राहुल गांधी के ‘युवा नेताओं’ को किया जा रहा अलग-थलग और दरकिनार

Edited By Priyanka rana,Updated: 13 Mar, 2020 12:47 PM

rahul gandhi

तेज-तर्रार व युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत ने एक बार फिर साबित कर दिया कि कांग्रेस पिछले कुछ सालों के दौरान जनरेशन गैप को नहीं रोक सकी है।

जालंधर(चोपड़ा) : तेज-तर्रार व युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत ने एक बार फिर साबित कर दिया कि कांग्रेस पिछले कुछ सालों के दौरान जनरेशन गैप को नहीं रोक सकी है। वरिष्ठ नेताओं व युवा नेताओं के मध्य निरंतर बढ़ते क्लेश से पार्टी को बड़ी हानि उठानी पड़ रही है। 

सिंधिया के कांग्रेस के हाथ को छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने के बाद कांग्रेस में शीर्ष पदों पर बैठे वरिष्ठ और युवा नेताओं के बीच की खींचतान को एक बार फिर से सुर्खियों में ला दिया है। राहुल गांधी के लोकसभा चुनावों की हार के बाद जब उन्होंने ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद से अपना इस्तीफा दिया था तब से युवा नेताओं को अलग-थलग व दरकिनार करने को लेकर पार्टी नेतृत्व से निराशा व्यक्त की जाती रही है। 

उनकी कोई सुनवाई न होने के चलते ही शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ विरोध की आग पिछले लंबे समय से धधक रही है परंतु कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पार्टी आलाकमान ने इस विरोधता को हल्के से लिया जिसका खमियाजा अब कांग्रेस को बड़े स्तर पर भुगतना पड़ रहा है। हालांकि सिंधिया ऐसे पहले युवा नेता नहीं हैं जिन्होंने पार्टी को छोड़ा हो, उनसे पहले अजोय कुमार (झारखंड कांग्रेस प्रमुख), प्रद्योत माणिक्य (त्रिपुरा कांग्रेस प्रमुख) और अशोक तंवर (हरियाणा कांग्रेस प्रमुख) भी वरिष्ठ नेताओं द्वारा दरकिनार करने पर कांग्रेस को अलविदा कर चुके हैं जिन्हें राहुल गांधी अपने प्रधान होने के दौरान त्रिपुरा कांग्रेस के अध्यक्ष रहे और सिंधिया परिवार के करीबी प्रद्योत माणिक्य देव बर्मा ने दावा किया कि ज्योतिरादित्य को राहुल गांधी से महीनों से मिलने का मौका नहीं दिया गया। 

अगर वे हमें नहीं सुनना चाहते थे तो हमें पार्टी में क्यों लाया गया? प्रद्योत ने कहा कि कांग्रेस पार्टी के गिरते ग्राफ को देखकर हमें दुख होता है। अगले एक दशक में पार्टी अपने सभी युवा नेताओं को खो देगी। सिंधिया ने मंगलवार को कांग्रेस से इस्तीफा दे पार्टी को एक बड़ा झटका दिया है। अब सिंधिया के कांग्रेस छोडऩे के बाद अब ऐसी अफवाहें भी जोर पकड़ रही हैं कि कुछ और युवा नेता पार्टी छोड़ सकते हैं।  खासे प्रचारित करते थे। 

शीर्ष पदों पर बैठे नेता ही अपने साथियों को खत्म करने पर तुले : निरूपम 
इसके अलावा मुंबई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष संजय निरूपम ने कहा कि सिंधिया मध्य प्रदेश में सरकार या पार्टी में स्थान पाने की कोशिश कर रहे थे और उनकी लगातार हो रही अनदेखी को लेकर उन्होंने नेतृत्व को इस बारे में अवगत करा दिया था। 

शीर्ष नेतृत्व को अपनी भूमिका का संज्ञान लेना चाहिए और मुद्दों को हल करना चाहिए। वर्तमान समय में ऐसा लगता है कि जो लोग शीर्ष पदों व सत्ता पर काबिज हैं वे अपने ही साथियों को खत्म करने में तुले हैं। यह सही समय है कि राहुल गांधी पार्टी की पुन: कमान संभाले और सभी वरिष्ठ नेताओं को उचित सम्मान के साथ सेवानिवृत्ति दी जानी चाहिए।

पार्टी प्रत्येक नेता को विश्वास में ले और उनकी बात सुने : बाजवा
उधर पंजाब प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष प्रताप सिंह बाजवा को लेकर भी कांग्रेस में सब कुछ ठीकठाक नहीं चल रहा है। प्रताप बाजवा का कहना है कि जो मुख्यमंत्री बनते हैं या सत्ता में होते हैं, वे अन्य वरिष्ठ नेताओं के बारे में भी नहीं सोचते हैं जिन्होंने पार्टी को योगदान दिया है। 

पार्टी को राज्य के प्रत्येक नेता को विश्वास में लेना चाहिए और उनकी बात सुननी चाहिए। उन्होंने कहा कि पार्टी कार्यकत्र्ताओं और नेताओं को न सुनना और सही तरीके से उनका उपयोग न करना खतरे की घंटी है।

पार्टी को युवा नेताओं को तरजीह देनी होगी : कुलदीप बिश्नोई
हरियाणा कांग्रेस के नेता और विधायक कुलदीप बिश्नोई ने ट्विटर पर लिखा-सिंधिया पार्टी में एक केंद्रीय स्तंभ थे और उन्हें बने रहने के लिए नेतृत्व को अधिक प्रयास करना चाहिए था। उनके जैसे देश भर में कई समॢपत कांग्रेस नेता हैं जो आज खुद को अलग-थलग महसूस करते हैं। अब पार्टी को युवा नेताओं को तरजीह देनी होगी। 

राजस्थान में भी कांग्रेस में अंदरूनी खटपट छिपी नहीं :
राजस्थान में भी कांग्रेस में अंदरूनी खटपट छिपी नहीं है। 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद सचिन पायलट के बदले वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत को तवज्जो दी गई। अब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और राज्य के उप-मुख्यमंत्री पायलट मौके-मौके पर गहलोत पर अपरोक्ष हमले करते नजर आते हैं। 

उन्होंने पार्टी नेतृत्व को चेताया है कि राज्यसभा के लिए किसी धन्नासेठ का नामांकन पार्टी काडर और मतदाताओं के बीच गलत संदेश भेजेगा। पायलट जैसे तमाम नेता हैं जो चाहते हैं कि उनकी आवाज को सम्मानपूर्वक सुना जाए।

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