Edited By Anil dev,Updated: 15 Oct, 2020 01:14 PM
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक एनआरआई पति के इस दावे को खारिज कर दिया कि उसकी पत्नी भारत में उससे तलाक की मांग नहीं कर सकती, क्योंकि वह अब एक अमेरिकी नागरिक है। अमेरिका की अदालत ही उसके विवाह संबंधी विवादों का निपटारा करने का अधिकार रखती हैं। हाईकोर्ट ने कहा...
नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक एनआरआई पति के इस दावे को खारिज कर दिया कि उसकी पत्नी भारत में उससे तलाक की मांग नहीं कर सकती, क्योंकि वह अब एक अमेरिकी नागरिक है। अमेरिका की अदालत ही उसके विवाह संबंधी विवादों का निपटारा करने का अधिकार रखती हैं। हाईकोर्ट ने कहा कि हिंदू मैरिज एक्ट के तहत शादी के बंधन में बंधे दंपती का तलाक इसी एक्ट के मुताबिक हो सकता है।
भारत में रिति-रिवाज से हुआ था विवाह
दंपती का विवाह साल 2010 में भारत में सिख और हिंदू वैदिक रीति.रिवाजों से हुआ था। पत्नी ने साल 2017 में भारत लौटने के बाद दिल्ली की फैमिली कोर्ट में तलाक के लिए अर्जी दायर की थी। पति का दावा है कि अमेरिकी अदालत ने एक पक्षीय सुनवाई के आधार पर आदेश पारित कर उसके तलाक को मंजूरी दे दी है। जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस एसण् प्रसाद की बेंच ने पति की अपील खारिज कर दी और फैमिली कोर्ट के फैसले को सही ठहराया। निचली अदालत ने पत्नी की तलाक के लिए अर्जी को खारिज करने से इस व्यक्ति की मांग को ठुकरा दिया था। पति का कहना था कि भारत में तलाक के लिए दायर याचिका सुनवाई के लायक तभी मानी जाएगी जब दोनों पक्षों का निवास स्थान भी यहीं हो।
इसे मंजूर करने से मना करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि इसका नतीजा सामने आएगा कि अगर शादी के बाद पत्नी को उसके पति ने विदेश में बेसहारा छोड़ दिया हो तो उसके पास वहीं विदेशी जमीन पर केस डालने के सिवा और कोई चारा नहीं बचेगा। हो सकता है इसके लिए उसके पास किसी तरह की वित्तीय सहायता या सपोर्ट भी उपलब्ध न हो। हाई कोर्ट ने कहा कि यहां हिंदू विवाह अधिनियम के तहत शादी के बंधन में बंधे पक्षों का तलाक इसी कानून की धारा 13 के आधार पर ही हो सकता है। हाई कोर्ट ने निवास स्थान के मुद्दे से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों का जिक्र किया। कोर्ट ने कहाए कानून साफ है कि पक्षकारों के निवास स्थान का मसला उनकी मंशा पर निर्भर करता है। कोर्ट ने कहा कि निवास स्थान में बदलाव को साबित करने की जिम्मेदारी उस पक्ष की होती है, जो उसमें बदलाव का दावा करता है।