे और उन्हें सक्षम और स्पष्टवादी मानते थे। सिन्हा ने बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री और समाजवादी दिग्गज कर्पूरी ठाकुर के प्रधान सचिव के रूप में भी काम किया था।

सिन्हा 1988 में राज्यसभा के सदस्य बने। चंद्रशेखर सहित विभिन्न विपक्षी नेताओं ने 1989 के संसदीय चुनाव में कांग्रेस से मुकाबला करने के लिए जनता दल के गठन के लिए हाथ मिलाया। बाद में सिन्हा ने अपने राजनीतिक गुरु का अनुसरण किया जब उन्होंने वी. पी. सिंह सरकार को गिराने के लिए जनता दल को विभाजित कर दिया।

चंद्रशेखर के राजनीतिक प्रभाव में कमी आने और भाजपा के उभरने के बीच सिन्हा आडवाणी के प्रभाव में पार्टी में शामिल हो गए। दोनों नेताओं के बीच करीबी रिश्ता था। उन्हें बिहार में नेता प्रतिपक्ष सहित कई अहम जिम्मेदारियां दी गईं। वह 1998 में हजारीबाग से लोकसभा चुनाव जीता और सरकार में 2002 तक वित्त मंत्री रहे और बाद में विदेश मंत्री बने।

वित्त मंत्री के रूप में उन्होंने शाम पांच बजे केंद्रीय बजट पेश करने की औपनिवेशिक प्रथा को रद्द कर दिया। उन्हें वाजपेयी सरकार के दौरान सुधारों को आगे बढ़ाने का श्रेय है। भाजपा नीत राजग को संख्यात्मक बढ़त होने के कारण, राष्ट्रपति चुनाव में सिन्हा की संभावनाएं क्षीण हैं और काफी हद तक यह मुकाबला प्रतीकात्मक प्रतीत होता है।

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