बहुविवाह और निकाह हलाला पर SC करेगा सुनवाई, केंद्र को भेजा नोटिस

Edited By Punjab Kesari,Updated: 26 Mar, 2018 04:24 PM

sc notice to center on polygamous custom and marriage

सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि मुस्लिम समुदाय में प्रचलित बहुविवाह और निकाह हलाला की प्रथा की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर संविधान पीठ विचार करेगी। इस बीच, न्यायालय ने इन याचिकाओं पर केंद्र और विधि आयोग से जवाब मांगा है। प्रधान...

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि मुस्लिम समुदाय में प्रचलित बहुविवाह और निकाह हलाला की प्रथा की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर संविधान पीठ विचार करेगी। इस बीच, न्यायालय ने इन याचिकाओं पर केंद्र और विधि आयोग से जवाब मांगा है। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई. चन्द्रचूड़ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने समता के अधिकार का हनन और लैंगिक न्याय सहित कई बिन्दुओं पर दायर जनहित याचिकाओं पर आज विचार किया।

पीठ ने इस दलील पर भी विचार किया कि 2017 में पांच सदस्यीय संविधान पीठ के बहुमत के फैसले में तीन तलाक को असंवैधानिक करार देने वाले प्रकरण से बहुविवाह और निकाह हलाला के मुद्दे बाहर रखे गए थे।  पीठ ने कहा कि बहुविवाह और निकाह हलाला के मुद्दे पर विचार के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ का गठन किया जायेगा। बहुविवाह की प्रथा के तहत मुस्लिम समुदाय में मुस्लिम व्यक्ति को चार बीवियां रखने की इजाजत है जबकि निकाह हलाला तलाक देने वाले शौहर से तलाकशुदा बीवी के दोबारा निकाह के संबंध में है।

क्या है निकाह हलाला
निकाह हलाला वह प्रथा है जिसमें शौहर द्वारा तलाक दिए जाने के बाद उसी शौहर से दोबारा निकाह करने से पहले महिला को एक अन्य व्यक्ति से निकाह करके उससे तलाक लेना होता है। बहुविवाह और निकाह हलाला की प्रथा के खिलाफ अधिवक्ता और दिल्ली भाजपा प्रवक्ता अश्चिनी कुमार उपाध्याय ने अपनी जनहित याचिका में दावा किया कि मुस्लिम महिलाओं को उनके बुनियादी अधिकार दिलाने के लिए इन प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाना वक्त की जरूरत है। याचिका में कहा गया है कि तीन तलाक, बहुविवाह और निकाह हलाला की प्रथाओं की वजह से मुस्लिम महिलाओं को बहुत अधिक नुकसान हो रहा है और इससे उनके संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 में प्रदत्त मौलिक अधिकारों का भी हनन हो रहा है। याचिका में यह घोषित करने का अनुरोध किया गया है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए सभी नागरिकों पर लागू होती है और तीन तलाक इस धारा के तहत महिला के प्रति क्रूरता है। इसी तरह, निकाह हलाला को भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के तहत बलात्कार और बहुविवाह को धारा 494 के अंतर्गत अपराध घोषित करने का भी अनुरोध किया गया है। धारा 494 के अंतर्गत पति या पत्नी के जीवन काल में यदि कोई भी दूसरी शादी करता है तो यह अपराध है।

मुस्लिम महिला ने दायर करवाई याचिका
एक मुस्लिम महिला ने भी 14 मार्च को शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर कर कहा कि मुस्लिम पर्सन लॉ की वजह से पति या पत्नी के जीवन काल में ही दूसरी शादी को अपराध के दायरे में लाने संबंधी भारतीय दंड संहिता की धारा 494 इस समुदाय के लिए निरर्थक है और कोई भी शादीशुदा मुस्लिम महिला ऐसा करने वाले अपने शौहर के खिलाफ शिकायत दायर नहीं कर सकती है। इस महिला ने न्यायालय से अनुरोध किया है कि मुस्लिम विवाह विच्छेद कानून 1939 को असंवैधानिक और संविधान के अनुच्छेद 14, 15 ,21 और25 के प्रावधानों का हनन करने वाला घोषित किया जाए।

याचिकाकर्ता महिला का दावा है कि वह खुद इन प्रथाओं की पीड़ित है और उसका आरोप है कि उसका पति और परिवार उसे दहेज के लिए यातनाएं देते थे और उसे उसके वैवाहिक घर से दो बार बाहर निकाला गया है। याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि उसके शौहर ने कानूनी तरीके से तलाक दिए बगैर ही एक और औरत से शादी कर ली और पुलिस ने धारा 494 और धारा498-ए के तहत प्राथमिकी दर्ज करने से भी इंकार कर दिया। इसी तरह, 18 मार्च को हैदराबाद के एक वकील ने बहुविवाह प्रथा को चुनौती देते हुए कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत इस तरह की सारी शादियां मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों का हनन करती हैं। याचिका में तर्क दिया गया है कि मुस्लिम कानून आदमियों को तो अस्थाई शादियों या बहुविवाह के जरिए कई बीवियां रखने की इजाजत देता है लेकिन मुस्लिम महिलाओं के लिए यह प्रावधान नहीं है। याचिकाकर्त्ता ने निकाह हलाला की प्रथा का भी विरोध किया है।

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!